আহমদ মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] অধ্যায় ১ম ভাগ হাদিস নং ৮২ – ১২০

পরিচ্ছেদঃ

৮২। হারিছা থেকে বর্ণিত। সিরিয়া থেকে এক দল লোক উমারের (রাঃ) নিকট এল। তারা বললোঃ আমরা কিছু সম্পত্তি, কিছু ঘোড়া ও কিছু দাসদাসী পেয়েছি। আমরা চাই এগুলোতে যাকাত ও পবিত্রতার ব্যবস্থা করা হোক। উমার (রাঃ) বললেনঃ আমার দু’জন সাথী [রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম ও আবু বাকর (রাঃ)] ইতিপূর্বে এটা করেননি যে, আমি তা করবো। অতঃপর তিনি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের সাহাবীদের সাথে পরামর্শ করলেন। তাদের মধ্যে আলীও (রাঃ) ছিলেন। আলী (রাঃ) বললেনঃ এগুলোতেও যাকাতের প্রচলন করা ভালো যদি তা নিয়মিত জিযিয়ায় পরিণত না হয়, যা আপনার পরবর্তীকালে তাদের জন্য বাধ্যতামূলক করা হবে।

(সম্ভবতঃ তারা সিরিয়ার খৃস্টান ছিল, তাই জিযিয়ায় পরিণত না করার শর্ত আরোপ করা হয়েছে। ঘোড়া ও দাসদাসীতে যাকাত প্ৰচলিত ছিল না। উমারের এ পদক্ষেপ দ্বারা বুঝা গেল, যে সকল সম্পদে যাকাত ধার্য নেই, তাতে মালিক স্বেচ্ছায় কিছু দিতে চাইলে ইসলামী রাষ্ট্র পরামর্শত্রুমে যে কোন পরিমাণে ও যে কোন হারে যাকাত বা সাদাকা নিতে পারে। তবে তা অবশ্যই স্বেচ্ছায় দিতে ইচ্ছুক। এমন মালিকদের মধ্যেই সীমিত থাকবে। -অনুবাদক)

حَدَّثَنَا عَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ مَهْدِيٍّ، عَنْ سُفْيَانَ، عَنْ أَبِي إِسْحَاقَ، عَنْ حَارِثَةَ، قَالَ: جَاءَ نَاسٌ مِنْ أَهْلِ الشَّامِ إِلَى عُمَرَ، فَقَالُوا: إِنَّا قَدْ أَصَبْنَا أَمْوَالًا وَخَيْلًا وَرَقِيقًا نُحِبُّ أَنْ يَكُونَ لَنَا فِيهَا زَكَاةٌ وَطَهُورٌ، قَالَ: مَا فَعَلَهُ صَاحِبَايَ قَبْلِي فَأَفْعَلَهُ. وَاسْتَشَارَ أَصْحَابَ مُحَمَّدٍ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وَفِيهِمْ عَلِيٌّ، فَقَالَ عَلِيٌّ: هُوَ حَسَنٌ، إِنْ لَمْ يَكُنْ جِزْيَةً رَاتِبَةً يُؤْخَذُونَ بِهَا مِنْ بَعْدِكَ

إسناده صحيح، رجاله ثقات رجال الشيخين غير حارثة – وهو ابنُ مضرِّب – فقد روى له أصحاب السنن وهو ثقة

سفيان: هو ابن سعيد الثوري، وأبو إسحاق: هو عمرو بن عبد الله السبيعي، وسماع سفيان منه قديم قبل تغيره

وأخرجه ابن خزيمة (2290) ، والحاكم 1 / 400، والبيهقي 4 / 118 من طريق محمد بن المثنى، عن عبد الرحمن بن مهدي، بهذا الإسناد

وأخرجه عبد الرزاق (6887) عن معمر، عن أبي إسحاق قال: أتى أهل الشام …لم يذكر فيه حارثة بن مضرب

وسيأتي برقم (218) عن يحيى بن سعيد، عن زهير بن معاوية، عن أبي إسحاق، عن حارثة

حدثنا عبد الرحمن بن مهدي، عن سفيان، عن أبي إسحاق، عن حارثة، قال: جاء ناس من أهل الشام إلى عمر، فقالوا: إنا قد أصبنا أموالا وخيلا ورقيقا نحب أن يكون لنا فيها زكاة وطهور، قال: ما فعله صاحباي قبلي فأفعله. واستشار أصحاب محمد صلى الله عليه وسلم، وفيهم علي، فقال علي: هو حسن، إن لم يكن جزية راتبة يؤخذون بها من بعدك إسناده صحيح، رجاله ثقات رجال الشيخين غير حارثة – وهو ابن مضرب – فقد روى له أصحاب السنن وهو ثقة سفيان: هو ابن سعيد الثوري، وأبو إسحاق: هو عمرو بن عبد الله السبيعي، وسماع سفيان منه قديم قبل تغيره وأخرجه ابن خزيمة (2290) ، والحاكم 1 / 400، والبيهقي 4 / 118 من طريق محمد بن المثنى، عن عبد الرحمن بن مهدي، بهذا الإسناد وأخرجه عبد الرزاق (6887) عن معمر، عن أبي إسحاق قال: أتى أهل الشام …لم يذكر فيه حارثة بن مضرب وسيأتي برقم (218) عن يحيى بن سعيد، عن زهير بن معاوية، عن أبي إسحاق، عن حارثة

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৮৩

 শেয়ার ও অন্যান্য 

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পরিচ্ছেদঃ

৮৩। আবু ওয়ায়েল থেকে হাকাম বৰ্ণনা করেন যে, সুবাই বিন মা’বাদ তাগলিব গোত্রীয় একজন মরুবাসী খৃষ্টান ছিলেন। তিনি ইসলাম গ্ৰহণ করলেন। তারপর জিজ্ঞেস করলেনঃ কোন কাজ উত্তম? তাকে বলা হলোঃ আল্লাহর পথে জিহাদ। সে জিহাদে যাওয়ার সিদ্ধান্ত নিল। অতঃপর তাকে বলা হলোঃ তুমি কি হজ্জ করেছ? তিনি বললেনঃ না। তাকে বলা হলোঃ হজ্জ কর ও উমরা কর, তারপর জিহাদ কর। তিনি হজ্জের জন্য রওনা হয়ে গেলেন। হাওয়াবেতে পৌঁছে তিনি হজ ও উমরা দুটোই (এক সাথে করা) শুরু করলেন। যায়িদ বিন সূহান ও সালমান বিন রবীয়া তা দেখে বললেন, সে (সুবাই) তার উটের চেয়েও বিপথগামী অথবা সে তার উটনীর চেয়ে সুপথগামী নয়। এরপর সুবাই উমার (রাঃ) এর নিকট গেলেন এবং তাকে যায়িদ ও সালমান যা বলেছে তা জানালেন। উমার (রাঃ) বললেনঃ তুমি তোমার নবীর সুন্নাত অনুসরণ করেছ। হাকাম বলেনঃ আমি আবু ওয়ায়েলকে বললামঃ এ ঘটনাটি আপনাকে সুবাই নিজেই বলেছেন? হাকাম বললেনঃ হ্যাঁ।

[আবু দাউদ, ইবনে মাজাহ, নাসায়ী, অত্র গ্রন্থের ১৬৯, ২২৭, ২৫৪, ২৫৬ ও ৩৭৯ নং হাদীস দ্রষ্টব্য]

حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ جَعْفَرٍ، قَالَ: حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، عَنِ الْحَكَمِ، عَنْ أَبِي وَائِلٍ: أَنَّ الصُّبَيَّ بْنَ مَعْبَدٍ، كَانَ نَصْرَانِيًّا تَغْلِبِيًّا أَعْرَابِيًّا فَأَسْلَمَ، فَسَأَلَ: أَيُّ الْعَمَلِ أَفْضَلُ؟ فَقِيلَ لَهُ: الْجِهَادُ فِي سَبِيلِ اللهِ عَزَّ وَجَلَّ. فَأَرَادَ أَنْ يُجَاهِدَ، فَقِيلَ لَهُ: حَجَجْتَ؟ فَقَالَ: لَا. فَقِيلَ: حُجَّ وَاعْتَمِرْ، ثُمَّ جَاهِدْ. فَانْطَلَقَ، حَتَّى إِذَا كَانَ بِالْحَوَائطِ أَهَلَّ بِهِمَا جَمِيعًا، فَرَآهُ زَيْدُ بْنُ صُوحَانَ وَسَلْمَانُ بْنُ رَبِيعَةَ، فَقَالا: لَهُوَ أَضَلُّ مِنْ جَمَلِهِ، أَوْ مَا هُوَ بِأَهْدَى مِنْ نَاقَتِهِ. فَانْطَلَقَ إِلَى عُمَرَ رَضِيَ اللهُ عَنْهُ، فَأَخْبَرَهُ بِقَوْلِهِمَا فَقَالَ: هُدِيتَ لِسُنَّةِ نَبِيِّكَ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ

قَالَ الْحَكَمُ: فَقُلْتُ لِأَبِي وَائِلٍ: حَدَّثَكَ الصُّبَيُّ؟ فَقَالَ: نَعَمْ

إسناده صحيح، رجاله ثقات رجال الشيخين غير الصُّبي بن معبد، فقد روى له أصحاب السنن غير الترمذي، وهو ثقة

الحكم: هو ابن عتيبة، وأبو وائل: هو شقيق بن سلمة

وأخرجه الطيالسي (58) عن شعبة، بهذا الإسناد

وسيأتي برقم (169) و (227) و (254) و (256) و (379)

حدثنا محمد بن جعفر، قال: حدثنا شعبة، عن الحكم، عن أبي وائل: أن الصبي بن معبد، كان نصرانيا تغلبيا أعرابيا فأسلم، فسأل: أي العمل أفضل؟ فقيل له: الجهاد في سبيل الله عز وجل. فأراد أن يجاهد، فقيل له: حججت؟ فقال: لا. فقيل: حج واعتمر، ثم جاهد. فانطلق، حتى إذا كان بالحوائط أهل بهما جميعا، فرآه زيد بن صوحان وسلمان بن ربيعة، فقالا: لهو أضل من جمله، أو ما هو بأهدى من ناقته. فانطلق إلى عمر رضي الله عنه، فأخبره بقولهما فقال: هديت لسنة نبيك صلى الله عليه وسلم قال الحكم: فقلت لأبي وائل: حدثك الصبي؟ فقال: نعم إسناده صحيح، رجاله ثقات رجال الشيخين غير الصبي بن معبد، فقد روى له أصحاب السنن غير الترمذي، وهو ثقة الحكم: هو ابن عتيبة، وأبو وائل: هو شقيق بن سلمة وأخرجه الطيالسي (58) عن شعبة، بهذا الإسناد وسيأتي برقم (169) و (227) و (254) و (256) و (379)

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৮৪

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পরিচ্ছেদঃ

৮৪। আমর ইবনে মাইমুন বলেছেনঃ উমার (রাঃ) আমাদের সাথে একটি জামায়াতে ফজরের নামায পড়লেন, তারপর কিছুক্ষণ থামলেন, তারপর বললেনঃ মুশরিকরা সূর্যোদয় না হওয়া পর্যন্ত রওনা হতো না। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম তাদের বিপরীত করেছেন। অতঃপর [উমার (রাঃ)] সূর্যোদয়ের পূর্বেই রওনা হলেন।[১]

[১]. বুখারী-১৬৮৪, দেখুন, এই গ্রন্থের ২০০, ২৭৫, ২৯৫, ৩৫৮, ৩৮৫ নং হাদীস।

حَدَّثَنَا عَفَّانُ، حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، عَنْ أَبِي إِسْحَاقَ، قَالَ: سَمِعْتُ عَمْرَو بْنَ مَيْمُونٍ، قَالَ: صَلَّى بِنَا عُمَرُ بِجَمْعٍ الصُّبْحَ، ثُمَّ وَقَفَ وَقَالَ: إِنَّ الْمُشْرِكِينَ كَانُوا لَا يُفِيضُونَ حَتَّى تَطْلُعَ الشَّمْسُ، وَإِنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ خَالَفَهُمْ، ثُمَّ أَفَاضَ قَبْلَ أَنْ تَطْلُعَ الشَّمْسُ

إسناده صحيح على شرط الشيخين. أبو إسحاق: هو عمروبن عبد الله السبيعي، وعمرو بن ميمون: هو الأودي

وأخرجه الطيالسي (63) ، والبخاري (1684) ، والترمذي (896) ، والنسائي 5 / 265 من طرق عن شعبة، بهذا الإسناد.

وأخرجه الدارمي (1890) ، وابن ماجه (3022) ، والطحاوي 2 / 218، من طريقين عن أبي إسحاق، به. وسيأتي برقم (200) و (275) و (295) و (358) و (385)

حدثنا عفان، حدثنا شعبة، عن أبي إسحاق، قال: سمعت عمرو بن ميمون، قال: صلى بنا عمر بجمع الصبح، ثم وقف وقال: إن المشركين كانوا لا يفيضون حتى تطلع الشمس، وإن رسول الله صلى الله عليه وسلم خالفهم، ثم أفاض قبل أن تطلع الشمس إسناده صحيح على شرط الشيخين. أبو إسحاق: هو عمروبن عبد الله السبيعي، وعمرو بن ميمون: هو الأودي وأخرجه الطيالسي (63) ، والبخاري (1684) ، والترمذي (896) ، والنسائي 5 / 265 من طرق عن شعبة، بهذا الإسناد. وأخرجه الدارمي (1890) ، وابن ماجه (3022) ، والطحاوي 2 / 218، من طريقين عن أبي إسحاق، به. وسيأتي برقم (200) و (275) و (295) و (358) و (385)

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৮৫

 শেয়ার ও অন্যান্য 

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পরিচ্ছেদঃ

৮৫। ইবনু আব্বাস (রাঃ) বলেছেন, উমার (রাঃ) যখন রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের প্রবীণ সাহাবীদেরকে ডাকতেন, তখন সেই সাথে আমাকেও ডাকতেন। আর বলতেন, ওঁরা যতক্ষণ কথা না বলেন, ততক্ষণ তুমি কথা বলো না। একদিন আমাকে ডেকে বললেনঃ লাইলাতুল কাদর সম্পর্কে (অর্থাৎ তার ফযীলতও মর্যাদা সম্পর্কে) রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম যা বলেছেন, তা তো তোমরা জেনেছ। অতএব, তোমরা রমযানের শেষ দশ দিনের বেজোড় রাতে লাইলাতুল কাদর তালাশ কর। যে কোন বেজোড় রাতে তোমরা তার সাক্ষাত পাবে।[১]

[১]. ইবনে খুযাইমা, অত্র গ্রন্থের ২৯৮ নং হাদীস দেখুন।

حَدَّثَنَا عَفَّانُ، حَدَّثَنَا عَبْدُ الْوَاحِدِ بْنُ زِيَادٍ، قَالَ: حَدَّثَنَا عَاصِمُ بْنُ كُلَيْبٍ، قَالَ: قَالَ أَبِي: فَحَدَّثْتُ بِهِ ابْنُ عَبَّاسٍ، قَالَ: وَمَا أَعْجَبَكَ مِنْ ذَلِكَ؟ كَانَ عُمَرُ رَضِيَ اللهُ عَنْهُ إذَا دَعَا الْأَشْيَاخَ مِنْ أَصْحَابِ مُحَمَّدٍ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ دَعَانِي مَعَهُمْ، فَقَالَ: لَا تَتَكَلَّمْ حَتَّى يَتَكَلَّمُوا، قَالَ: فَدَعَانَا ذَاتَ يَوْمٍ، أَوْ ذَاتَ لَيْلَةٍ، فَقَالَ: إِنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ مَا قَدْ عَلِمْتُمْ، فَالْتَمِسُوهَا فِي الْعَشْرِ الْأَوَاخِرِ وِتْرًا، فَفِي أَيِّ الْوِتْرِ تَرَوْنَهَا؟

إسناده قوي. وأخرجه ابن أبي شيبة 2 / 513 و3 / 73، والبزار (210) ، وأبو يعلى (165) و (168) ، وابن خزيمة (2172) و (2173) من طريقين عن عاصم بن كليب، بهذا الإسناد. وسيأتي برقم (298)

حدثنا عفان، حدثنا عبد الواحد بن زياد، قال: حدثنا عاصم بن كليب، قال: قال أبي: فحدثت به ابن عباس، قال: وما أعجبك من ذلك؟ كان عمر رضي الله عنه إذا دعا الأشياخ من أصحاب محمد صلى الله عليه وسلم دعاني معهم، فقال: لا تتكلم حتى يتكلموا، قال: فدعانا ذات يوم، أو ذات ليلة، فقال: إن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال في ليلة القدر ما قد علمتم، فالتمسوها في العشر الأواخر وترا، ففي أي الوتر ترونها؟ إسناده قوي. وأخرجه ابن أبي شيبة 2 / 513 و3 / 73، والبزار (210) ، وأبو يعلى (165) و (168) ، وابن خزيمة (2172) و (2173) من طريقين عن عاصم بن كليب، بهذا الإسناد. وسيأتي برقم (298)

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৮৬

 শেয়ার ও অন্যান্য 

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পরিচ্ছেদঃ

৮৬। আসিম ইবনে আমর বাজালী (রাঃ) বলেন, কয়েক ব্যক্তি উমার (রাঃ)কে বললোঃ আমরা আপনার কাছে তিনটে বিষয়ে জিজ্ঞেস করতে এসেছি। কোন ব্যক্তির বাড়িতে নফল নামায পড়া, জানাবাতের (ফরয ও ওয়াজিব) গোসল করা ও স্ত্রীর ঋতুবতী থাকাকালে তার সাথে স্বামীর কতটুকু মেলামেশা বৈধ? উমার (রাঃ) বললেন, তোমরা কি জাদুকর? তোমরা এমন বিষয়ে জিজ্ঞেস করেছ, যা সম্পর্কে আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে জিজ্ঞেস করার পর আজ পর্যন্ত আর কেউ আমাকে জিজ্ঞেস করেনি।

এরপর উমার (রাঃ) বললেনঃ মানুষ বাড়িতে যে নামায পড়ে তা জ্যোতি। বাড়িকে যে ব্যক্তি জ্যোতির্ময় করতে চায় সে তা করুক। জানাবাতের গোসল সম্পর্কে তিনি বললেনঃ সে প্রথমে তার লজ্জাস্থান ধুয়ে ফেলবে, তারপর ওযূ করবে, তারপর মাথার ওপর তিনবার পানি ঢালবে। আর ঋতুবতী স্ত্রী সম্পর্কে বললেনঃ স্বামী তার পায়জামার ওপরের অংশ স্পর্শ করতে পারে। (অর্থাৎ স্ত্রীর শরীরের ওপরের অংশ ব্যতীত স্পর্শ করা চলবেনা।[১]

[১]. ইবনে মাজা, ত্বহাবী, বায়হাকী।

حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ جَعْفَرٍ، حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، قَالَ: سَمِعْتُ عَاصِمَ بْنَ عَمْرٍو الْبَجَلِيَّ، يُحَدِّثُ عَنْ رَجُلٍ، مِنَ الْقَوْمِ الَّذِينَ سَأَلُوا عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ، فَقَالُوا لَهُ: إِنَّمَا أَتَيْنَاكَ نَسْأَلُكَ عَنْ ثَلاثٍ: عَنْ صَلاةِ الرَّجُلِ فِي بَيْتِهِ تَطَوُّعًا، وَعَنِ الْغُسْلِ مِنَ الْجَنَابَةِ، وَعَنِ الرَّجُلِ مَا يَصْلُحُ لَهُ مِنَ امْرَأَتِهِ إِذَا كَانَتْ حَائِضًا، فَقَالَ: أَسُحَّارٌ أَنْتُمْ؟! لَقَدْ سَأَلْتُمُونِي عَنْ شَيْءٍ مَا سَأَلَنِي عَنْهُ أَحَدٌ مُنْذُ سَأَلْتُ عَنْهُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ: ” صَلاةُ الرَّجُلِ فِي بَيْتِهِ تَطَوُّعًا نُورٌ، فَمَنْ شَاءَ نَوَّرَ بَيْتَهُ ” وَقَالَ فِي الْغُسْلِ مِنَ الْجَنَابَةِ: ” يَغْسِلُ فَرْجَهُ، ثُمَّ يَتَوَضَّأُ، ثُمَّ يُفِيضُ عَلَى رَأْسِهِ ثَلاثًا ” وَقَالَ فِي الْحَائِضِ: ” لَهُ مَا فَوْقَ الْإِزَارِ

إسناده ضعيف لجهالة الرجل الذي روى عنه عاصم بن عمرو، وباقي رجاله ثقات رجال الشيخين غير عاصم بن عمرو البجلي: فقد روى له ابنُ ماجه وهو صدوق

وأخرجه الطيالسي (49) و (137) عن المسعودي، والطحاوي 3 / 36 – 37 من طريق أبي إسحاق، كلاهما عن عاصم بن عمرو البجلي، عن أحد النفر الذين أتوا عمر بن الخطاب، فقالوا: يا أمير المؤمنين جئناك … فذكره

وأخرجه عبد الرزاق (988) ، والطحاوي 3 / 37 من طريق أبي إسحاق، وسعيد بن منصور في ” سننه ” (2143) ، وابن أبي شيبة 2 / 256 وعنه ابن ماجه (1375) من طريق طارق بن عبد الرحمن البجلي، والطحاوي 3 / 37 من طريق المسعودي، ثلاثتهم عن عاصم بن عمرو البجلي: أن قوماً أتوا عمر … فذكره، غير أن رواية ابن أبي شيبة مختصرة بقصة صلاة الرجل في بيته، ورواية الطحاوي بقصة الحائض فقط

وأخرجه ابن ماجه (1375) ، والطحاوي 3 / 37، والبيهقي 1 / 312 من طريق أبي إسحاق، عن عاصم بن عمرو، عن عمير مولى عمر بن الخطاب، عن عمر بن الخطاب، عن النبي صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، نحوه. وعمير مولى عمر بن الخطاب لم يرو عنه غير عاصم بن عمرو، فهو

على هذا مجهول

وقوله: ” يغسل فرجه ثم يتوضأ … ” له شاهد من حديث عائشة عند البخاري (248) ، ومسلم (316)

وقوله: ” له ما فوق الإزار ” له شاهد من حديث عبد الله بن سعد القرشي عند أبي داود (212) ، وآخر من حديث عائشة عند البخاري (300) ومسلم (293) وأحمد 6 / 55، وثالث من حديث ميمونة عند البخاري (303) ومسلم (294)

حدثنا محمد بن جعفر، حدثنا شعبة، قال: سمعت عاصم بن عمرو البجلي، يحدث عن رجل، من القوم الذين سألوا عمر بن الخطاب، فقالوا له: إنما أتيناك نسألك عن ثلاث: عن صلاة الرجل في بيته تطوعا، وعن الغسل من الجنابة، وعن الرجل ما يصلح له من امرأته إذا كانت حائضا، فقال: أسحار أنتم؟! لقد سألتموني عن شيء ما سألني عنه أحد منذ سألت عنه رسول الله صلى الله عليه وسلم، فقال: ” صلاة الرجل في بيته تطوعا نور، فمن شاء نور بيته ” وقال في الغسل من الجنابة: ” يغسل فرجه، ثم يتوضأ، ثم يفيض على رأسه ثلاثا ” وقال في الحائض: ” له ما فوق الإزار إسناده ضعيف لجهالة الرجل الذي روى عنه عاصم بن عمرو، وباقي رجاله ثقات رجال الشيخين غير عاصم بن عمرو البجلي: فقد روى له ابن ماجه وهو صدوق وأخرجه الطيالسي (49) و (137) عن المسعودي، والطحاوي 3 / 36 – 37 من طريق أبي إسحاق، كلاهما عن عاصم بن عمرو البجلي، عن أحد النفر الذين أتوا عمر بن الخطاب، فقالوا: يا أمير المؤمنين جئناك … فذكره وأخرجه عبد الرزاق (988) ، والطحاوي 3 / 37 من طريق أبي إسحاق، وسعيد بن منصور في ” سننه ” (2143) ، وابن أبي شيبة 2 / 256 وعنه ابن ماجه (1375) من طريق طارق بن عبد الرحمن البجلي، والطحاوي 3 / 37 من طريق المسعودي، ثلاثتهم عن عاصم بن عمرو البجلي: أن قوما أتوا عمر … فذكره، غير أن رواية ابن أبي شيبة مختصرة بقصة صلاة الرجل في بيته، ورواية الطحاوي بقصة الحائض فقط وأخرجه ابن ماجه (1375) ، والطحاوي 3 / 37، والبيهقي 1 / 312 من طريق أبي إسحاق، عن عاصم بن عمرو، عن عمير مولى عمر بن الخطاب، عن عمر بن الخطاب، عن النبي صلى الله عليه وسلم، نحوه. وعمير مولى عمر بن الخطاب لم يرو عنه غير عاصم بن عمرو، فهو على هذا مجهول وقوله: ” يغسل فرجه ثم يتوضأ … ” له شاهد من حديث عائشة عند البخاري (248) ، ومسلم (316) وقوله: ” له ما فوق الإزار ” له شاهد من حديث عبد الله بن سعد القرشي عند أبي داود (212) ، وآخر من حديث عائشة عند البخاري (300) ومسلم (293) وأحمد 6 / 55، وثالث من حديث ميمونة عند البخاري (303) ومسلم (294)

 হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৮৭

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

৮৭। ইবনে উমার (রাঃ) বলেছেন, আমি ইরাকে সা’দ বিন আবি ওয়াক্কাসকে ওযূ করার সময় মোজার ওপর মাসিহ করতে দেখে অসন্তোষ প্ৰকাশ করলাম। পরে যখন আমরা উমার ইবনুল খাত্তাবের নিকট সমবেত হলাম, তখন সা’দ আমাকে বললেনঃ তুমি আমাকে মোজার ওপর মাসিহ করতে দেখে তো অসন্তোষ প্রকাশ করেছ। এখন সে সম্পর্কে তোমার আব্বাকে জিজ্ঞেস করতো দেখি। আমি উমারের নিকট বিষয়টির উল্লেখ করলাম। তিনি বললেনঃ সা’দ যখন তোমার নিকট কোন হাদীস বর্ণনা করে, তখন তা অগ্রাহ্য করো না। বস্তৃত রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম মোজার ওপর মাসিহ করতেন।[১]

[১]. ইবনে খুযাইমা, দেখুন, অত্র গ্রন্থের হাদীস নং ২৩৭

حَدَّثَنَا قُتَيْبَةُ بْنُ سَعِيدٍ، حَدَّثَنَا ابْنُ لَهِيعَةَ، عَنْ أَبِي النَّضْرِ، عَنْ أَبِي سَلَمَةَ عَنِ ابْنِ عُمَرَ أَنَّهُ قَالَ: رَأَيْتُ سَعْدَ بْنَ أَبِي وَقَّاصٍ يَمْسَحُ عَلَى خُفَّيْهِ بِالْعِرَاقِ حِينَ يَتَوَضَّأُ، فَأَنْكَرْتُ ذَلِكَ عَلَيْهِ، قَالَ: فَلَمَّا اجْتَمَعْنَا عِنْدَ عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ، قَالَ لِي: سَلْ أَبَاكَ عَمَّا أَنْكَرْتَ عَلَيَّ مِنْ مَسْحِ الْخُفَّيْنِ، قَالَ: فَذَكَرْتُ ذَلِكَ لَهُ، فَقَالَ: إِذَا حَدَّثَكَ سَعْدٌ بِشَيْءٍ فَلا تَرُدَّ عَلَيْهِ، فَإِنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يَمْسَحُ عَلَى الْخُفَّيْنِ

إسناده حسن، رجاله ثقات رجال الشيخين غير ابن لهيعة – وهو عبد الله – فقد روى له أبو داود والترمذي وابن ماجه وله في مسلم بعض شيء مقرون، وقد اختلط بعد احتراق كتبه، وأحاديث قتيبة عنه صحاح، انظر ” تهذيب الكمال ” 15 / 494، وجوّد هذا الإسناد الحافظ ابن كثير في ” مسند عمر ” ص 118. أبو النضر: هو سالم بن أبي أمية، وأبو سلمة: هو ابن عبد الرحمن بن عوف

وأخرجه الطبراني في ” الكبير ” (86) من طريق أبي إسحاق السبيعي، عن أبي سلمة، بهذا الإسناد

وأخرجه عبد الرزاق (763) عن عبد الله بن عمر، وابن خزيمة (184) من طريق أيوب، كلاهما عن نافع، عن ابن عمر

وأخرجه مالك في ” الموطأ ” 1 / 36 عن نافع وعبد الله بن دينار، عن ابن عمر. ولم برفع عمر الحديث إلى النبي صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وانظر (237)

حدثنا قتيبة بن سعيد، حدثنا ابن لهيعة، عن أبي النضر، عن أبي سلمة عن ابن عمر أنه قال: رأيت سعد بن أبي وقاص يمسح على خفيه بالعراق حين يتوضأ، فأنكرت ذلك عليه، قال: فلما اجتمعنا عند عمر بن الخطاب، قال لي: سل أباك عما أنكرت علي من مسح الخفين، قال: فذكرت ذلك له، فقال: إذا حدثك سعد بشيء فلا ترد عليه، فإن رسول الله صلى الله عليه وسلم كان يمسح على الخفين إسناده حسن، رجاله ثقات رجال الشيخين غير ابن لهيعة – وهو عبد الله – فقد روى له أبو داود والترمذي وابن ماجه وله في مسلم بعض شيء مقرون، وقد اختلط بعد احتراق كتبه، وأحاديث قتيبة عنه صحاح، انظر ” تهذيب الكمال ” 15 / 494، وجود هذا الإسناد الحافظ ابن كثير في ” مسند عمر ” ص 118. أبو النضر: هو سالم بن أبي أمية، وأبو سلمة: هو ابن عبد الرحمن بن عوف وأخرجه الطبراني في ” الكبير ” (86) من طريق أبي إسحاق السبيعي، عن أبي سلمة، بهذا الإسناد وأخرجه عبد الرزاق (763) عن عبد الله بن عمر، وابن خزيمة (184) من طريق أيوب، كلاهما عن نافع، عن ابن عمر وأخرجه مالك في ” الموطأ ” 1 / 36 عن نافع وعبد الله بن دينار، عن ابن عمر. ولم برفع عمر الحديث إلى النبي صلى الله عليه وسلم وانظر (237)

 হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৮৮

 শেয়ার ও অন্যান্য 

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পরিচ্ছেদঃ

৮৮। হাদীস নং ৮৭ এর অনুরূপ। দেখুন পূর্বের হাদিস। (বুখারী ও ইবনে খুযাইমা)।

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৮৯

 শেয়ার ও অন্যান্য 

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পরিচ্ছেদঃ

৮৯। মা’দান ইবনে আবি তালহা আল ইয়ামানী বর্ণনা করেনঃ এক শুক্রবারে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) মিম্বারে দাঁড়ালেন, তারপর আল্লাহর প্রশংসা ও গুণকীর্তন করলেন। তারপর রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের স্মৃতিচারণ করলেন ও আবু বাকরের স্মৃতিচারণ করলেন। তারপর বললেন, আমি এমন একটা স্বপ্ন দেখেছি যা আমার মৃত্যু আসন্ন হওয়া ছাড়া আর কোন দিকে ইঙ্গিত করে বলে আমার মনে হয় না। আমি দেখলাম, একটা মোরগ যেন আমাকে দুটো ঠোকর মারলো। বর্ণনাকারী বলেনঃ তিনি আমাকে বললেন যে, সেটি ছিল লাল মোরগ। আমি এ স্বপ্ন আবু বাকরের মেয়ে আসমা (রাঃ) নিকট বর্ণনা করলাম। তিনি বললেনঃ তোমাকে (উমারকে) জনৈক অনারব ব্যক্তি হত্যা করবে। উমার বললেনঃ জনগণ আমাকে আদেশ দিচ্ছে, আমি যেন পরবর্তী খলীফা মনোনীত করি। অথচ আল্লাহ তা’আলা তার দীনকে ও তার নবীর মাধ্যমে প্রেরিত খিলাফাতকে ধ্বংস করতে চাননা।

আর কোন জিনিস যদি আমাকে তাড়া করে তবে তা হলো, এই ছয়জনের পরামর্শের ওপর ব্যাপারটা ন্যস্ত করা যাদের ওপর সন্তুষ্ট থাকা অবস্থায়ই আল্লাহর নবী ইন্তিকাল করেছেন। এই ছয়জনের মধ্য থেকে যার হাতে তোমরা বাইয়াত করবে (খালীফা মেনে নেবে) তার কথা শুনবে ও আনুগত্য করবে। আমি জানি, এমন কিছু লোক এ বিষয় নিয়ে নিন্দায় মুখর হবে, যাদের সাথে আমি ইসলামের স্বার্থে এই হাত দিয়ে যুদ্ধ করেছি। তারা আল্লাহর দুশমন, কাফির ও বিপথগামী। আল্লাহর কসম, আমার প্রতিপালক আমার নিকট যে সকল জিনিসের দায়িত্ব ন্যস্ত করেছেন ও খিলাফত অর্পণ করেছেন, সে সব জিনিসের মধ্য থেকে ’কালালার’ চেয়ে আমার নিকট অধিক গুরুত্বপূর্ণ কিছুই আমি রেখে যাচ্ছিনা।

আল্লাহর কসম, আল্লাহর নবীর সাহচর্যে আমি যতদিন থেকেছি, ততদিন তিনি সবচেয়ে কঠোরভাবে যে জিনিসের ব্যাপারে আমাকে তাকিদ দিয়েছেন, তা হচ্ছে ’কালালা’ (যে ব্যক্তি নিঃসন্তান অবস্থায় মারা যায়) এমনকি তিনি (এর ওপর গুরুত্ব দেয়ার জন্য) তার আঙ্গুল দিয়ে আমার বুকে টোকা দিলেন এবং বললেনঃ সূরা আন নিসার শেষভাগে নাযিলকৃত গ্ৰীষ্মের আয়াত তোমার জন্য যথেষ্ট। আর আমি যদি বেঁচে থাকি, তবে কালালা সম্পর্কে এমন ফায়সালা করবো। যা স্বাক্ষর ও নিরক্ষর নির্বিশেষে সকলেই জানতে পারবে। আমি সকল শহরের আমীরদের ব্যাপারে আল্লাহকে সাক্ষী রেখে বলছি যে, আমি তাদেরকে এ জন্যই পাঠিয়েছি যেন তাঁরা জনগণকে ইসলামী শিক্ষা দেন, তাদেরকে তাঁদের নবীর অনুসৃত সুন্নাত তথা রীতিনীতি জানিয়ে দেন এবং তাঁরা যেসব বিষয় অবগত নয়, তা যেন আমার কাছে তুলে ধরেন।

তারপর শোন, তোমরা দুটো গাছের ফল খেয়ে থাকে, যাকে আমি খারাপই মনে করি। তা হচ্ছে পিয়াজ ও রসুন। আল্লাহর কসম, আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে দেখতাম, কোন ব্যক্তির মুখ থেকে পিয়াজ রসুনের গন্ধ পেলেই তার আদেশে তাকে হাত ধরে মসজিদ থেকে বের করে দেয়া হতো এবং বাকী পর্যন্ত নিয়ে যাওয়া হতো। তবে যে ব্যক্তির একান্তই পিয়াজ বা রসুন খাওয়া দরকার, সে যেন রান্না করে তার গন্ধ দূর করে খায়। উমার (রাঃ) জুমআর দিনে ভাষণ দিলেন এবং বুধবার শাহাদাতবরণ করলেন।[১]

[১]. মুসলিম, ইবনে খুযাইমা, দেখুন এই গ্রন্থের হাদীস নং ১৭৯, ১৮৬ ও ৩৪১

حَدَّثَنَا عَفَّانُ، حَدَّثَنَا هَمَّامُ بْنُ يَحْيَى، قَالَ: حَدَّثَنَا قَتَادَةُ، عَنْ سَالِمِ بْنِ أَبِي الْجَعْدِ الْغَطَفَانِيِّ، عَنْ مَعْدَانَ بْنِ أَبِي طَلْحَةَ الْيَعْمَرِيِّ: أَنَّ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ قَامَ عَلَى الْمِنْبَرِ يَوْمَ الْجُمُعَةِ، فَحَمِدَ اللهَ وَأَثْنَى عَلَيْهِ، ثُمَّ ذَكَرَ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وَذَكَرَ أَبَا بَكْرٍ، ثُمَّ قَالَ: رَأَيْتُ رُؤْيَا لَا أُرَاهَا إِلَّا لِحُضُورِ أَجَلِي، رَأَيْتُ كَأَنَّ دِيكًا نَقَرَنِي نَقْرَتَيْنِ، قَالَ: وَذَكَرَ لِي أَنَّهُ دِيكٌ أَحْمَرُ، فَقَصَصْتُهَا عَلَى أَسْمَاءَ بِنْتِ عُمَيْسٍ امْرَأَةِ أَبِي بَكْرٍ رَضِيَ اللهُ عَنْهُمَا، فَقَالَتْ: يَقْتُلُكَ رَجُلٌ مِنَ الْعَجَمِ. قَالَ: وَإِنَّ النَّاسَ يَأْمُرُونَنِي أَنْ أَسْتَخْلِفَ، وَإِنَّ اللهَ لَمْ يَكُنْ لِيُضَيِّعَ دِينَهُ، وَخِلافَتَهُ الَّتِي بَعَثَ بِهَا نَبِيَّهُ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وَإِنْ يَعْجَلْ بِي أَمْرٌ فَإِنَّ الشُّورَى فِي هَؤُلاءِ السِّتَّةِ الَّذِينَ مَاتَ نَبِيُّ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَهُوَ عَنْهُمْ رَاضٍ، فَمَنْ بَايَعْتُمْ مِنْهُمْ، فَاسْمَعُوا لَهُ وَأَطِيعُوا، وَإِنِّي أَعْلَمُ أَنَّ أُنَاسًا سَيَطْعَنُونَ فِي هَذَا الْأَمْرِ، أَنَا قَاتَلْتُهُمْ بِيَدِي هَذِهِ عَلَى الْإِسْلامِ، أُولَئِكَ أَعْدَاءُ اللهِ الْكُفَّارُ الضُّلَّالُ. وَايْمُ اللهِ، مَا أَتْرُكُ فِيمَا عَهِدَ إِلَيَّ رَبِّي فَاسْتَخْلَفَنِي شَيْئًا أَهَمَّ إِلَيَّ مِنَ الْكَلالَةِ، وَايْمُ اللهِ، مَا أَغْلَظَ لِي نَبِيُّ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي شَيْءٍ مُنْذُ صَحِبْتُهُ أَشَدَّ مَا أَغْلَظَ لِي فِي شَأْنِ الْكَلالَةِ، حَتَّى طَعَنَ بِإِصْبَعِهِ فِي صَدْرِي، وَقَالَ: ” تَكْفِيكَ آيَةُ الصَّيْفِ، الَّتِي نَزَلَتْ فِي آخِرِ سُورَةِ النِّسَاءِ ” وَإِنِّي إِنْ أَعِشْ فَسَأَقْضِي فِيهَا بِقَضَاءٍ يَعْلَمُهُ مَنْ يَقْرَأُ وَمَنْ لَا يَقْرَأُ وَإِنِّي أُشْهِدُ اللهَ عَلَى أُمَرَاءِ الْأَمْصَارِ إِنِّي إِنَّمَا بَعَثْتُهُمْ لِيُعَلِّمُوا النَّاسَ دِينَهُمْ، وَيُبَيِّنُوا لَهُمْ سُنَّةَ نَبِيِّهِمْ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وَيَرْفَعُوا إِلَيَّ مَا عُمِّيَ عَلَيْهِمْ ثُمَّ إِنَّكُمْ أَيُّهَا النَّاسُ تَأْكُلُونَ مِنْ شَجَرَتَيْنِ لَا أُرَاهُمَا إِلَّا خَبِيثَتَيْنِ: هَذَا الثُّومُ وَالْبَصَلُ، وَايْمُ اللهِ، لَقَدْ كُنْتُ أَرَى نَبِيَّ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَجِدُ رِيحَهُمَا مِنَ الرَّجُلِ فَيَأْمُرُ بِهِ فَيُؤْخَذُ بِيَدِهِ فَيُخْرَجُ بِهِ مِنَ الْمَسْجِدِ حَتَّى يُؤْتَى بِهِ الْبَقِيعَ، فَمَنْ أَكَلَهُمَا لَا بُدَّ، فَلْيُمِتْهُمَا طَبْخًا. قَالَ: فَخَطَبَ النَّاسَ يَوْمَ الْجُمُعَةِ، وَأُصِيبَ يَوْمَ الْأَرْبِعَاءِ

إسناده صحيح على شرط مسلم، رجاله ثقات رجال الشيخين غير مَعدان بن أبي طلحة، فهو من رجال مسلم

وأخرجه ابن سعد 3 / 335 من طريق عمرو بن عاصم الكلابي، عن همام، بهذا الإسناد

وأخرجه ابن سعد 3 / 335، والحميدي (10) و (29) ، والبزار (315) ، أبو يعلى (256) ، وأبو عوانة 1 / 408، والطبري 6 / 43، وابن حبان (2091) ، والبيهقي 6 / 224 من طريقين عن قتادة، به. وسيأتي برقم (179) و (186) و (241)

حدثنا عفان، حدثنا همام بن يحيى، قال: حدثنا قتادة، عن سالم بن أبي الجعد الغطفاني، عن معدان بن أبي طلحة اليعمري: أن عمر بن الخطاب قام على المنبر يوم الجمعة، فحمد الله وأثنى عليه، ثم ذكر رسول الله صلى الله عليه وسلم، وذكر أبا بكر، ثم قال: رأيت رؤيا لا أراها إلا لحضور أجلي، رأيت كأن ديكا نقرني نقرتين، قال: وذكر لي أنه ديك أحمر، فقصصتها على أسماء بنت عميس امرأة أبي بكر رضي الله عنهما، فقالت: يقتلك رجل من العجم. قال: وإن الناس يأمرونني أن أستخلف، وإن الله لم يكن ليضيع دينه، وخلافته التي بعث بها نبيه صلى الله عليه وسلم، وإن يعجل بي أمر فإن الشورى في هؤلاء الستة الذين مات نبي الله صلى الله عليه وسلم وهو عنهم راض، فمن بايعتم منهم، فاسمعوا له وأطيعوا، وإني أعلم أن أناسا سيطعنون في هذا الأمر، أنا قاتلتهم بيدي هذه على الإسلام، أولئك أعداء الله الكفار الضلال. وايم الله، ما أترك فيما عهد إلي ربي فاستخلفني شيئا أهم إلي من الكلالة، وايم الله، ما أغلظ لي نبي الله صلى الله عليه وسلم في شيء منذ صحبته أشد ما أغلظ لي في شأن الكلالة، حتى طعن بإصبعه في صدري، وقال: ” تكفيك آية الصيف، التي نزلت في آخر سورة النساء ” وإني إن أعش فسأقضي فيها بقضاء يعلمه من يقرأ ومن لا يقرأ وإني أشهد الله على أمراء الأمصار إني إنما بعثتهم ليعلموا الناس دينهم، ويبينوا لهم سنة نبيهم صلى الله عليه وسلم، ويرفعوا إلي ما عمي عليهم ثم إنكم أيها الناس تأكلون من شجرتين لا أراهما إلا خبيثتين: هذا الثوم والبصل، وايم الله، لقد كنت أرى نبي الله صلى الله عليه وسلم يجد ريحهما من الرجل فيأمر به فيؤخذ بيده فيخرج به من المسجد حتى يؤتى به البقيع، فمن أكلهما لا بد، فليمتهما طبخا. قال: فخطب الناس يوم الجمعة، وأصيب يوم الأربعاء إسناده صحيح على شرط مسلم، رجاله ثقات رجال الشيخين غير معدان بن أبي طلحة، فهو من رجال مسلم وأخرجه ابن سعد 3 / 335 من طريق عمرو بن عاصم الكلابي، عن همام، بهذا الإسناد وأخرجه ابن سعد 3 / 335، والحميدي (10) و (29) ، والبزار (315) ، أبو يعلى (256) ، وأبو عوانة 1 / 408، والطبري 6 / 43، وابن حبان (2091) ، والبيهقي 6 / 224 من طريقين عن قتادة، به. وسيأتي برقم (179) و (186) و (241)

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৯০

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

৯০। আবদুল্লাহ ইবনে উমার (রাঃ) বর্ণনা করেন, আমি, যুবাইর ও মিকদাদ বিন আসওয়াদ খাইবারে আমাদের জমি দেখতে গেলাম। খাইবারে পৌছে আমরা পৃথক হয়ে নিজ নিজ জমিতে অবস্থান করলাম। রাতে আমি যখন বিছানায় ঘুমিয়ে আছি, তখন আমার ওপর আক্রমণ চালানো হলো এবং কনুই থেকে আমার দুই হাত ভেঙ্গে ফেলা হলো। পরদিন ভোরে আমার সাথীদ্বয় আমার কাছে এল, আমার অবস্থা দেখে চিৎকার করে উঠলো এবং আমার কাছে জিজ্ঞেস করলো, কে আপনার এ অবস্থা করেছে? আমি বললামঃ জানি না। অতঃপর উভয়ে আমার হাত দুটো ঠিক করে দিল। তারপর আমাকে সাথে নিয়ে উমার (রাঃ) এর নিকট গেল। উমার (রাঃ) বললেনঃ হে জনতা, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম খাইবারের ইহুদীদের সাথে এই মর্মে চুক্তি করেছিলেন যে, আমরা যখন চাইব তাদেরকে বহিষ্কার করবো। ইতিমধ্যে তারা আবদুল্লাহ ইবনে উমারের ওপর আক্রমণ চালিয়েছে এবং তার দু’হাত ভেঙ্গে দিয়েছে, যেমন তোমরা জানতে পেরেছ। ইতিপূর্বে তো তারা আনসারদের ওপরও অত্যাচার চালিয়েছে। তারা যে এদেরই লোক তাতে কোন সন্দেহ নেই। ওরা ছাড়া খাইবারে আমাদের আর কোন শত্রুনেই। অতএব খাইবারে তোমাদের (মুসলিমদের) যার কোন সম্পত্তি আছে, সে যেন তা নিজ দখলে নিয়ে নেয়। কেননা আমি অচিরেই ইহুদীদেরকে বহিষ্কার করতে যাচ্ছি। অতঃপর তিনি তাদেরকে বহিষ্কার করেন।[১]

[১]. বুখারী

حَدَّثَنَا يَعْقُوبُ، حَدَّثَنَا أَبِي، عَنِ ابْنِ إِسْحَاقَ، قَالَ: حَدَّثَنِي نَافِعٌ مَوْلَى عَبْدِ اللهِ بْنِ عُمَرَ عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ عُمَرَ، قَالَ: خَرَجْتُ أَنَا وَالزُّبَيْرُ والْمِقْدَادُ بْنُ الْأَسْوَدِ إِلَى أَمْوَالِنَا بِخَيْبَرَ نَتَعَاهَدُهَا، فَلَمَّا قَدِمْنَاهَا تَفَرَّقْنَا فِي أَمْوَالِنَا، قَالَ: فَعُدِيَ عَلَيَّ تَحْتَ اللَّيْلِ، وَأَنَا نَائِمٌ عَلَى فِرَاشِي، فَفُدِعَتْ يَدَايَ مِنْ مِرْفَقَيَّ، فَلَمَّا أَصْبَحْتُ اسْتُصْرِخَ عَلَيَّ صَاحِبَايَ، فَأَتَيَانِي، فَسَأَلانِي عَمَّنْ صَنَعَ هَذَا بِكَ؟ قُلْتُ: لَا أَدْرِي، قَالَ: فَأَصْلَحَا مِنْ يَدَيَّ، ثُمَّ قَدِمُوا بِي عَلَى عُمَرَ فَقَالَ: هَذَا عَمَلُ يَهُودَ

ثُمَّ قَامَ فِي النَّاسِ خَطِيبًا، فَقَالَ: أَيُّهَا النَّاسُ، إِنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ عَامَلَ يَهُودَ خَيْبَرَ عَلَى أَنَّا نُخْرِجُهُمْ إِذَا شِئْنَا، وَقَدْ عَدَوْا عَلَى عَبْدِ اللهِ بْنِ عُمَرَ فَفَدَعُوا يَدَيْهِ كَمَا بَلَغَكُمْ، مَعَ عَدْوَتِهِمْ عَلَى الْأَنْصَارِيِّ قَبْلَهُ، لَا نَشُكُّ أَنَّهُمْ أَصْحَابُهُمْ، لَيْسَ لَنَا هُنَاكَ عَدُوٌّ غَيْرَهُمْ، فَمَنْ كَانَ لَهُ مَالٌ بِخَيْبَرَ فَلْيَلْحَقْ بِهِ فَإِنِّي مُخْرِجٌ يَهُودَ. فَأَخْرَجَهُمْ

إسناده حسن، ابن إسحاق – وهو محمد – حسن الحديث، وقد صرح هنا بالتحديث فانتفت شبهة تدليسه، وباقي رجاله ثقات رجال الشيخين. يعقوب: هو ابن إبراهيم بن سعد بن إبراهيم بن عبد الرحمن بن عوف

وأخرجه مختصراً أبو داود (3007) عن أحمد بن حنبل، بهذا الإسناد

وأخرجه كذلك البزار (154) من طريق يحيى بن سعيد الأموي، عن ابن إسحاق، به

وأخرجه البخاري (2730) من طريق مالك، عن نافع، به

وقوله: ” ففدعت “، الفَدَع – بالتحريك -: زيغ بين القدم وبين عظمة الساق، وكذلك في اليد، وهو أن تزول المفاصل عن أماكنها

حدثنا يعقوب، حدثنا أبي، عن ابن إسحاق، قال: حدثني نافع مولى عبد الله بن عمر عن عبد الله بن عمر، قال: خرجت أنا والزبير والمقداد بن الأسود إلى أموالنا بخيبر نتعاهدها، فلما قدمناها تفرقنا في أموالنا، قال: فعدي علي تحت الليل، وأنا نائم على فراشي، ففدعت يداي من مرفقي، فلما أصبحت استصرخ علي صاحباي، فأتياني، فسألاني عمن صنع هذا بك؟ قلت: لا أدري، قال: فأصلحا من يدي، ثم قدموا بي على عمر فقال: هذا عمل يهود ثم قام في الناس خطيبا، فقال: أيها الناس، إن رسول الله صلى الله عليه وسلم كان عامل يهود خيبر على أنا نخرجهم إذا شئنا، وقد عدوا على عبد الله بن عمر ففدعوا يديه كما بلغكم، مع عدوتهم على الأنصاري قبله، لا نشك أنهم أصحابهم، ليس لنا هناك عدو غيرهم، فمن كان له مال بخيبر فليلحق به فإني مخرج يهود. فأخرجهم إسناده حسن، ابن إسحاق – وهو محمد – حسن الحديث، وقد صرح هنا بالتحديث فانتفت شبهة تدليسه، وباقي رجاله ثقات رجال الشيخين. يعقوب: هو ابن إبراهيم بن سعد بن إبراهيم بن عبد الرحمن بن عوف وأخرجه مختصرا أبو داود (3007) عن أحمد بن حنبل، بهذا الإسناد وأخرجه كذلك البزار (154) من طريق يحيى بن سعيد الأموي، عن ابن إسحاق، به وأخرجه البخاري (2730) من طريق مالك، عن نافع، به وقوله: ” ففدعت “، الفدع – بالتحريك -: زيغ بين القدم وبين عظمة الساق، وكذلك في اليد، وهو أن تزول المفاصل عن أماكنها

 হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৯১

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

৯১। আবু হুরাইরা (রাঃ) বর্ণনা করেন, একদিন উমার (রাঃ) জুমু’আর খুৎবা দিচ্ছিলেন। সহসা এক ব্যক্তি এল। উমার (রাঃ) বললেনঃ তোমরা নামাযে আসতে বিলম্ব কর কেন? সে বললোঃ আযান শোনা মাত্ৰই আমি ওযূ করেছি। উমার (রাঃ) বললেনঃ তাই? তোমরা কি শোননি যে, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেন, তোমাদের কেউ জুমুআর নামাযে যেতে চাইলে তার গোসল করা উচিত।[১]

[১]. বুখারী, মুসলিম, ইবনে খুযাইমা, দেখুন। এই গ্রন্থের হাদীস নং ৩১৯, ৩২০

حَدَّثَنَا حَسَنُ بْنُ مُوسَى، وَحُسَيْنُ بْنُ مُحَمَّدٍ، قَالا: حَدَّثَنَا شَيْبَانُ، عَنْ يَحْيَى، عَنْ أَبِي سَلَمَةَ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ: أَنَّ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ بَيْنَا هُوَ يَخْطُبُ يَوْمَ الْجُمُعَةِ إِذْ جَاءَ رَجُلٌ، فَقَالَ عُمَرُ: لِمَ تَحْتَبِسُونَ عَنِ الصَّلاةِ؟ فَقَالَ الرَّجُلُ: مَا هُوَ إِلَّا أَنْ سَمِعْتُ النِّدَاءَ فَتَوَضَّأْتُ. فَقَالَ: أَيْضًا! أَوَلَمْ تَسْمَعُوا أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: ” إِذَا رَاحَ أَحَدُكُمْ إِلَى الْجُمُعَةِ فَلْيَغْتَسِلْ “؟

إسناده صحيح على شرط الشيخين. حسين بن محمد: هو ابن بهرام المرُّوذي، وشيبان: هو ابن عبد الرحمن النحوي، ويحيى: هو ابن أبي كثير

وأخرجه ابن أبي شيبة 2 / 93، والبخاري (882) من طريقين عن شيبان بن عبد الرحمن، بهذا الإسناد

وأخرجه الدارمي (1539) ، ومسلم (845) (4) ، وأبو داود (340) ، وأبو يعلى (258) ، وابن خزيمة (1748) ، والطحاوي 1 / 115 من طريقين عن يحيى بن أبي كثير، به. وسيأتي برقم (319) و (320) ، وانظر (312)

حدثنا حسن بن موسى، وحسين بن محمد، قالا: حدثنا شيبان، عن يحيى، عن أبي سلمة، عن أبي هريرة: أن عمر بن الخطاب بينا هو يخطب يوم الجمعة إذ جاء رجل، فقال عمر: لم تحتبسون عن الصلاة؟ فقال الرجل: ما هو إلا أن سمعت النداء فتوضأت. فقال: أيضا! أولم تسمعوا أن رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: ” إذا راح أحدكم إلى الجمعة فليغتسل “؟ إسناده صحيح على شرط الشيخين. حسين بن محمد: هو ابن بهرام المروذي، وشيبان: هو ابن عبد الرحمن النحوي، ويحيى: هو ابن أبي كثير وأخرجه ابن أبي شيبة 2 / 93، والبخاري (882) من طريقين عن شيبان بن عبد الرحمن، بهذا الإسناد وأخرجه الدارمي (1539) ، ومسلم (845) (4) ، وأبو داود (340) ، وأبو يعلى (258) ، وابن خزيمة (1748) ، والطحاوي 1 / 115 من طريقين عن يحيى بن أبي كثير، به. وسيأتي برقم (319) و (320) ، وانظر (312)

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৯২

 শেয়ার ও অন্যান্য 

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পরিচ্ছেদঃ

৯২। আবু উসমান বলেছেন, আমরা যখন আযার বাইজানে, তখন আমাদের কাছে উমারের চিঠি এল। তিনি লিখলেনঃ হে উতবা ইবনে ফারকাদ, বিলাসিতা থেকে, মুশরিকদের বেশভূষা থেকে ও রেশম থেকে সাবধান। কেননা রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাদেরকে রেশম পরতে নিষেধ করেছেন, তবে এটুকু পরিমাণ। এই বলে রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাদের দিকে তার (মধ্যম ও শাহাদাত) আঙ্গুলদ্বয় তুলে ধরলেন। ইমাম মুসলিমের এক বর্ণনায় বলা হয়েছে, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম দুই, তিন অথবা চার আঙ্গুলের অধিক পরিমাণ রেশমী কাপড় পরতে নিষেধ করেছেন।[১]

[১]. বুখারী, মুসলিম, দেখুন। এই গ্রন্থে হাদীস নং ২৪২, ২৪৩, ৩০১, ৩৫৬, ৩৫৭

حَدَّثَنَا حَسَنُ بْنُ مُوسَى، قَالَ: حَدَّثَنَا زُهَيْرٌ، قَالَ: حَدَّثَنَا عَاصِمٌ الْأَحْوَلُ، عَنْ أَبِي عُثْمَانَ، قَالَ: جَاءَنَا كِتَابُ عُمَرَ رَضِيَ اللهُ عَنْهُ وَنَحْنُ بِأَذْرَبِيجَانَ: يَا عُتْبَةَ بْنَ فَرْقَدٍ، وَإِيَّاكُمْ وَالتَّنَعُّمَ، وَزِيَّ أَهْلِ الشِّرْكِ، وَلَبُوسَ الْحَرِيرِ، فَإِنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ نَهَانَا عَنْ لَبُوسِ الْحَرِيرِ، وَقَالَ: ” إِلَّا هَكَذَا ” وَرَفَعَ لَنَا رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ إِصْبَعَيْهِ

إسناده صحيح على شرط الشيخين. زهير: هو ابن معاوية بن حُديج، وأبو عثمان: هو عبد الرحمن بن ملّ النهدي

وأخرجه البخاري (5829) ، ومسلم (2069) (12) عن أحمد بن عبد الله بن يونس، عن زهير بن معاوية، بهذا الإسناد

وأخرجه ابن أبي شيبة 8 / 348 و349، ومسلم (2069) (13) ، وأبو داود (4042) ، وابن ماجه (2820) و (3593) ، والبزار (307) ، وأبو يعلى (213) و (214) ، والبغوي في ” الجعديات ” (1031) من طرق عن عاصم الأحول، به. وسيأتي برقم (242) و (243) و (301) و (356) و (357)

حدثنا حسن بن موسى، قال: حدثنا زهير، قال: حدثنا عاصم الأحول، عن أبي عثمان، قال: جاءنا كتاب عمر رضي الله عنه ونحن بأذربيجان: يا عتبة بن فرقد، وإياكم والتنعم، وزي أهل الشرك، ولبوس الحرير، فإن رسول الله صلى الله عليه وسلم نهانا عن لبوس الحرير، وقال: ” إلا هكذا ” ورفع لنا رسول الله صلى الله عليه وسلم إصبعيه إسناده صحيح على شرط الشيخين. زهير: هو ابن معاوية بن حديج، وأبو عثمان: هو عبد الرحمن بن مل النهدي وأخرجه البخاري (5829) ، ومسلم (2069) (12) عن أحمد بن عبد الله بن يونس، عن زهير بن معاوية، بهذا الإسناد وأخرجه ابن أبي شيبة 8 / 348 و349، ومسلم (2069) (13) ، وأبو داود (4042) ، وابن ماجه (2820) و (3593) ، والبزار (307) ، وأبو يعلى (213) و (214) ، والبغوي في ” الجعديات ” (1031) من طرق عن عاصم الأحول، به. وسيأتي برقم (242) و (243) و (301) و (356) و (357)

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৯৩

 শেয়ার ও অন্যান্য 

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পরিচ্ছেদঃ

৯৩। আবু সিনান দুয়ালী (রাঃ) বলেন, তিনি একদা উমার (রাঃ) এর নিকট গেলেন। তখন তাঁর কাছে প্রথম যুগের একদল মুহাজির ছিলেন। উমার ইরাকের একটি দুর্গ থেকে আনা একটি ব্যাগ আনলেন, যাতে একটা আংটি ছিল। উমার (রাঃ) এর এক ছেলে তা নিজের মুখে ঢুকালো। উমার (রাঃ) তৎক্ষণাত সেটি তার কাছ থেকে কেড়ে নিলেন। তারপর উমার (রাঃ) কাঁদতে লাগলেন। তখন তার কাছে উপস্থিত একজন বললো, আপনি কাঁদছেন কেন? আল্লাহ তো আপনাকে বিজয় ও প্রাচুর্য দিয়েছেন। আপনাকে আপনার শত্রুর ওপর পরাক্রান্ত করেছেন এবং আপনার চক্ষু ঠাণ্ডা করেছেন। উমার (রাঃ) বললেনঃ আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে বলতে শুনেছি, আল্লাহ যখনই কাউকে সম্পদের প্রাচুর্য দেন, তখন তাদের মধ্যে কিয়ামত পর্যন্ত স্থায়ী শত্রুতা ও কলহ-কোন্দল ঢুকিয়ে দেন। আমি সেটিরই আশঙ্কা করছি।

حَدَّثَنَا حَسَنٌ، قَالَ: حَدَّثَنَا ابْنُ لَهِيعَةَ، حَدَّثَنَا أَبُو الْأَسْوَدِ، أَنَّهُ سَمِعَ مُحَمَّدَ بْنَ عَبْدِ الرَّحْمَنِ ابْنِ لَبِيبَةَ يُحَدِّثُ عَنْ أَبِي سِنَانٍ الدُّؤَلِيِّ: أَنَّهُ دَخَلَ عَلَى عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ وَعِنْدَهُ نَفَرٌ مِنَ الْمُهَاجِرِينَ الْأَوَّلِينَ، فَأَرْسَلَ عُمَرُ إِلَى سَفَطٍ أُتِيَ بِهِ مِنْ قَلْعَةٍ مِنَ الْعِرَاقِ، فَكَانَ فِيهِ خَاتَمٌ، فَأَخَذَهُ بَعْضُ بَنِيهِ فَأَدْخَلَهُ فِي فِيهِ فَانْتَزَعَهُ عُمَرُ مِنْهُ ثُمَّ بَكَى عُمَرُ رَضِيَ اللهُ عَنْهُ، فَقَالَ لَهُ مَنْ عِنْدَهُ: لِمَ تَبْكِي وَقَدْ فَتَحَ اللهُ لَكَ، وَأَظْهَرَكَ عَلَى عَدُوِّكَ، وَأَقَرَّ عَيْنَكَ؟ فَقَالَ عُمَرُ: إِنِّي سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: ” لَا تُفْتَحُ الدُّنْيَا عَلَى أَحَدٍ إِلَّا أَلْقَى الله عَزَّ وَجَلَّ بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاءَ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ “، وَأَنَا أُشْفِقُ مِنْ ذَلِكَ

إسناده ضعيف لضعف ابن لهيعة ومحمد بن عبد الرحمن بن لبيبة. حسن: هو ابن موسى الأشيب، وأبو الأسود: هو محمد بن عبد الرحمن بن نوفل يتيم عُروة، وأبو سنان الدؤلي: هو يزيد بن أمية

وأخرجه عبد بن حميد (44) ، والبزار (311) من طريق الحسن بن موسى، بهذا الإسناد

والسَّفَط – محركة -: كالقفة

حدثنا حسن، قال: حدثنا ابن لهيعة، حدثنا أبو الأسود، أنه سمع محمد بن عبد الرحمن ابن لبيبة يحدث عن أبي سنان الدؤلي: أنه دخل على عمر بن الخطاب وعنده نفر من المهاجرين الأولين، فأرسل عمر إلى سفط أتي به من قلعة من العراق، فكان فيه خاتم، فأخذه بعض بنيه فأدخله في فيه فانتزعه عمر منه ثم بكى عمر رضي الله عنه، فقال له من عنده: لم تبكي وقد فتح الله لك، وأظهرك على عدوك، وأقر عينك؟ فقال عمر: إني سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: ” لا تفتح الدنيا على أحد إلا ألقى الله عز وجل بينهم العداوة والبغضاء إلى يوم القيامة “، وأنا أشفق من ذلك إسناده ضعيف لضعف ابن لهيعة ومحمد بن عبد الرحمن بن لبيبة. حسن: هو ابن موسى الأشيب، وأبو الأسود: هو محمد بن عبد الرحمن بن نوفل يتيم عروة، وأبو سنان الدؤلي: هو يزيد بن أمية وأخرجه عبد بن حميد (44) ، والبزار (311) من طريق الحسن بن موسى، بهذا الإسناد والسفط – محركة -: كالقفة

 হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৯৪

 শেয়ার ও অন্যান্য 

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পরিচ্ছেদঃ

৯৪। আবদুল্লাহ ইবনে উমার (রাঃ) স্বীয় পিতা উমার (রাঃ) থেকে বর্ণনা করেন। আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে জিজ্ঞেস করেছিলাম, কারো ওপর যদি গোসল ফারয বা ওয়াজিব হয় এবং সে গোসল করার আগে ঘুমাতে চায়, তা হলে সে কী করবে? রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বললেনঃ তার উচিত নামাযের ওযূর মত ওযূ করা, তারপর ঘুমানো।[১]

[১]. তিরমিযী, ইবনে খুযাইমা, অত্র গ্রন্থের হাদীস নং ১০৫, ১৬৫, ২৩০, ২৩৫, ৩২৬, ২৬৩ ও ৩০৬ দ্রষ্টব্য

حَدَّثَنَا يَعْقُوبُ، حَدَّثَنَا أَبِي، عَنِ ابْنِ إِسْحَاقَ، حَدَّثَنِي نَافِعٌ، عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ عُمَرَ عَنْ أَبِيهِ، قَالَ: سَأَلْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: كَيْفَ يَصْنَعُ أَحَدُنَا إِذَا هُوَ أَجْنَبَ، ثُمَّ أَرَادَ أَنْ يَنَامَ قَبْلَ أَنْ يَغْتَسِلَ؟ قَالَ: فَقَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: لِيَتَوَضَّأْ وُضُوءَهُ لِلصَّلاةِ، ثُمَّ لِيَنَمْ

إسناده حسن، رجاله ثقات رجال الشيخين غير ابنِ إسحاق – وهو محمد – فهو حسن الحديث، وقد صرح بالتحديث فانتفت شبهةُ تدليسه. يعقوب: هو ابن إبراهيم بن سعد بن إبراهيم بن عبد الرحمن بن عوف

وأخرجه عبد الرزاق (1077) ، والنسائي في ” الكبرى ” (9059) و (9063) ، والبزار (131) و (164) ، وأبو عوانة 1 / 277، والطبراني (80) من طرق عن نافع، بهذا الإسناد

وأخرجه البزار (107) ، والنسائي (9067) من طريق سالم بن عبد الله، والنسائي (9066) من طريق أبي سلمة بن عبد الرحمن، كلاهما عن عبد الله بن عمر، به. وسيأتي برقم (105) و (165) و (230) و (235) و (263) و (306) و (359)

حدثنا يعقوب، حدثنا أبي، عن ابن إسحاق، حدثني نافع، عن عبد الله بن عمر عن أبيه، قال: سألت رسول الله صلى الله عليه وسلم: كيف يصنع أحدنا إذا هو أجنب، ثم أراد أن ينام قبل أن يغتسل؟ قال: فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم: ليتوضأ وضوءه للصلاة، ثم لينم إسناده حسن، رجاله ثقات رجال الشيخين غير ابن إسحاق – وهو محمد – فهو حسن الحديث، وقد صرح بالتحديث فانتفت شبهة تدليسه. يعقوب: هو ابن إبراهيم بن سعد بن إبراهيم بن عبد الرحمن بن عوف وأخرجه عبد الرزاق (1077) ، والنسائي في ” الكبرى ” (9059) و (9063) ، والبزار (131) و (164) ، وأبو عوانة 1 / 277، والطبراني (80) من طرق عن نافع، بهذا الإسناد وأخرجه البزار (107) ، والنسائي (9067) من طريق سالم بن عبد الله، والنسائي (9066) من طريق أبي سلمة بن عبد الرحمن، كلاهما عن عبد الله بن عمر، به. وسيأتي برقم (105) و (165) و (230) و (235) و (263) و (306) و (359)

 হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৯৫

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

৯৫। আবদুল্লাহ ইবনু আব্বাস (রাঃ) বর্ণনা করেন, আমি উমার ইবনুল খাত্তাবকে বলতে শুনেছিঃ যখন আবদুল্লাহ ইবনে উবাই (মদীনার চিহ্নিত মুনাফিক নেতা) মারা গেল, তখন রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া সাল্লাম সেখানে চলে গেলেন। তারপর যখন তার জানাযা পড়ার উদ্দেশ্যে তার লাশের দিকে মুখ করে দাঁড়ালেন, অমনি আমি ঘুরে গিয়ে তার বুক সোজা আড় হয়ে দাঁড়ালাম। বললাম, হে আল্লাহ্‌র রাসূল, আল্লাহর দুশমন আবদুল্লাহ ইবনে উবাই অমুক দিন, তার আয়ুষ্কালের হাতে গণা কয়েকদিন বাকী থাকতেও এই এই কথা বলেছিল। সেই ব্যক্তিরও কি আপনি জানাযা পড়ছেন? (আমি এ কথা বারবার বলছিলাম)। আর রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম মুচকি মুচকি হাসছিলেন।

আমি যখন অনেক বেশি বার কথাটা বললাম, তখন তিনি বললেন, হে উমার, তোমার প্রশ্নটা পরে করো। আমাকে যে ইখতিয়ার দেয়া হয়েছে, সেটাই আমি প্রয়োগ করছি। আমাকে বলা হয়েছেঃ “তুমি তাদের জন্য ক্ষমা চাও বা না চাও। (কিছুই এসে যায় না), তুমি যদি তাদের জন্য ৭০ বার ক্ষমা চাও তবুও আল্লাহ তাদেরকে ক্ষমা করবেন না।” আমি যদি জানতাম যে, ৭০ বারের চেয়েও বেশিবার ক্ষমা চাইলে তাদেরকে ক্ষমা করা হবে, তাহলে আরো বেশি বার ক্ষমা চাইতাম।

এরপর তিনি আবদুল্লাহ বিন উবাই এর জানাযা পড়ালেন এবং তার শবযাত্রায় সঙ্গী হলেন। তারপর তিনি তার কবরে তার শেষ কৃত্য সমাপন পর্যন্ত অবস্থান করলেন। প্রকৃত ব্যাপার তো আল্লাহ ও তাঁর রাসূলই ভাল জানেন। তবে রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের এসব কাজে আমার দুঃসাহসিক আপত্তি জান্নাতে দেখে বিস্ময়বোধের সৃষ্টি হচ্ছিল। আল্লাহর কসম, এর পর বেশি সময় অতিবাহিত হয়নি। সহসা আয়াত নাযিল হলোঃ ..“আপনি তাদের কারো জানাযা পড়বেন না এবং কবরে দাঁড়াবেন না। তারা আল্লাহ ও তাঁর রাসূলের সাথে কুফরী করেছিল এবং অবাধ্য থাকা অবস্থায়ই মৃত্যুবরণ করেছিল। এরপর রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম স্বীয় ইন্তিকাল পর্যন্ত আর কখনো কোন মুনাফিকের জানাযা পড়েননি এবং তার কবরেও দাঁড়াননি।[১]

[১]. বুখারী, ইবনু হিব্বান

حَدَّثَنَا يَعْقُوبُ، حَدَّثَنَا أَبِي، عَنِ ابْنِ إِسْحَاقَ، حَدَّثَنِي الزُّهْرِيُّ، عَنْ عُبَيْدِ اللهِ بْنِ عَبْدِ اللهِ بْنِ عُتْبَةَ بْنِ مَسْعُودٍ، عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ عَبَّاسٍ، قَالَ: سَمِعْتُ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ يَقُولُ: لَمَّا تُوُفِّيَ عَبْدُ اللهِ بْنُ أُبَيٍّ، دُعِيَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ لِلصَّلاةِ عَلَيْهِ، فَقَامَ إِلَيْهِ، فَلَمَّا وَقَفَ عَلَيْهِ يُرِيدُ الصَّلاةَ تَحَوَّلْتُ حَتَّى قُمْتُ فِي صَدْرِهِ، فَقُلْتُ: يَا رَسُولَ اللهِ أَعَلَى عَدُوِّ اللهِ عَبْدِ اللهِ بْنِ أُبَيٍّ الْقَائِلِ يَوْمَ كَذَا وَكَذَا – يُعَدِّدُ أَيَّامَهُ – قَالَ: وَرَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَتَبَسَّمُ، حَتَّى إِذَا أَكْثَرْتُ عَلَيْهِ، قَالَ: ” أَخِّرْ عَنِّي يَا عُمَرُ، إِنِّي خُيِّرْتُ فَاخْتَرْتُ، قَدْ قِيلَ (اسْتَغْفِرْ لَهُمْ أَوْ لَا تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ إِنْ تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ سَبْعِينَ مَرَّةً فَلَنْ يَغْفِرَ اللَّهُ لَهُمْ) [التوبة: ٨٠] ، لَوْ أَعْلَمُ أَنِّي إِنْ زِدْتُ عَلَى السَّبْعِينَ غُفِرَ لَهُ لَزِدْتُ. قَالَ: ثُمَّ صَلَّى عَلَيْهِ، وَمَشَى مَعَهُ، فَقَامَ عَلَى قَبْرِهِ حَتَّى فُرِغَ مِنْه

قَالَ: فَعَجَبٌ لِي وَجَرَاءَتِي عَلَى رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وَاللهُ وَرَسُولُهُ أَعْلَمُ. قَالَ: فَوَاللهِ مَا كَانَ إِلَّا يَسِيرًا حَتَّى نَزَلَتْ هَاتَانِ الْآيَتَانِ: (وَلَا تُصَلِّ عَلَى أَحَدٍ مِنْهُمْ مَاتَ أَبَدًا وَلَا تَقُمْ عَلَى قَبْرِهِ إِنَّهُمْ كَفَرُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَمَاتُوا وَهُمْ فَاسِقُونَ) ، فَمَا صَلَّى رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ بَعْدَهُ عَلَى مُنَافِقٍ، وَلا قَامَ عَلَى قَبْرِهِ حَتَّى قَبَضَهُ اللهُ عَزَّ وَجَلَّ

إسناده حسن، رجاله ثقات رجال الشيخين غير ابن إسحاق، وهو حسن الحديث، وقد صرح هنا بالتحديث

وأخرجه عبد بن حميد (19) ، وعنه الترمذي (3097) عن يعقوب بن إبراهيم، بهذا الإسناد

وأخرجه البزار (193) ، والطبري 10 / 205، وابن حبان (3176) من طرق عن ابن إسحاق، به

وأخرجه البخاري (1366) و (4671) ، والنسائي في ” المجتبى ” 4 / 67، وفي ” الكبرى ” (11225) من طريق عقيل بن خالد، عن الزهري، به

حدثنا يعقوب، حدثنا أبي، عن ابن إسحاق، حدثني الزهري، عن عبيد الله بن عبد الله بن عتبة بن مسعود، عن عبد الله بن عباس، قال: سمعت عمر بن الخطاب يقول: لما توفي عبد الله بن أبي، دعي رسول الله صلى الله عليه وسلم للصلاة عليه، فقام إليه، فلما وقف عليه يريد الصلاة تحولت حتى قمت في صدره، فقلت: يا رسول الله أعلى عدو الله عبد الله بن أبي القائل يوم كذا وكذا – يعدد أيامه – قال: ورسول الله صلى الله عليه وسلم يتبسم، حتى إذا أكثرت عليه، قال: ” أخر عني يا عمر، إني خيرت فاخترت، قد قيل (استغفر لهم أو لا تستغفر لهم إن تستغفر لهم سبعين مرة فلن يغفر الله لهم) [التوبة: ٨٠] ، لو أعلم أني إن زدت على السبعين غفر له لزدت. قال: ثم صلى عليه، ومشى معه، فقام على قبره حتى فرغ منه قال: فعجب لي وجراءتي على رسول الله صلى الله عليه وسلم، والله ورسوله أعلم. قال: فوالله ما كان إلا يسيرا حتى نزلت هاتان الآيتان: (ولا تصل على أحد منهم مات أبدا ولا تقم على قبره إنهم كفروا بالله ورسوله وماتوا وهم فاسقون) ، فما صلى رسول الله صلى الله عليه وسلم بعده على منافق، ولا قام على قبره حتى قبضه الله عز وجل إسناده حسن، رجاله ثقات رجال الشيخين غير ابن إسحاق، وهو حسن الحديث، وقد صرح هنا بالتحديث وأخرجه عبد بن حميد (19) ، وعنه الترمذي (3097) عن يعقوب بن إبراهيم، بهذا الإسناد وأخرجه البزار (193) ، والطبري 10 / 205، وابن حبان (3176) من طرق عن ابن إسحاق، به وأخرجه البخاري (1366) و (4671) ، والنسائي في ” المجتبى ” 4 / 67، وفي ” الكبرى ” (11225) من طريق عقيل بن خالد، عن الزهري، به

 হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৯৬

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

৯৬। না’ফে (রহঃ) বলেছেন, আবদুল্লাহ ইবনে উমার (রাঃ) বলতেন, যখন কোন পুরুষের নিকট মাত্র একটি কাপড় থাকে, তখন তা দিয়ে শরীরের নিম্নাংশ আচ্ছাদন করে নামায পড়া উচিত। আমি উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) কে বলতে শুনেছিঃ যখন একটি মাত্র কাপড় থাকে, তখন তা দিয়ে ইহুদীদের মত সমগ্র শরীর ঢেকনা। (অৰ্থাৎ নিম্নাংশ আগে পুরো আবৃত করা চাই। সমগ্র শরীর আবৃত করতে গিয়ে নিম্নাংশ যদি অনাবৃত হয়ে পড়ে তবে তা না করা উচিত) না’ফে (রহঃ) বলেনঃ আমি যদি বলতাম যে, তিনি এ উক্তি স্বয়ং রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম থেকে বর্ণনা করেছেন, তা হলেও আমি মিথ্যুক হতাম না বলে আমি আশা করি। [মুসনাদে ইবনে উমারে হাদীস নং ৬৩৫৬ দ্রষ্টব্য]

حَدَّثَنَا يَعْقُوبُ، حَدَّثَنَا أَبِي، عَنِ ابْنِ إِسْحَاقَ، كَمَا حَدَّثَنِي عَنْهُ نَافِعٌ مَوْلاهُ، قَالَ: كَانَ عَبْدُ اللهِ بْنُ عُمَرَ يَقُولُ: إِذَا لَمْ يَكُنْ لِلرَّجُلِ إِلَّا ثَوْبٌ وَاحِدٌ، فَلْيَأْتَزِرْ بِهِ ثُمَّ لِيُصَلِّ، فَإِنِّي سَمِعْتُ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ يَقُولُ ذَلِكَ، وَيَقُولُ: لَا تَلْتَحِفُوا بِالثَّوْبِ إِذَا كَانَ وَحْدَهُ كَمَا تَفْعَلُ الْيَهُودُ. قَالَ نَافِعٌ: وَلَوْ قُلْتُ لَكُ: إِنَّهُ أَسْنَدَ ذَلِكَ إِلَى رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ لَرَجَوْتُ أَنْ لَا أَكُونَ كَذَبْتُ

إسناده حسن. وانظر الحديث رقم (6356) من مسند عبد الله بن عمر

حدثنا يعقوب، حدثنا أبي، عن ابن إسحاق، كما حدثني عنه نافع مولاه، قال: كان عبد الله بن عمر يقول: إذا لم يكن للرجل إلا ثوب واحد، فليأتزر به ثم ليصل، فإني سمعت عمر بن الخطاب يقول ذلك، ويقول: لا تلتحفوا بالثوب إذا كان وحده كما تفعل اليهود. قال نافع: ولو قلت لك: إنه أسند ذلك إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم لرجوت أن لا أكون كذبت إسناده حسن. وانظر الحديث رقم (6356) من مسند عبد الله بن عمر

 হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan)  বর্ণনাকারীঃ নাফি‘ (রহঃ)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৯৭

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

৯৭। উকবা বিন আমের (রাঃ) বলেন, উমার (রাঃ) আমাকে বলেছেন যে, তিনি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে বলতে শুনেছেনঃ যে ব্যক্তি আল্লাহ ও আখিরাতে বিশ্বাসী থাকা অবস্থায় মারা যায়, তাকে বলা হয়, ৮টি দরজার যেটি দিয়ে ইচ্ছা, জান্নাতে প্রবেশ কর।

حَدَّثَنَا مُؤَمَّلٌ، حَدَّثَنَا حَمَّادٌ، قَالَ: حَدَّثَنَا زِيَادُ بْنُ مِخْرَاقٍ، عَنْ شَهْرٍ، عَنْ عُقْبَةَ بْنِ عَامِرٍ، قَالَ: حَدَّثَنِي عُمَرُ أَنَّهُ سَمِعَ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: ” مَنْ مَاتَ يُؤْمِنُ بِاللهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ، قِيلَ لَهُ: ادْخُلِ الْجَنَّةَ مِنْ أَيِّ أَبْوَابِ الْجَنَّةِ الثَّمَانِيَةِ شِئْت

حسن لغيره، وهذا إسناد ضعيف، مؤمل – وهو ابن إسماعيل – وإن كان سيئ الحفظ تابعه الطيالسي، لكن تبقى علَّة الحديث في شهر – وهو ابنُ حوشب – فقد وثقه جماعة والأكثر على تضعيفه

وأخرجه الطيالسي (30) عن حماد بن سلمة، بهذا الإسناد

وفي الباب عن مولى لرسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ سيأتي في ” المسند ” 3 / 443 و4 / 237 ورجاله ثقات

وعن عثمان بن عفان وسيأتي برقم (464)

حدثنا مؤمل، حدثنا حماد، قال: حدثنا زياد بن مخراق، عن شهر، عن عقبة بن عامر، قال: حدثني عمر أنه سمع رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: ” من مات يؤمن بالله واليوم الآخر، قيل له: ادخل الجنة من أي أبواب الجنة الثمانية شئت حسن لغيره، وهذا إسناد ضعيف، مؤمل – وهو ابن إسماعيل – وإن كان سيئ الحفظ تابعه الطيالسي، لكن تبقى علة الحديث في شهر – وهو ابن حوشب – فقد وثقه جماعة والأكثر على تضعيفه وأخرجه الطيالسي (30) عن حماد بن سلمة، بهذا الإسناد وفي الباب عن مولى لرسول الله صلى الله عليه وسلم سيأتي في ” المسند ” 3 / 443 و4 / 237 ورجاله ثقات وعن عثمان بن عفان وسيأتي برقم (464)

 হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৯৮

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

৯৮। মুজাহিদ (রহঃ) বলেনঃ এক ব্যক্তি নিজের তরবারী দিয়ে তার ছেলেকে আঘাত করলো এবং হত্যা করলো। এরপর ঘটনাটি উমার (রাঃ) এর নিকট উত্থাপিত হলো। তিনি বললেন, আমি যদি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে একথা বলতে না শুনতাম যে, কোন পিতাকে আপনি সন্তান হত্যার অপরাধে মৃত্যুদণ্ড দেয়া হবে না, তাহলে আমি তোমাকে স্থান ত্যাগ করার আগেই হত্যা করতাম।

حَدَّثَنَا أَسْوَدُ بْنُ عَامِرٍ، قَالَ: أَخْبَرَنَا جَعْفَرٌ – يَعْنِي الْأَحْمَرَ – عَنْ مُطَرِّفٍ، عَنِ الْحَكَمِ، عَنْ مُجَاهِدٍ، قَالَ: حَذَفَ رَجُلٌ ابْنًا لَهُ بِسَيْفٍ فَقَتَلَهُ، فَرُفِعَ إِلَى عُمَرَ، فَقَالَ: لَوْلا أَنِّي سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: لَا يُقَادُ الْوَالِدُ مِنْ وَلَدِهِ ” لَقَتَلْتُكَ قَبْلَ أَنْ تَبْرَحَ

حسن لغيره، رجاله ثقات رجال الشيخين غير جعفر الأحمر – وهو ابن زياد – فقد روى له الترمذي، وهو صدوق، لكن الحديث فيه انقطاع، مجاهد – وهو ابن جَبْر – لم يدرك عمر بن الخطاب، وسيأتي الحديثُ من طريق أخرى تقوده برقم (147) و (148) و (346) . مطرِّف: هو ابن طريف، والحكم: هو ابن عُتيبة

حدثنا أسود بن عامر، قال: أخبرنا جعفر – يعني الأحمر – عن مطرف، عن الحكم، عن مجاهد، قال: حذف رجل ابنا له بسيف فقتله، فرفع إلى عمر، فقال: لولا أني سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: لا يقاد الوالد من ولده ” لقتلتك قبل أن تبرح حسن لغيره، رجاله ثقات رجال الشيخين غير جعفر الأحمر – وهو ابن زياد – فقد روى له الترمذي، وهو صدوق، لكن الحديث فيه انقطاع، مجاهد – وهو ابن جبر – لم يدرك عمر بن الخطاب، وسيأتي الحديث من طريق أخرى تقوده برقم (147) و (148) و (346) . مطرف: هو ابن طريف، والحكم: هو ابن عتيبة

 হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ৯৯

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

৯৯। আবেস বিন রাবীয়া (রাঃ) বর্ণনা করেন, আমি উমার (রাঃ) কে দেখেছি, হাজরে আসওয়াদের দিকে তাকিয়ে বলছেন, “আল্লাহর কসম, আমি যদি না দেখতাম যে, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম তোমাকে চুমো খাচ্ছেন, তবে তোমাকে চুমো খেতাম না। তারপর উমার (রাঃ) হাজরে আসওয়াদকে চুমো খেলেন।[১]

[১]. বুখারী, মুসলিম, ইবনু হিব্বান, দেখুন। এই গ্রন্থের হাদীস নং ১৭৬, ৩২৫

حَدَّثَنَا أَسْوَدُ بْنُ عَامِرٍ، قَالَ: حَدَّثَنَا زُهَيْرٌ، عَنْ سُلَيْمَانَ الْأَعْمَشِ، حَدَّثَنَا إِبْرَاهِيمُ، عَنْ عَابِسِ بْنِ رَبِيعَةَ، قَالَ: رَأَيْتُ عُمَرَ نَظَرَ إِلَى الْحَجَرِ، فَقَالَ: أَمَا وَاللهِ لَوْلا أَنِّي رَأَيْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُقَبِّلُكَ مَا قَبَّلْتُكَ. ثُمَّ قَبَّلَهُ

إسناده صحيح على شرط الشيخين. زهير: هو ابن معاوية، وإبراهيم: هو ابن يزيد النخعي

وأخرجه البخاري (1597) ، وأبو داود (1873) ، والنسائي 5 / 227، وابن حبان (3822) ، والبيهقي 5 / 74، والبغوي في ” شرح السنة ” (1905) من طرق عن الأعمش، بهذا الإسناد. وسيأتي برقم (176) و (325)

حدثنا أسود بن عامر، قال: حدثنا زهير، عن سليمان الأعمش، حدثنا إبراهيم، عن عابس بن ربيعة، قال: رأيت عمر نظر إلى الحجر، فقال: أما والله لولا أني رأيت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقبلك ما قبلتك. ثم قبله إسناده صحيح على شرط الشيخين. زهير: هو ابن معاوية، وإبراهيم: هو ابن يزيد النخعي وأخرجه البخاري (1597) ، وأبو داود (1873) ، والنسائي 5 / 227، وابن حبان (3822) ، والبيهقي 5 / 74، والبغوي في ” شرح السنة ” (1905) من طرق عن الأعمش، بهذا الإسناد. وسيأتي برقم (176) و (325)

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১০০

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১০০। আবদুল্লাহ ইবনুস সা’দী জানিয়েছেন যে, তিনি উমার (রাঃ) এর খিলাফতকালে তার কাছে এলে উমার (রাঃ) তাঁকে বললেনঃ আমাকে কি এ কথা বলা হয়নি যে, তুমি জনগণের বিভিন্ন (সেবামূলক) কাজ কর, তারপর তোমাকে তার পারিশ্রমিক দেয়া হলে তা অপছন্দ কর? (অর্থাৎ এ কথা কি সত্য?) আমি (আবদুল্লাহ ইবনুস সাদী) বললামঃ হ্যাঁ। উমার (রাঃ) বললেনঃ তাহলে তুমি কি চাও? আমি বললামঃ আমার প্রচুর ঘোড়া ও দাসদাসী আছে। আমি সচ্ছল, আমি চাই, আমার পারিশ্রমিক মুসলিমদের জন্য সাদাকা হয়ে যাক। উমার (রাঃ) বললেনঃ এরূপ করো না। কারণ তুমি যা চেয়েছে, আমিও তা করতে চেয়েছিলাম। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাকে কিছু দান করতেন। তখন আমি বলতাম, এটি এমন কাউকে দিন, যে এর প্রতি আমার চেয়েও বেশি মুখাপেক্ষী। একবার তিনি আমাকে একটা সম্পত্তি দিলেন। আমি বললাম, এ সম্পত্তি আমার চেয়েও যার বেশি প্রয়োজন, তাকে দিন। রাসূলুল্লাল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বললেনঃ এটা নিয়ে নাও, এ দ্বারা আরো সম্পদ উৎপন্ন কর এবং সাদাকা কর। এই সম্পদ থেকে যা অযাচিতভাবেই তোমার হাতে আসে, তা নিয়ে নাও। আর যা আসেনা, তার প্রত্যাশী হয়োনা। (অর্থাৎ কখনো যদি কাজ করেও তার পারিশ্রমিক না জোটে, তবে তার জন্য পীড়াপীড়ি করো না। -অনুবাদক)[১]

[১]. (বুখারী, মুসলিম, ইবনে খুযাইমা, দেখুন অত্র গ্রন্থের ২৭৯ ও ২৮০ নং হাদীস)

حَدَّثَنَا أَبُو الْيَمَانِ، قَالَ: أَخْبَرَنَا شُعَيْبٌ، عَنِ الزُّهْرِيِّ، قَالَ: أَخْبَرَنَا السَّائِبُ بْنُ يَزِيدَ ابْنُ أُخْتِ نَمِرٍ، أَنَّ حُوَيْطِبَ بْنَ عَبْدِ الْعُزَّى أَخْبَرَهُ أَنَّ عَبْدَ اللهِ بْنَ السَّعْدِيِّ أَخْبَرَهُ: أَنَّهُ قَدِمَ عَلَى عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ فِي خِلافَتِهِ، فَقَالَ لَهُ عُمَرُ: أَلَمْ أُحَدَّثْ أَنَّكَ تَلِي مِنْ أَعْمَالِ النَّاسِ أَعْمَالًا، فَإِذَا أُعْطِيتَ الْعُمَالَةَ كَرِهْتَهَا؟ قَالَ: فَقُلْتُ: بَلَى، فَقَالَ عُمَرُ: فَمَا تُرِيدُ إِلَى ذَلِكَ؟ قَالَ: قُلْتُ: إِنَّ لِي أَفْرَاسًا وَأَعْبُدًا، وَأَنَا بِخَيْرٍ، وَأُرِيدُ أَنْ تَكُونَ عَمَالَتِي صَدَقَةً عَلَى الْمُسْلِمِينَ. فَقَالَ عُمَرُ: فَلا تَفْعَلْ، فَإِنِّي قَدْ كُنْتُ أَرَدْتُ الَّذِي أَرَدْتَ، فَكَانَ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُعْطِينِي الْعَطَاءَ، فَأَقُولُ: أَعْطِهِ أَفْقَرَ إِلَيْهِ مِنِّي، حَتَّى أَعْطَانِي مَرَّةً مَالًا، فَقُلْتُ: أَعْطِهِ أَفْقَرَ إِلَيْهِ مِنِّي، قَالَ: فَقَالَ لَهُ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” خُذْهُ فَتَمَوَّلْهُ، وَتَصَدَّقْ بِهِ، فَمَا جَاءَكَ مِنْ هَذَا الْمَالِ، وَأَنْتَ غَيْرُ مُشْرِفٍ وَلا سَائِلٍ، فَخُذْهُ، وَمَا لَا، فَلا تُتْبِعْهُ نَفْسَكَ

إسناده صحيح على شرط الشيخين. أبو اليمان: هو الحكم بن نافع، وشعيب: هو ابن أبي حمزة

وأخرجه الدارمي (1648) ، والبخاري (7163) ، والنسائي 5 / 104 عن أبي اليمان، بهذا الإسناد

وأخرجه الحميدي (21) ، ومسلم (1045) (111) ، والنسائي 5 / 103 و104، وابن خزيمة (2365) و (2366) ، والبزار (244) من طرق عن الزهري، به. إلا أن مسلماً لم يذكر في حديثه حويطب بن عبد العزَّى

وأخرجه عبد الرزاق (20045) عن معمر، عن الزهري، السائب بن يزيد قال: لقي عمر بن الخطاب عبد الله بن السعدي … فذكره. وانظر الحديث رقم (136) و (371)

العُمالة – بالضم : أجرة العمل، وبفتح العين: العمل نفسه، فتموَّله: أي اجعله لك مالاً. غير مشرف: غير متطلع إليه، ولا طامع فيه

حدثنا أبو اليمان، قال: أخبرنا شعيب، عن الزهري، قال: أخبرنا السائب بن يزيد ابن أخت نمر، أن حويطب بن عبد العزى أخبره أن عبد الله بن السعدي أخبره: أنه قدم على عمر بن الخطاب في خلافته، فقال له عمر: ألم أحدث أنك تلي من أعمال الناس أعمالا، فإذا أعطيت العمالة كرهتها؟ قال: فقلت: بلى، فقال عمر: فما تريد إلى ذلك؟ قال: قلت: إن لي أفراسا وأعبدا، وأنا بخير، وأريد أن تكون عمالتي صدقة على المسلمين. فقال عمر: فلا تفعل، فإني قد كنت أردت الذي أردت، فكان النبي صلى الله عليه وسلم يعطيني العطاء، فأقول: أعطه أفقر إليه مني، حتى أعطاني مرة مالا، فقلت: أعطه أفقر إليه مني، قال: فقال له النبي صلى الله عليه وسلم: ” خذه فتموله، وتصدق به، فما جاءك من هذا المال، وأنت غير مشرف ولا سائل، فخذه، وما لا، فلا تتبعه نفسك إسناده صحيح على شرط الشيخين. أبو اليمان: هو الحكم بن نافع، وشعيب: هو ابن أبي حمزة وأخرجه الدارمي (1648) ، والبخاري (7163) ، والنسائي 5 / 104 عن أبي اليمان، بهذا الإسناد وأخرجه الحميدي (21) ، ومسلم (1045) (111) ، والنسائي 5 / 103 و104، وابن خزيمة (2365) و (2366) ، والبزار (244) من طرق عن الزهري، به. إلا أن مسلما لم يذكر في حديثه حويطب بن عبد العزى وأخرجه عبد الرزاق (20045) عن معمر، عن الزهري، السائب بن يزيد قال: لقي عمر بن الخطاب عبد الله بن السعدي … فذكره. وانظر الحديث رقم (136) و (371) العمالة – بالضم : أجرة العمل، وبفتح العين: العمل نفسه، فتموله: أي اجعله لك مالا. غير مشرف: غير متطلع إليه، ولا طامع فيه

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১০১

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১০১। রবীয়া ইবনে দাররাজ বলেছেন যে, আলী ইবনে আবি তালেব (রাঃ) মক্কা যাওয়ার পথে আছরের পর দু’রাকআত নামায পড়লেন। উমার (রাঃ) এটা দেখে তার ওপর রাগান্বিত হলেন এবং বললেনঃ আল্লাহর কসম, আমি জানি, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এটা নিষিদ্ধ করেছেন। (দেখুন, হাদীস নং ১০৬)

حَدَّثَنَا سَكَنُ بْنُ نَافِعٍ الْبَاهِلِيُّ، قَالَ: حَدَّثَنَا صَالِحٌ، عَنِ الزُّهْرِيِّ، قَالَ: حَدَّثَنِي رَبِيعَةُ بْنُ دَرَّاجٍ: أَنَّ عَلِيَّ بْنَ أَبِي طَالِبٍ سَبَّحَ بَعْدَ الْعَصْرِ رَكْعَتَيْنِ فِي طَرِيقِ مَكَّةَ، فَرَآهُ عُمَرُ فَتَغَيَّظَ عَلَيْهِ، ثُمَّ قَالَ: أَمَا وَاللهِ لَقَدْ عَلِمْتَ أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ نَهَى عَنْهَا

إسناده ضعيف، صالح – وهو ابن أبي الأخضر – ضعيف، وربيعة بن دراج مختلف في سماع الزهري منه، وبعضهم رجح أنه من مسلمة الفتح وأنه عاش إلى عهد عمر، وقيل: قتل يوم الجمل، فهو على هذا منقطع أيضاً، وأُدخل بينهما راوٍ آخر، فكلمة ” حدثني ربيعة بن دراج ” في هذا الإسناد وهم، ولعله من صالح بن أبي الأخضر، كما قال الشيخ أحمد شاكر، وسيأتي الحديث برقم (106) ، من طريق معمر عن الزهري، فقال عن ربيعة. وانظر ” علل الدارقطني ” 2 / 149، و” تعجيل المنفعة ” رقم (310) ، و” الإصابة ” رقم الترجمة (2597)

وأخرجه الطحاوي في ” شرح معاني الآثار ” 1 / 303 من طريق عقيل بن خالد، عن الزهري، عن حرام بن دراج، عن علي. كذا سماه هنا: حراماً

حدثنا سكن بن نافع الباهلي، قال: حدثنا صالح، عن الزهري، قال: حدثني ربيعة بن دراج: أن علي بن أبي طالب سبح بعد العصر ركعتين في طريق مكة، فرآه عمر فتغيظ عليه، ثم قال: أما والله لقد علمت أن رسول الله صلى الله عليه وسلم نهى عنها إسناده ضعيف، صالح – وهو ابن أبي الأخضر – ضعيف، وربيعة بن دراج مختلف في سماع الزهري منه، وبعضهم رجح أنه من مسلمة الفتح وأنه عاش إلى عهد عمر، وقيل: قتل يوم الجمل، فهو على هذا منقطع أيضا، وأدخل بينهما راو آخر، فكلمة ” حدثني ربيعة بن دراج ” في هذا الإسناد وهم، ولعله من صالح بن أبي الأخضر، كما قال الشيخ أحمد شاكر، وسيأتي الحديث برقم (106) ، من طريق معمر عن الزهري، فقال عن ربيعة. وانظر ” علل الدارقطني ” 2 / 149، و” تعجيل المنفعة ” رقم (310) ، و” الإصابة ” رقم الترجمة (2597) وأخرجه الطحاوي في ” شرح معاني الآثار ” 1 / 303 من طريق عقيل بن خالد، عن الزهري، عن حرام بن دراج، عن علي. كذا سماه هنا: حراما

 হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f)  পুনঃনিরীক্ষণঃ   মুসনাদে আহমাদ  মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

পরিচ্ছেদঃ

১০২। আবদুর রহমান বিন ইয়াকুব বনু সাহম বংশোদ্ভূত মাজেদা নামক এক ব্যক্তি থেকে বর্ণনা করেন যে, মাজেদা বলেছেনঃ মক্কায় এক যুবকের সাথে আমার সংঘর্ষ বেধেছিল। তখন সে আমার কান কামড়ে তার একাংশ বিচ্ছিন্ন করে ফেলে, অথবা আমি তার কান কামড়ে একাংশ বিচ্ছিন্ন করে ফেলি। (বর্ণনাকারীর সন্দেহ যে, মাজেদা এই দুটি কথার যে কোন একটি বলেছে) এরপর যখন আবু বাকর হজ্জ করতে মক্কায় এলেন, তখন আমাদের উভয়ের ঘটনাটি তার কাছে পেশ করা হলো। তখন তিনি আমাদের উভয়কে উমার ইবনুল খাত্তাবের কাছে নিয়ে যেতে আদেশ দিলেন। আমাদেরকে যখন উমার (রাঃ) এর নিকট নিয়ে যাওয়া হলো, তখন উমার (রাঃ) আমাদের উভয়ের দিকে তাকিয়ে বললেনঃ হ্যাঁ, ব্যাপারটা এতদূর গড়িয়েছে যে, কিসাস নিতে হবে। (সমপরিমাণ বদলা নিতে হবে, অর্থাৎ অভিযুক্ত ব্যক্তির কান কেটে দিতে হবে) তোমরা একজন হাজ্জামকে (পেশাদার কর্তনকারী) আমার কাছে ডেকে আন। তিনি যখন হাজ্জামের কথা বললেন, তখন মাজেদা বললেনঃ শুনে রাখুন, আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে বলতে শুনেছি, আমি আমার খালাকে একটি দাস দান করেছি আর আমি আশা করি আল্লাহ্‌ তাকে এর মধ্যে বরকত দিবেন। আমি তাকে (দাসটিকে) পেশাদার কর্তনকারী, কিংবা কসাই কিংবা স্বর্ণকারে পরিণত করতে খালাকে নিষেধ করেছি।[১]

[১]. আবু দাউদ, হাদীস নং ১০৩ দেখুন।

حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ يَزِيدَ، حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ إِسْحَاقَ، قَالَ: حَدَّثَنَا الْعَلاءُ بْنُ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ يَعْقُوبَ، عَنْ رَجُلٍ مِنْ قُرَيْشٍ مِنْ بَنِي سَهْمٍ عَنْ رَجُلٍ مِنْهُمْ يُقَالُ لَهُ: مَاجِدَةُ، قَالَ: عَارَمْتُ غُلامًا بِمَكَّةَ فَعَضَّ أُذُنِي فَقَطَعَ مِنْهَا – أَوْ عَضِضْتُ أُذُنَهُ فَقَطَعْتُ مِنْهَا – فَلَمَّا قَدِمَ عَلَيْنَا أَبُو بَكْرٍ رَضِيَ اللهُ عَنْهُ حَاجًّا رُفِعْنَا إِلَيْهِ، فَقَالَ: انْطَلِقُوا بِهِمَا إِلَى عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ، فَإِنْ كَانَ الْجَارِحُ بَلَغَ أَنْ يُقْتَصَّ مِنْهُ فَلْيَقْتَصَّ، قَالَ: فَلَمَّا انْتُهِيَ بِنَا إِلَى عُمَرَ نَظَرَ إِلَيْنَا، فَقَالَ: نَعَمْ، قَدْ بَلَغَ هَذَا أَنْ يُقْتَصَّ مِنْهُ، ادْعُوا لِي حَجَّامًا. فَلَمَّا ذَكَرَ الْحَجَّامَ، قَالَ: أَمَا إِنِّي سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: ” قَدْ أَعْطَيْتُ خَالَتِي غُلامًا، وَأَنَا أَرْجُو أَنْ يُبَارِكَ اللهُ لَهَا فِيهِ، وَقَدْ نَهَيْتُهَا أَنْ تَجْعَلَهُ حَجَّامًا أَوْ قَصَّابًا أَوْ صَائِغًا

إسناده ضعيف لجهالة الرجل الذي من بني سهم، وجهالة ماجدة – ويقال: ابن ماجدة، ويقال: أبو ماجدة – وهو السَّهْمي. محمد بن يزيد: هو الكلاعي الواسطي

وأخرجه أبو داود (3430) و (3431) و (3432) من طرق عن ابن إسحاق، بهذا الإسناد. إلا أنه لم يذكر فيه الرجل من بني سهم. وسيأتي برقم (103)

قوله: ” عارمت غلاماً “، أي: خاصمته

وقوله: ” قد أعطيت خالتي “، قال السندي: قال الحافظ السيوطي في ” حاشية أبي داود “: سُئِلتُ عن هذه الخالة: مَن هي؟ فلم يَحضُرْني إذ ذاك، ثم رأيت الطبرانيَّ ذكر في ” المعجم الكبير ” 24 / (1073) فاختةَ بنت عمرو، أخرجه من طريق عثمان بن عبد الرحمن الوقاصي، عن محمد بن المنكدر، عن جابر قال: سمعت النبيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يقول

” وهبتُ لخالتي فاختة بنت عمرو غلاماً، وأمرتها أن لا تجعله جازراً ولا صائغاً ولا حَجّاماً “. (قلنا: وعثمان بن عبد الرحمن متروك)

وفي ” الإصابة ” للحافظ ابن حجر 4 / 362: فاختة بنت عمرو الزُّهرية، خالة النبي صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ … وأورد الحديث المذكور

قيل: إنما كره الحجام والقصاب لأجل النجاسة التي يباشرانها مع تعذُّر الاحتراز، وأما الصائغ فلِمَا يدخل في صنعته من الغش، ولأنه يَصُوغ الذهبَ والفضة، وربما كان منه آنية أو حُلِي للرجال، وهو حرام، أو لكثرة الوعد والكذب في كلامه

حدثنا محمد بن يزيد، حدثنا محمد بن إسحاق، قال: حدثنا العلاء بن عبد الرحمن بن يعقوب، عن رجل من قريش من بني سهم عن رجل منهم يقال له: ماجدة، قال: عارمت غلاما بمكة فعض أذني فقطع منها – أو عضضت أذنه فقطعت منها – فلما قدم علينا أبو بكر رضي الله عنه حاجا رفعنا إليه، فقال: انطلقوا بهما إلى عمر بن الخطاب، فإن كان الجارح بلغ أن يقتص منه فليقتص، قال: فلما انتهي بنا إلى عمر نظر إلينا، فقال: نعم، قد بلغ هذا أن يقتص منه، ادعوا لي حجاما. فلما ذكر الحجام، قال: أما إني سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: ” قد أعطيت خالتي غلاما، وأنا أرجو أن يبارك الله لها فيه، وقد نهيتها أن تجعله حجاما أو قصابا أو صائغا إسناده ضعيف لجهالة الرجل الذي من بني سهم، وجهالة ماجدة – ويقال: ابن ماجدة، ويقال: أبو ماجدة – وهو السهمي. محمد بن يزيد: هو الكلاعي الواسطي وأخرجه أبو داود (3430) و (3431) و (3432) من طرق عن ابن إسحاق، بهذا الإسناد. إلا أنه لم يذكر فيه الرجل من بني سهم. وسيأتي برقم (103) قوله: ” عارمت غلاما “، أي: خاصمته وقوله: ” قد أعطيت خالتي “، قال السندي: قال الحافظ السيوطي في ” حاشية أبي داود “: سئلت عن هذه الخالة: من هي؟ فلم يحضرني إذ ذاك، ثم رأيت الطبراني ذكر في ” المعجم الكبير ” 24 / (1073) فاختة بنت عمرو، أخرجه من طريق عثمان بن عبد الرحمن الوقاصي، عن محمد بن المنكدر، عن جابر قال: سمعت النبي صلى الله عليه وسلم يقول ” وهبت لخالتي فاختة بنت عمرو غلاما، وأمرتها أن لا تجعله جازرا ولا صائغا ولا حجاما “. (قلنا: وعثمان بن عبد الرحمن متروك) وفي ” الإصابة ” للحافظ ابن حجر 4 / 362: فاختة بنت عمرو الزهرية، خالة النبي صلى الله عليه وسلم … وأورد الحديث المذكور قيل: إنما كره الحجام والقصاب لأجل النجاسة التي يباشرانها مع تعذر الاحتراز، وأما الصائغ فلما يدخل في صنعته من الغش، ولأنه يصوغ الذهب والفضة، وربما كان منه آنية أو حلي للرجال، وهو حرام، أو لكثرة الوعد والكذب في كلامه

 হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১০৩

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১০৩। দেখুন পূর্বের হাদিস (১০২ নং)।

বিঃ দ্রঃ উপরোক্ত হাদীস দুটি থেকে জানা যায় যে, চাকর বাকরকে তাদের অনভ্যস্ত কোন পেশা গ্রহণে বাধ্য করা জায়েয নেই।

 হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১০৪

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১০৪। আবু সাঈদ (রাঃ) বর্ণনা করেন, উমার (রাঃ) জনগণের সামনে এক ভাষণ দিতে গিয়ে বললেনঃ মহান আল্লাহ যেমন চেয়েছেন, তাঁর নবীকে কাজ করার অনুমতি দিয়েছেন। আর আল্লাহর নবী আল্লাহর পথেই চলেছেন। সুতরাং তোমরা আল্লাহ যেভাবে আদেশ দিয়েছেন, সেভাবে হজ্জ ও উমরা সম্পাদন কর। আর নারীদের সতীত্ব সুরক্ষিত কর। (অর্থাৎ তাদেরকে অবিবাহিত রেখ না।)

حَدَّثَنَا عَبِيدَةُ بْنُ حُمَيْدٍ، عَنْ دَاوُدَ بْنِ أَبِي هِنْدَ، عَنْ أَبِي نَضْرَةَ، عَنْ أَبِي سَعِيدٍ، قَالَ: خَطَبَ عُمَرُ النَّاسَ، فَقَالَ: ” إِنَّ اللهَ عَزَّ وَجَلَّ رَخَّصَ لِنَبِيِّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مَا شَاءَ، وَإِنَّ نَبِيَّ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَدْ مَضَى لِسَبِيلِهِ، فَأَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ كَمَا أَمَرَكُمُ اللهُ عَزَّ وَجَلَّ، وَحَصِّنُوا فُرُوجَ هَذِهِ النِّسَاءِ

إسناده صحيح، رجاله ثقات رجال الصحيح. أبو نضرة: هو المنذر بن مالك بن قُطَعة العبدي

وأخرجه ابن أبي داود في ” المصاحف “: ص 113 من طريق يزيد بن زريع وبشر بن المفضل، عن داود بن أبي هند، بهذا الإسناد

وأخرجه بنحوه الطيالسي (1792) ، ومسلم (1217) ، وابن حبان (3940) من حديث جابر، عن عمر وقوله: ” رخَّص لنبيه … ” يريد أن المتعتين: متعة الحج، ومتعة النكاح، جوازهما في وقته صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كان مخصوصاً به للتخفيف على خلاف الأصل، وكان مَنُوطاً بإذنه، متى أَذن جاز، ومتى لم يأذن لم يَجُز، فرجع الأمر بموته إلى الأصل الذي هو عدم الجواز فيهما، وهذا الذي قال في متعة النساء صحيح، كيف وقد جاء النهيُ عنه صريحاً دون متعة الحج، ولذا اتفق العلماءُ فيها على الجواز. وانظر ما سيأتي برقم (369)

حدثنا عبيدة بن حميد، عن داود بن أبي هند، عن أبي نضرة، عن أبي سعيد، قال: خطب عمر الناس، فقال: ” إن الله عز وجل رخص لنبيه صلى الله عليه وسلم ما شاء، وإن نبي الله صلى الله عليه وسلم قد مضى لسبيله، فأتموا الحج والعمرة كما أمركم الله عز وجل، وحصنوا فروج هذه النساء إسناده صحيح، رجاله ثقات رجال الصحيح. أبو نضرة: هو المنذر بن مالك بن قطعة العبدي وأخرجه ابن أبي داود في ” المصاحف “: ص 113 من طريق يزيد بن زريع وبشر بن المفضل، عن داود بن أبي هند، بهذا الإسناد وأخرجه بنحوه الطيالسي (1792) ، ومسلم (1217) ، وابن حبان (3940) من حديث جابر، عن عمر وقوله: ” رخص لنبيه … ” يريد أن المتعتين: متعة الحج، ومتعة النكاح، جوازهما في وقته صلى الله عليه وسلم كان مخصوصا به للتخفيف على خلاف الأصل، وكان منوطا بإذنه، متى أذن جاز، ومتى لم يأذن لم يجز، فرجع الأمر بموته إلى الأصل الذي هو عدم الجواز فيهما، وهذا الذي قال في متعة النساء صحيح، كيف وقد جاء النهي عنه صريحا دون متعة الحج، ولذا اتفق العلماء فيها على الجواز. وانظر ما سيأتي برقم (369)

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১০৫

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১০৫। উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) বলেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে জিজ্ঞেস করা হয়েছিল, কোন ব্যক্তি (বীর্যপাতের কারণে) অপবিত্র হলে (পবিত্র না হয়ে) সে কি ঘুমাতে পারবে? রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বললেনঃ হ্যাঁ, যদি ওযূ করে তবে। (দেখুন, হাদীস ৯৪)

حَدَّثَنَا عَبِيدَةُ بْنُ حُمَيْدٍ، حَدَّثَنِي عُبَيْدُ اللهِ بْنُ عُمَرَ، عَنْ نَافِعٍ، عَنِ ابْنِ عُمَرَ عَنْ عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ، قَالَ: سُئِلَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَيَرْقُدُ الرَّجُلُ إِذَا أَجْنَبَ؟ قَالَ: نَعَمْ إِذَا تَوَضَّأَ

إسناده صحيح على شرط البخاري، رجاله ثقات رجال الشيخين غير عَبيدة بن حميد، فمن رجال البخاري

وأحرجه النسائي في ” الكبرى ” (9058) من طريق عبيدة بن حميد، بهذا الإسناد

وأخرجه ابن أبي شيبة 1 / 61، والترمذي (120) ، والنسائي في ” الكبرى ” (9059) ، والبزار (147) من طريقين عن عبيد الله بن عمر، به

وتقدم برقم (94) من طريق محمد بن إسحاق عن نافع

حدثنا عبيدة بن حميد، حدثني عبيد الله بن عمر، عن نافع، عن ابن عمر عن عمر بن الخطاب، قال: سئل رسول الله صلى الله عليه وسلم أيرقد الرجل إذا أجنب؟ قال: نعم إذا توضأ إسناده صحيح على شرط البخاري، رجاله ثقات رجال الشيخين غير عبيدة بن حميد، فمن رجال البخاري وأحرجه النسائي في ” الكبرى ” (9058) من طريق عبيدة بن حميد، بهذا الإسناد وأخرجه ابن أبي شيبة 1 / 61، والترمذي (120) ، والنسائي في ” الكبرى ” (9059) ، والبزار (147) من طريقين عن عبيد الله بن عمر، به وتقدم برقم (94) من طريق محمد بن إسحاق عن نافع

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১০৬

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১০৬। ১০১ নং হাদীস দ্রষ্টব্য

১০১। রবীয়া ইবনে দাররাজ বলেছেন যে, আলী ইবনে আবি তালেব (রাঃ) মক্কা যাওয়ার পথে আছরের পর দু’রাকআত নামায পড়লেন। উমার (রাঃ) এটা দেখে তার ওপর রাগান্বিত হলেন এবং বললেনঃ আল্লাহর কসম, আমি জানি, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এটা নিষিদ্ধ করেছেন।

 হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১০৭

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১০৭। উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) বলেছেন, আমি ইসলাম গ্রহণের পূর্বে একদিন রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে খুঁজতে বের হলাম। দেখলাম তিনি আমার আগেই মসজিদে (মসজিদে হারামে) পৌছেছেন, আমি তাঁর পেছনে দাঁড়ালাম। তিনি সূরা আল-হাক্কা পড়া শুরু করলেন। আল কুরআন কিভাবে আমার হৃদয়কে আকৃষ্ট করছে, তা দেখে আমি অভিভূত হলাম। (মনে মনে) বললাম, কুরাইশরা যেমন বলেছে, ইনি নিশ্চয়ই কবি। পরক্ষণেই তিনি (সূরাটির একটি আয়াত) পড়লেন, “এটি একজন সম্মানিত দূতের আনীত বাণী, এটি কোন কবির কথা নয়। তোমরা খুব কমই বিশ্বাস কর।” এরপর আমি (মনে মনে) বললাম, ইনি একজন জ্যোতিষী। পরক্ষণেই তিনি পড়লেন, “এটি কোন জ্যোতিষীর বাণীও নয়। তোমরা খুব কমই উপদেশ গ্রহণ করে থাক। এতো বিশ্ব প্রভুর পক্ষ থেকে অবতীর্ণ বাণী। আর যদি সে আমার সম্পর্কে কিছু কথা মনগড়াভাবে বলতো, তাহলে আমি তাকে হাত দিয়ে পাকড়াও করতাম, অতঃপর তার ঘাড়ের রগ কেটে ফেলতাম। তখন তোমাদের কেউ তাকে রক্ষা করতে পারতো না”। এভাবে তিনি পুরো সূরাটি শেষ করলেন। এতে ইসলাম আমার হৃদয়ে পূর্ণভাবে বদ্ধমূল হলো।

حَدَّثَنَا أَبُو الْمُغِيرَةِ، حَدَّثَنَا صَفْوَانُ، حَدَّثَنَا شُرَيْحُ بْنُ عُبَيْدٍ، قَالَ: قَالَ عُمَرُ بْنُ الْخَطَّابِ: خَرَجْتُ أَتَعَرَّضُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَبْلَ أَنْ أُسْلِمَ، فَوَجَدْتُهُ قَدْ سَبَقَنِي إِلَى الْمَسْجِدِ، فَقُمْتُ خَلْفَهُ، فَاسْتَفْتَحَ سُورَةَ الْحَاقَّةِ، فَجَعَلْتُ أَعْجَبُ مِنْ تَأْلِيفِ الْقُرْآنِ، قَالَ: فَقُلْتُ: هَذَا وَاللهِ شَاعِرٌ كَمَا قَالَتْ قُرَيْشٌ، قَالَ: فَقَرَأَ: (إِنَّهُ لَقَوْلُ رَسُولٍ كَرِيمٍ. وَمَا هُوَ بِقَوْلِ شَاعِرٍ قَلِيلًا مَّا تُؤْمِنُونَ) قَالَ: قُلْتُ: كَاهِنٌ، قَالَ: (وَلَا بِقَوْلِ كَاهِنٍ قَلِيلًا مَّا تَذَكَّرُونَ. تَنْزِيلٌ مِّنْ رَّبِّ الْعَالَمِينَ. وَلَوْ تَقَوَّلَ عَلَيْنَا بَعْضَ الْأَقَاوِيلِ. لَأَخَذْنَا مِنْهُ بِالْيَمِينِ. ثُمَّ لَقَطَعْنَا مِنْهُ الْوَتِينَ. فَمَا مِنْكُمْ مِّنْ أَحَدٍ عَنْهُ حَاجِزِينَ) [الحاقة: ٤٢ – ٤٧] إِلَى آخِرِ السُّورَةِ، قَالَ: فَوَقَعَ الْإِسْلامُ فِي قَلْبِي كُلَّ مَوْقِعٍ

إسناده ضعيف لانقطاعه، شريح بن عبيد لم يُدرك عمر

أبو المغيرة: هو عبد القدوس بن الحجاج الخولاني، وصفوان: هو ابن عمرو بن هَرِم السكسكي

وأورده الهيثمي في ” مجمع الزوائد ” 9 / 62 وقال: رواه الطبراني في ” الأوسط “، ورجاله ثقات إلا أن شريحَ بن عبيد لم يدرك عمر

حدثنا أبو المغيرة، حدثنا صفوان، حدثنا شريح بن عبيد، قال: قال عمر بن الخطاب: خرجت أتعرض رسول الله صلى الله عليه وسلم قبل أن أسلم، فوجدته قد سبقني إلى المسجد، فقمت خلفه، فاستفتح سورة الحاقة، فجعلت أعجب من تأليف القرآن، قال: فقلت: هذا والله شاعر كما قالت قريش، قال: فقرأ: (إنه لقول رسول كريم. وما هو بقول شاعر قليلا ما تؤمنون) قال: قلت: كاهن، قال: (ولا بقول كاهن قليلا ما تذكرون. تنزيل من رب العالمين. ولو تقول علينا بعض الأقاويل. لأخذنا منه باليمين. ثم لقطعنا منه الوتين. فما منكم من أحد عنه حاجزين) [الحاقة: ٤٢ – ٤٧] إلى آخر السورة، قال: فوقع الإسلام في قلبي كل موقع إسناده ضعيف لانقطاعه، شريح بن عبيد لم يدرك عمر أبو المغيرة: هو عبد القدوس بن الحجاج الخولاني، وصفوان: هو ابن عمرو بن هرم السكسكي وأورده الهيثمي في ” مجمع الزوائد ” 9 / 62 وقال: رواه الطبراني في ” الأوسط “، ورجاله ثقات إلا أن شريح بن عبيد لم يدرك عمر

 হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১০৮

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১০৮। উমার (রাঃ) যখন সারাগ পৌছলেন, তখন তাকে জানানো হলো যে, সিরিয়ায় মহামারী দেখা দিয়েছে। উমার (রাঃ) বললেন, আমি জানতে পেরেছি যে, সিরিয়ায় ভয়াবহ মহামারীর প্রাদুর্ভাব হয়েছে। আমি যদি মারা যাই এবং তখন আবু উবাইদা ইবনুল জাররাহ বেঁচে থাকেন, তবে আমি তাঁকে আমার পরবর্তী খালীফা মনোনীত করবো। এরপর আল্লাহ যদি আমাকে জিজ্ঞেস করেন, তাকে কেন মুহাম্মাদ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের উম্মাতের জন্য খালীফা মনোনীত করলে? আমি বলবো, আমি আপনার রাসূলকে বলতে শুনেছি যে, প্রত্যেক উম্মাতের একজন পরম বিশ্বস্ত ব্যক্তি থাকে, আর আমার উম্মাতের পরম বিশ্বস্ত ব্যক্তি হলো আবু উবাইদা।

কিন্তু জনগণ তার এ প্রস্তাব অগ্রাহ্য করলো এবং বললো, উর্ধ্বতন কুরাইশ ব্যক্তিবর্গের কী হয়েছে। তারা বনু ফিহরের ব্যক্তিবর্গের দিকে ইঙ্গিত করছিল। (অর্থাৎ তারা কী দোষ করেছে যে, তাদেরকে বাদ দিয়ে আবু উবাইদাকে মনোনীত করা হবে?) এরপর উমার (রাঃ) পুনরায় বললেন :যদি আমার মৃত্যু আসে এবং তখন আবু উবাইদা মারা গিয়ে থাকে, তাহলে আমি মুয়ায বিন জাবালকে খালীফা মনোনীত করবো। এরপর যদি আল্লাহ আমাকে জিজ্ঞেস করেন,ওকে কেন খালীফা মনোনীত করলে? আমি বলবো, আমি আপনার রাসূলকে বলতে শুনেছি যে, কিয়ামতের দিন আলিমদের সম্মুখে কতিপয় বাছাইকৃত ব্যক্তিকে জমায়েত করা হবে। (অর্থাৎ আমার বিবেচনায় সেই সব বাছাইকৃত ব্যক্তিবর্গেরই অন্যতম মুয়ায বিন জাবাল)

حَدَّثَنَا أَبُو الْمُغِيرَةِ، وَعِصَامُ بْنُ خَالِدٍ، قَالا: حَدَّثَنَا صَفْوَانُ، عَنْ شُرَيْحِ بْنِ عُبَيْدٍ وَرَاشِدِ بْنِ سَعْدٍ، وَغَيْرِهِمَا، قَالُوا: لَمَّا بَلَغَ عُمَرُ بْنُ الْخَطَّابِ سَرْغَ حُدِّثَ أَنَّ بِالشَّامِ وَبَاءً شَدِيدًا، قَالَ: بَلَغَنِي أَنَّ شِدَّةَ الْوَبَاءِ فِي الشَّامِ، فَقُلْتُ: إِنْ أَدْرَكَنِي أَجَلِي، وَأَبُو عُبَيْدَةَ بْنُ الْجَرَّاحِ حَيٌّ، اسْتَخْلَفْتُهُ، فَإِنْ سَأَلَنِي اللهُ: لِمَ اسْتَخْلَفْتَهُ عَلَى أُمَّةِ مُحَمَّدٍ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ؟ قُلْتُ: إِنِّي سَمِعْتُ رَسُولَكَ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: ” إِنَّ لِكُلِّ نَبِيٍّ أَمِينًا، وَأَمِينِي أَبُو عُبَيْدَةَ بْنُ الْجَرَّاحِ ” فَأَنْكَرَ الْقَوْمُ ذَلِكَ، وَقَالُوا: مَا بَالُ عُلْيَى قُرَيْشٍ؟! يَعْنُونَ بَنِي فِهْرٍ – ثُمَّ قَالَ: فَإِنْ أَدْرَكَنِي أَجَلِي، وَقَدْ تُوُفِّيَ أَبُو عُبَيْدَةَ، اسْتَخْلَفْتُ مُعَاذَ بْنَ جَبَلٍ، فَإِنْ سَأَلَنِي رَبِّي عَزَّ وَجَلَّ: لِمَ اسْتَخْلَفْتَهُ؟ قُلْتُ: سَمِعْتُ رَسُولَكَ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: ” إِنَّهُ يُحْشَرُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ بَيْنَ يَدَيِ الْعُلَمَاءِ نَبْذَةً

حسن لغيره، وهذا إسناد رجاله ثقات إلا أن شريح بن عبيد وراشد بن سعد لم يدركا عمر

وأخرجه أحمد في ” الفضائل ” (1287) ، وعمر بن شبة في ” تاريخ المدينة ” 3 / 886 من طريقين عن سعيد بن أبي عروبة، عن شهر بن حوشب قال: قال عمر. وهذا منقطع أيضاً شهر بن حوشب لم يدرك عمر

وأخرجه بنحوه مختصراً بن سعد 3 / 413، وأحمد في ” الفضائل ” (1285) ، والحاكم 3 / 268 من طريق كثير بن هشام، عن جعفر بن برقان، عن ثابت بن الحجاج قال: بلغني أن عمر بن الخطاب قال: لو أدركت أبا عبيدة بن الجراج لاستخلفته وما شاورت فيه، فإن سئلت عنه قلت: استخلفت أمين الله وأمين رسوله. وهذا منقطع أيضاً

وأخرج القسم الأخير منه ابن سعد 3 / 590 عن يزيد بن هارون، عن سعيد بن أبي عروبة، عن شهر بن حوشب قال: قال عمر بن الخطاب: لو أدركت معاذ بن جبل فاستخلفته، فسألني ربي عنه، لقلت: يا ربي سمعت نبيك يقول: ” إن العلماء إذا اجتمعوا يوم القيامة كان معاذ بن جبل بين أيديهم قذفة حجر

وأخرجه ابن أبي عاصم في ” الآحاد والمثاني ” 3 / 418 عن يعقوب بن كعب وعمر بن شبة 3 / 886 عن هارون بن معروف، كلاهما عن ضمرة بن ربيعة، عن يحيى بن أبي عمرو السيباني عن أبي العجفاء قال: قال عمر

وفيهما ” رتوة ” بدل: قذفة حجر، و” الرتوة ” قال في ” النهاية “: رمية سهم، وقيل: ميل، وقيل: مدى البص

وأخرجه ابن أبي شيبة 12 / 135، ومن طريقه ابن أبي عاصم 3 / 419 عن أبي معاوية، عن السيباني، عن محمد بن عبد الله الثقفي قال: قال رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: “معاذ بين يدي العلماء رتوة

وأخرجاه أيضاً عن حسين بن علي، عن زائدة، عن هشام بن حسان، عن الحسن البصري، رفعه ” معاذ بين يدي العلماء نبذة

وأخرج الطبراني في ” الكبير ” 20 / (41) ، وأبو نعيم في ” الحلية ” 1 / 229 من طريق عمارة بن غزية، عن محمد بن عبد الله بن أزهر الأنصاري، عن محمد بن كعب القرظي قال: قال رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” معاذ بن جبل أمام العلماء برتوة

وقوله: ” أن لكل نبي أميناً … ” أخرجه من حديث أنس البخاري (3744) و (4382) ومسلم (4419) وسيأتي في ” المسند ” 3 / 133

حدثنا أبو المغيرة، وعصام بن خالد، قالا: حدثنا صفوان، عن شريح بن عبيد وراشد بن سعد، وغيرهما، قالوا: لما بلغ عمر بن الخطاب سرغ حدث أن بالشام وباء شديدا، قال: بلغني أن شدة الوباء في الشام، فقلت: إن أدركني أجلي، وأبو عبيدة بن الجراح حي، استخلفته، فإن سألني الله: لم استخلفته على أمة محمد صلى الله عليه وسلم؟ قلت: إني سمعت رسولك صلى الله عليه وسلم يقول: ” إن لكل نبي أمينا، وأميني أبو عبيدة بن الجراح ” فأنكر القوم ذلك، وقالوا: ما بال عليى قريش؟! يعنون بني فهر – ثم قال: فإن أدركني أجلي، وقد توفي أبو عبيدة، استخلفت معاذ بن جبل، فإن سألني ربي عز وجل: لم استخلفته؟ قلت: سمعت رسولك صلى الله عليه وسلم يقول: ” إنه يحشر يوم القيامة بين يدي العلماء نبذة حسن لغيره، وهذا إسناد رجاله ثقات إلا أن شريح بن عبيد وراشد بن سعد لم يدركا عمر وأخرجه أحمد في ” الفضائل ” (1287) ، وعمر بن شبة في ” تاريخ المدينة ” 3 / 886 من طريقين عن سعيد بن أبي عروبة، عن شهر بن حوشب قال: قال عمر. وهذا منقطع أيضا شهر بن حوشب لم يدرك عمر وأخرجه بنحوه مختصرا بن سعد 3 / 413، وأحمد في ” الفضائل ” (1285) ، والحاكم 3 / 268 من طريق كثير بن هشام، عن جعفر بن برقان، عن ثابت بن الحجاج قال: بلغني أن عمر بن الخطاب قال: لو أدركت أبا عبيدة بن الجراج لاستخلفته وما شاورت فيه، فإن سئلت عنه قلت: استخلفت أمين الله وأمين رسوله. وهذا منقطع أيضا وأخرج القسم الأخير منه ابن سعد 3 / 590 عن يزيد بن هارون، عن سعيد بن أبي عروبة، عن شهر بن حوشب قال: قال عمر بن الخطاب: لو أدركت معاذ بن جبل فاستخلفته، فسألني ربي عنه، لقلت: يا ربي سمعت نبيك يقول: ” إن العلماء إذا اجتمعوا يوم القيامة كان معاذ بن جبل بين أيديهم قذفة حجر وأخرجه ابن أبي عاصم في ” الآحاد والمثاني ” 3 / 418 عن يعقوب بن كعب وعمر بن شبة 3 / 886 عن هارون بن معروف، كلاهما عن ضمرة بن ربيعة، عن يحيى بن أبي عمرو السيباني عن أبي العجفاء قال: قال عمر وفيهما ” رتوة ” بدل: قذفة حجر، و” الرتوة ” قال في ” النهاية “: رمية سهم، وقيل: ميل، وقيل: مدى البص وأخرجه ابن أبي شيبة 12 / 135، ومن طريقه ابن أبي عاصم 3 / 419 عن أبي معاوية، عن السيباني، عن محمد بن عبد الله الثقفي قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: “معاذ بين يدي العلماء رتوة وأخرجاه أيضا عن حسين بن علي، عن زائدة، عن هشام بن حسان، عن الحسن البصري، رفعه ” معاذ بين يدي العلماء نبذة وأخرج الطبراني في ” الكبير ” 20 / (41) ، وأبو نعيم في ” الحلية ” 1 / 229 من طريق عمارة بن غزية، عن محمد بن عبد الله بن أزهر الأنصاري، عن محمد بن كعب القرظي قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: ” معاذ بن جبل أمام العلماء برتوة وقوله: ” أن لكل نبي أمينا … ” أخرجه من حديث أنس البخاري (3744) و (4382) ومسلم (4419) وسيأتي في ” المسند ” 3 / 133

 হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১০৯

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১০৯। উমার (রাঃ) থেকে বর্ণিত। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের স্ত্রী উম্মু সালামার ভাইয়ের একটি ছেলে জন্ম নিল এবং তার নাম রাখা হলো ওয়ালীদ। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বললেন, তোমরা তোমাদের ফিরাউনদের নামে তার নামকরণ করলে? এই উম্মাতের মধ্যে ওয়ালীদ নামক এক ব্যক্তির উদ্ভব হবে, সে হবে এই উম্মাতের জন্য ফিরাউনের চেয়েও ক্ষতিকর।

حَدَّثَنَا أَبُو الْمُغِيرَةِ، حَدَّثَنَا ابْنُ عَيَّاشٍ، قَالَ: حَدَّثَنِي الْأَوْزَاعِيُّ وَغَيْرُهُ، عَنِ الزُّهْرِيِّ، عَنْ سَعِيدِ بْنِ الْمُسَيِّبِ عَنْ عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ، قَالَ: وُلِدَ لِأَخِي أُمِّ سَلَمَةَ زَوْجِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ غُلامٌ، فَسَمَّوْهُ: الْوَلِيدَ، فَقَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” سَمَّيْتُمُوهُ بِأَسْمَاءِ فَرَاعِنَتِكُمْ، لَيَكُونَنَّ فِي هَذِهِ الْأُمَّةِ رَجُلٌ يُقَالُ لَهُ: الْوَلِيدُ، لَهُوَ شَرٌّ عَلَى هَذِهِ الْأُمَّةِ مِنْ فِرْعَوْنَ لِقَوْمِهِ

إسناده ضعيف، سعيد بن المسيب لم يسمعه من عمر، وذِكر عمر فيه خطأ، قال الدارقطني في ” العلل ” 1 / 159: غيرُ إسماعيل بن عياش يرويه عن الأوزاعي ولا يذكر فيه ” عن عمر “، وهو الصواب

قلنا: أورد الخبر ابن حبان في ” المجروحين ” 1 / 125 وقال: هذا خبر باطل، ما قال رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ هذا، ولا عمر رواه، ولا سعيد حدَّث به، ولا الزهري رواه، ولا هو من حديث الأوزاعي بهذا الإسناد

وأخرجه ابن الجوزي في ” الموضوعات ” 2 / 46 من طريق ” المسند “، ونقل كلام ابن حبان فيه، وقال: فلعل هذا قد أدخل على إسماعيل بن عياش في كبره، وقد رواه وهو مختلط، قال أحمد بن حنبل: كان إسماعيل بن عياش يروي عن كل ضرب

وهذا الحديث أول حديث من الأحاديث التسعة التي أوردها العراقي على ” المسند ” على أنها موضوعة، وانظر ” القول المسدد ” 4 – 5 و12 – 17

وأخرجه البيهقي في ” دلائل النبوة ” 6 / 505 من طريق بشر بن بكر والوليد بن مسلم، كلاهما عن الأوزاعي، عن الزهري، عن سعيد بن المسيب، قال: ولد لأخي أم سلمة … فذكره. ولم يذكر فيه عمر. قال البيهقي: هذا مرسل حسن

وأخرجه الحاكم 4 / 494 من طريق نعيم بن حماد، عن الوليد بن مسلم، عن الأوزاعي، عن الزهري، عن ابن المسيب، عن أبي هريرة، قال: ولد لأخي أم سلمة … فذكره. وقال: هذا حديث صحيح على شرط الشيخين ولم يخرجاه، وأقره الذهبي! قال السيوطي في ” اللآلىء المصنوعة ” 1 / 110: رواية نعيم بن حماد عن الوليد بذكر أبي هريرة فيه شاذة. قلنا: نعيم بن حماد كثير الخطأ، والوليد بن مسلم يدلس تدليس التسوية، فالخبر باطل

حدثنا أبو المغيرة، حدثنا ابن عياش، قال: حدثني الأوزاعي وغيره، عن الزهري، عن سعيد بن المسيب عن عمر بن الخطاب، قال: ولد لأخي أم سلمة زوج النبي صلى الله عليه وسلم غلام، فسموه: الوليد، فقال النبي صلى الله عليه وسلم: ” سميتموه بأسماء فراعنتكم، ليكونن في هذه الأمة رجل يقال له: الوليد، لهو شر على هذه الأمة من فرعون لقومه إسناده ضعيف، سعيد بن المسيب لم يسمعه من عمر، وذكر عمر فيه خطأ، قال الدارقطني في ” العلل ” 1 / 159: غير إسماعيل بن عياش يرويه عن الأوزاعي ولا يذكر فيه ” عن عمر “، وهو الصواب قلنا: أورد الخبر ابن حبان في ” المجروحين ” 1 / 125 وقال: هذا خبر باطل، ما قال رسول الله صلى الله عليه وسلم هذا، ولا عمر رواه، ولا سعيد حدث به، ولا الزهري رواه، ولا هو من حديث الأوزاعي بهذا الإسناد وأخرجه ابن الجوزي في ” الموضوعات ” 2 / 46 من طريق ” المسند “، ونقل كلام ابن حبان فيه، وقال: فلعل هذا قد أدخل على إسماعيل بن عياش في كبره، وقد رواه وهو مختلط، قال أحمد بن حنبل: كان إسماعيل بن عياش يروي عن كل ضرب وهذا الحديث أول حديث من الأحاديث التسعة التي أوردها العراقي على ” المسند ” على أنها موضوعة، وانظر ” القول المسدد ” 4 – 5 و12 – 17 وأخرجه البيهقي في ” دلائل النبوة ” 6 / 505 من طريق بشر بن بكر والوليد بن مسلم، كلاهما عن الأوزاعي، عن الزهري، عن سعيد بن المسيب، قال: ولد لأخي أم سلمة … فذكره. ولم يذكر فيه عمر. قال البيهقي: هذا مرسل حسن وأخرجه الحاكم 4 / 494 من طريق نعيم بن حماد، عن الوليد بن مسلم، عن الأوزاعي، عن الزهري، عن ابن المسيب، عن أبي هريرة، قال: ولد لأخي أم سلمة … فذكره. وقال: هذا حديث صحيح على شرط الشيخين ولم يخرجاه، وأقره الذهبي! قال السيوطي في ” اللآلىء المصنوعة ” 1 / 110: رواية نعيم بن حماد عن الوليد بذكر أبي هريرة فيه شاذة. قلنا: نعيم بن حماد كثير الخطأ، والوليد بن مسلم يدلس تدليس التسوية، فالخبر باطل

 হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১১০

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১১০। ইবনু আব্বাস (রাঃ) বলেন, অত্যন্ত সন্তোষভাজন কতিপয় ব্যক্তি, যাদের মধ্যে উমার (রাঃ) অন্যতম এবং আমার নিকট উমারই সর্বাপেক্ষা সন্তোষভাজন ব্যক্তি, আমার নিকট সাক্ষ্য প্রদান করেছেন যে, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলতেনঃ আসরের পর থেকে সূর্যাস্ত পর্যন্ত কোন নামায নেই এবং ফজরের পর থেকে সূর্যোদয় পর্যন্ত কোন নামায নেই।[১]

[১]. বুখারী, মুসলিম, দেখুন হাদীস নং ১০৩, ২৭০, ২৭১, ৩৫৫, ৩৬৪

حَدَّثَنَا بَهْزٌ، حَدَّثَنَا أَبَانُ، عَنْ قَتَادَةَ، عَنْ أَبِى الْعَالِيَةِ عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ، قَالَ: شَهِدَ عِنْدِي رِجَالٌ مَرْضِيُّونَ فيهُمْ عُمَرُ، وَأَرْضَاهُمْ عِنْدِي عُمَرُ: أَنَّ نَبِيَّ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يَقُولُ: لَا صَلاةَ بَعْدَ صَلاةِ الْعَصْرِ حَتَّى تَغْرُبَ الشَّمْسُ، وَلا صَلاةَ بَعْدَ صَلاةِ الصُّبْحِ حَتَّى تَطْلُعَ الشَّمْسُ

إسناده صحيح على شرط الشيخين. بهز: هو ابن أسد العمِّي، وأبان: هو ابن يزيد العطار، وقتادة: هو ابن دِعامة، وأبو العالية: هو رُفيع بن مِهران الرياحي

وأخرجه أبو داود (1276) ، والطحاوي 1 / 303 عن مسلم بن إبراهيم، عن أبان العطار، بهذا الإسناد

وأخرجه البخاري (581) ، ومسلم (826) ، والترمذي (183) ، والبزار (185) ، والنسائي 1 / 276، وأبو يعلى (147) ، وابن خزيمة (1272) و (2146) ، وأبو عوانة 1 / 380، والطحاوي 1 / 303 من طرق عن قتادة، به. وسيأتي برقم (130) و (270) و (271) و (355) و (364)

حدثنا بهز، حدثنا أبان، عن قتادة، عن أبى العالية عن ابن عباس، قال: شهد عندي رجال مرضيون فيهم عمر، وأرضاهم عندي عمر: أن نبي الله صلى الله عليه وسلم كان يقول: لا صلاة بعد صلاة العصر حتى تغرب الشمس، ولا صلاة بعد صلاة الصبح حتى تطلع الشمس إسناده صحيح على شرط الشيخين. بهز: هو ابن أسد العمي، وأبان: هو ابن يزيد العطار، وقتادة: هو ابن دعامة، وأبو العالية: هو رفيع بن مهران الرياحي وأخرجه أبو داود (1276) ، والطحاوي 1 / 303 عن مسلم بن إبراهيم، عن أبان العطار، بهذا الإسناد وأخرجه البخاري (581) ، ومسلم (826) ، والترمذي (183) ، والبزار (185) ، والنسائي 1 / 276، وأبو يعلى (147) ، وابن خزيمة (1272) و (2146) ، وأبو عوانة 1 / 380، والطحاوي 1 / 303 من طرق عن قتادة، به. وسيأتي برقم (130) و (270) و (271) و (355) و (364)

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১১১

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১১১। হারিস বিন মুয়াবিয়া আল-কিন্দী তিনটি প্রশ্ন জিজ্ঞেস করার জন্য উমার (রাঃ) এর নিকট রওনা করলেন। তিনি মদীনায় এসে পৌছলে উমার (রাঃ) তাঁকে জিজ্ঞেস করলেন, তুমি কেন এসেছ? আল-কিন্দী বললেনঃ আপনার নিকট তিনটি প্রশ্ন করার জন্য। উমার (রাঃ) বললেনঃ সেগুলি কী? তিনি বললেনঃ কখনো কখনো আমি ও আমার স্ত্রী একটি সংকীর্ণ ভবনে অবস্থান করি। সেখানে আমি ও সে যদি নামায পড়ি তাহলে সে আমার পাশে থাকে। আর যদি সে পেছনে থাকতে চায় তাহলে তাকে ভবন থেকে বেরিয়ে যেতে হয়। উমার (রাঃ) বললেনঃ তোমার ও তার মধ্যে একটা কাপড় দিয়ে আড়াল করে নিও, তারপর সে তোমার পাশে দাঁড়িয়ে নামায পড়বে— যদি তুমি চাও।

দ্বিতীয় প্রশ্ন আছরের পর দু’রাকআত নফল নামায পড়া নিয়ে। উমার (রাঃ) বললেনঃ এটা পড়তে রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাকে নিষেধ করেছেন। তৃতীয় প্রশ্ন গল্প-গুজব করা নিয়ে। উমার (রাঃ) বললেনঃ তোমার যেমন ইচ্ছা। মনে হচ্ছিল যেন তিনি তাকে নিষেধ করা অপছন্দ করছিলেন। আল-কিন্দী বললেন, আমি চাই, আপনি যা বলবেন, অবিকল তাই করবো। উমার (রাঃ) বললেনঃ আমার আশঙ্কা হয়, তুমি জনগণকে গল্প শুনাতে শুনাতে নিজেকে তাদের চেয়ে বড় মনে করবে। এরপর আরো গল্প শুনাবে, তাতে নিজেকে এত বড় মনে করতে থাকবে যে, এক সময় ভাববে, তুমি তাদের ওপরে নক্ষত্রপুঞ্জে পৌছে গেছ। ফলে আল্লাহ তোমাকে কিয়ামতের দিন সেই পরিমাণেই তাদের পায়ের নিচে ফেলবেন।

حَدَّثَنَا أَبُو الْمُغِيرَةِ، حَدَّثَنَا صَفْوَانُ، حَدَّثَنَا عَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ جُبَيْرِ بْنِ نُفَيْرٍ عَنِ الْحَارِثِ بْنِ مُعَاوِيَةَ الْكِنْدِيِّ، أَنَّهُ رَكِبَ إِلَى عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ يَسْأَلُهُ عَنْ ثَلاثِ خِلالٍ، قَالَ: فَقَدِمَ الْمَدِينَةَ، فَسَأَلَهُ عُمَرُ: مَا أَقْدَمَكَ؟ قَالَ: لِأَسْأَلَكَ عَنْ ثَلاثِ خِلالٍ، قَالَ: وَمَا هُنَّ؟ قَالَ: رُبَّمَا كُنْتُ أَنَا وَالْمَرْأَةُ فِي بِنَاءٍ ضَيِّقٍ، فَتَحْضُرُ الصَّلاةُ، فَإِنْ صَلَّيْتُ أَنَا وَهِيَ، كَانَتْ بِحِذَائِي، وَإِنْ صَلَّتْ خَلْفِي، خَرَجَتْ مِنَ الْبِنَاءِ، فَقَالَ عُمَرُ: تَسْتُرُ بَيْنَكَ وَبَيْنَهَا بِثَوْبٍ، ثُمَّ تُصَلِّي بِحِذَائِكَ إِنْ شِئْتَ وَعَنِ الرَّكْعَتَيْنِ بَعْدَ الْعَصْرِ، فَقَالَ: نَهَانِي عَنْهُمَا رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: وَعَنِ الْقَصَصِ، فَإِنَّهُمْ أَرَادُونِي عَلَى الْقَصَصِ، فَقَالَ: مَا شِئْتَ، كَأَنَّهُ كَرِهَ أَنْ يَمْنَعَهُ، قَالَ: إِنَّمَا أَرَدْتُ أَنْ أَنْتَهِيَ إِلَى قَوْلِكَ، قَالَ: أَخْشَى عَلَيْكَ أَنْ تَقُصَّ فَتَرْتَفِعَ عَلَيْهِمْ فِي نَفْسِكَ، ثُمَّ تَقُصَّ فَتَرْتَفِعَ، حَتَّى يُخَيَّلَ إِلَيْكَ أَنَّكَ فَوْقَهُمْ بِمَنْزِلَةِ الثُّرَيَّا، فَيَضَعَكَ اللهُ تَحْتَ أَقْدَامِهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ بِقَدْرِ ذَلِكَ

إسناده حسن، رجاله ثقات رجال [الشيخين] غير الحارث بن معاوية الكندي، فقد روى عنه اثنان، وذكره ابن حبان في ثقات التابعين، وذكره بعضهم في الصحابة، وقال الحافظ ابن حجر في ” تعجيل المنفعة ” (162) : والذي يظهر أنه من المخضرمين، والله أعلم

حدثنا أبو المغيرة، حدثنا صفوان، حدثنا عبد الرحمن بن جبير بن نفير عن الحارث بن معاوية الكندي، أنه ركب إلى عمر بن الخطاب يسأله عن ثلاث خلال، قال: فقدم المدينة، فسأله عمر: ما أقدمك؟ قال: لأسألك عن ثلاث خلال، قال: وما هن؟ قال: ربما كنت أنا والمرأة في بناء ضيق، فتحضر الصلاة، فإن صليت أنا وهي، كانت بحذائي، وإن صلت خلفي، خرجت من البناء، فقال عمر: تستر بينك وبينها بثوب، ثم تصلي بحذائك إن شئت وعن الركعتين بعد العصر، فقال: نهاني عنهما رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: وعن القصص، فإنهم أرادوني على القصص، فقال: ما شئت، كأنه كره أن يمنعه، قال: إنما أردت أن أنتهي إلى قولك، قال: أخشى عليك أن تقص فترتفع عليهم في نفسك، ثم تقص فترتفع، حتى يخيل إليك أنك فوقهم بمنزلة الثريا، فيضعك الله تحت أقدامهم يوم القيامة بقدر ذلك إسناده حسن، رجاله ثقات رجال [الشيخين] غير الحارث بن معاوية الكندي، فقد روى عنه اثنان، وذكره ابن حبان في ثقات التابعين، وذكره بعضهم في الصحابة، وقال الحافظ ابن حجر في ” تعجيل المنفعة ” (162) : والذي يظهر أنه من المخضرمين، والله أعلم

 হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১১২

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১১২। উমার (রাঃ) বলেন, আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে বলতে শুনেছিঃ নিশ্চয় আল্লাহ তা’আলা তোমাদেরকে বাপদাদার নামে শপথ করতে নিষেধ করেছেন। উমার (রাঃ) বলেনঃ রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের এই নিষেধাজ্ঞা শোনার পর থেকে আমি কখনো বাপদাদার নামে শপথ করিনি এবং নিজের স্মৃতি থেকে কিংবা অন্যের কাছ থেকে উদ্ধৃত করে বাপদাদা সম্পর্কে কোন কথাও বলিনি।

حَدَّثَنَا بِشْرُ بْنُ شُعَيْبِ بْنِ أَبِي حَمْزَةَ، قَالَ: حَدَّثَنِي أَبِي، عَنِ الزُّهْرِيِّ، قَالَ: أَخْبَرَنِي سَالِمُ بْنُ عَبْدِ اللهِ، أَنَّ عَبْدَ اللهِ بْنَ عُمَرَ أَخْبَرَهُ أَنَّ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ، قَالَ: سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: ” إِنَّ اللهَ عَزَّ وَجَلَّ يَنْهَاكُمْ أَنْ تَحْلِفُوا بِآبَائِكُمْ ” قَالَ عُمَرُ: فَوَاللهِ مَا حَلَفْتُ بِهَا مُنْذُ سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ نَهَى عَنْهَا، وَلا تَكَلَّمْتُ بِهَا ذَاكِرًا وَلا آثِرًا

إسناده صحيح على شرط البخاري، رجاله ثقات رجال الشيخين غير بشر بن شعيب، فمن رجال البخاري

وأخرجه البخاري (6647) ، ومسلم (1646) ، وابن ماجه (2094) ، والبزار (109) ، والنسائي 4 / 7 و5 من طرق عن الزهري، بهذا الإسناد.

وأخرجه الطبراني (81) من طريق نافع، عن ابن عمر، به. وسيأتي برقم (241)

قوله: ” ولا تكلَّمت بها ذاكراً ” أي: عن نفسي، ” ولا آثراً ” أي: راوياً عن غيري

حدثنا بشر بن شعيب بن أبي حمزة، قال: حدثني أبي، عن الزهري، قال: أخبرني سالم بن عبد الله، أن عبد الله بن عمر أخبره أن عمر بن الخطاب، قال: سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: ” إن الله عز وجل ينهاكم أن تحلفوا بآبائكم ” قال عمر: فوالله ما حلفت بها منذ سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم نهى عنها، ولا تكلمت بها ذاكرا ولا آثرا إسناده صحيح على شرط البخاري، رجاله ثقات رجال الشيخين غير بشر بن شعيب، فمن رجال البخاري وأخرجه البخاري (6647) ، ومسلم (1646) ، وابن ماجه (2094) ، والبزار (109) ، والنسائي 4 / 7 و5 من طرق عن الزهري، بهذا الإسناد. وأخرجه الطبراني (81) من طريق نافع، عن ابن عمر، به. وسيأتي برقم (241) قوله: ” ولا تكلمت بها ذاكرا ” أي: عن نفسي، ” ولا آثرا ” أي: راويا عن غيري

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১১৩

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১১৩। উমার ইবনুল খাত্তাব ও হুযাইফা ইবনুল ইয়ামান থেকে বর্ণিত আছে যে, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম ঘোড়া ও দাসদাসী থেকে সাদাকা (যাকাত) আদায় করেন নি।[১]

[১]. বুখারী, মুসলিম, দেখুন, হাদীস নং ২৪১

حَدَّثَنَا أَبُو الْيَمَانِ، حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرِ بْنُ عَبْدِ اللهِ، عَنْ رَاشِدِ بْنِ سَعْدٍ عَنْ عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ وَحُذَيْفَةَ بْنِ الْيَمَانِ: أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ لَمْ يَأْخُذْ مِنَ الْخَيْلِ وَالرَّقِيقِ صَدَقَةً

صحيح لغيره، وهذا إسناد ضعيف، أبو بكر بن عبد الله – وهو ابن أبي مريم – ضعيف، وراشد بن سعد لم يدرك عمر وحذيفة

وله شاهد من حديث أبي هريرة عند البخاري (1463) و (1464) ومسلم (982) أن رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قال: ليس على المسلم في عبده ولا فرسه صدقة

وآخر عن علي سيأتي برقم (741)

قال البغوي في ” شرح السنة ” 6 / 23: وهذا قول أكثر أهل العلم قالوا: لا زكاة في الخيل ولا في العبد إلا أن تكون للتجارة، فتجب في قيمتها زكاة التجارة، يروى ذلك عن عمر وبه قال سعيد بن المسيب وعمر بن عبد العزيز، وإليه ذهب مالك والشافعي وغيرهم

حدثنا أبو اليمان، حدثنا أبو بكر بن عبد الله، عن راشد بن سعد عن عمر بن الخطاب وحذيفة بن اليمان: أن النبي صلى الله عليه وسلم لم يأخذ من الخيل والرقيق صدقة صحيح لغيره، وهذا إسناد ضعيف، أبو بكر بن عبد الله – وهو ابن أبي مريم – ضعيف، وراشد بن سعد لم يدرك عمر وحذيفة وله شاهد من حديث أبي هريرة عند البخاري (1463) و (1464) ومسلم (982) أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: ليس على المسلم في عبده ولا فرسه صدقة وآخر عن علي سيأتي برقم (741) قال البغوي في ” شرح السنة ” 6 / 23: وهذا قول أكثر أهل العلم قالوا: لا زكاة في الخيل ولا في العبد إلا أن تكون للتجارة، فتجب في قيمتها زكاة التجارة، يروى ذلك عن عمر وبه قال سعيد بن المسيب وعمر بن عبد العزيز، وإليه ذهب مالك والشافعي وغيرهم

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১১৪

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১১৪। উমার (রাঃ) জাবিয়াতে প্রদত্ত ভাষণে বলেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এই জায়গায় আমাদের সামনে দাঁড়িয়ে বলেছেনঃ আমার সাহাবীদের জন্য সব সময় শুভ কামনা কর, তারপর তাদের পরবর্তীদের জন্য, তারপর তাদের পরবর্তীদের জন্য। এরপর মিথ্যা ছড়িয়ে পড়বে, এমনকি এমনও ঘটবে যে, কোন ব্যক্তিকে জিজ্ঞাসা করার আগেই সে সাক্ষ্য দিতে শুরু করবে। তোমাদের মধ্যে যে ব্যক্তি জান্নাতের মাঝখানে থাকতে ইচ্ছুক, সে যেন অবশ্যই জামাতবদ্ধ জীবন যাপন করে। কেননা শয়তান একাকী মানুষের সঙ্গী এবং দু’জন থেকে সে অপেক্ষাকৃত দূরে থাকে। তোমাদের কেউ যেন কোন মহিলার সাথে নির্জনে সাক্ষাত না করে। কেননা সে সময় শয়তান হয় তৃতীয় জন। আর নিজের সৎকাজ যাকে আনন্দ দেয় এবং নিজের মন্দ কাজ যাকে দুঃখ দেয়, সেই প্রকৃত মুমিন।[১]

[১]. তিরমিযী

حَدَّثَنَا عَلِيُّ بْنُ إِسْحَاقَ، أخبرنا عَبْدُ اللهِ – يَعْنِي ابْنَ الْمُبَارَكِ – أخبرنا مُحَمَّدُ بْنُ سُوقَةَ، عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ دِينَارٍ، عَنِ ابْنِ عُمَرَ أَنَّ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ خَطَبَ بِالْجَابِيَةِ، فَقَالَ: قَامَ فِينَا رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مَقَامِي فِيكُمْ، فَقَالَ: ” اسْتَوْصُوا بِأَصْحَابِي خَيْرًا، ثُمَّ الَّذِينَ يَلُونَهُمْ، ثُمَّ الَّذِينَ يَلُونَهُمْ، ثُمَّ يَفْشُو الْكَذِبُ حَتَّى إِنَّ الرَّجُلَ لَيَبْتَدِئُ بِالشَّهَادَةِ قَبْلَ أَنْ يُسْأَلَهَا، فَمَنْ أَرَادَ مِنْكُمْ بَحْبَحَةَ الْجَنَّةِ فَلْيَلْزَمُ الْجَمَاعَةَ، فَإِنَّ الشَّيْطَانَ مَعَ الْوَاحِدِ، وَهُوَ مِنَ الِاثْنَيْنِ أَبْعَدُ، لَا يَخْلُوَنَّ أَحَدُكُمْ بِامْرَأَةٍ، فَإِنَّ الشَّيْطَانَ ثَالِثُهُمَا، وَمَنْ سَرَّتْهُ حَسَنَتُهُ وَسَاءَتْهُ سَيِّئَتُهُ، فَهُوَ مُؤْمِنٌ

إسناده صحيح، رجاله ثقات رجال الشيخين غير علي بن إسحاق – وهو المروزي – فقد روى له الترمذي، وهو ثقة. وهو في ” مسند عبد الله بن المبارك ” (241)

ومن طريق عبد الله بن المبارك أخرجه الطحاوي 4 / 150، وابن حبان (7254) ، والحاكم 1 / 113، والبيهقي 7 / 91، وصححه الحاكم على شرط الشيخين، ووافقه الذهبي

وأخرجه أبو عبيد في ” الخطب والمواعظ ” (133) ، والترمذي (2165) ، وابن أبي عاصم في ” السنة ” (88) و (897) ، والبزار (166) ، والنسائي في ” الكبرى (9225) من طريق النضر بن إسماعيل، عن محمد بن سوقة، بهذا الإسناد. قال الترمذي: حسن صحيح غريب من هذا الوجه

والبحبحة: التمكن والتوسط في المنزل والمقام

حدثنا علي بن إسحاق، أخبرنا عبد الله – يعني ابن المبارك – أخبرنا محمد بن سوقة، عن عبد الله بن دينار، عن ابن عمر أن عمر بن الخطاب خطب بالجابية، فقال: قام فينا رسول الله صلى الله عليه وسلم مقامي فيكم، فقال: ” استوصوا بأصحابي خيرا، ثم الذين يلونهم، ثم الذين يلونهم، ثم يفشو الكذب حتى إن الرجل ليبتدئ بالشهادة قبل أن يسألها، فمن أراد منكم بحبحة الجنة فليلزم الجماعة، فإن الشيطان مع الواحد، وهو من الاثنين أبعد، لا يخلون أحدكم بامرأة، فإن الشيطان ثالثهما، ومن سرته حسنته وساءته سيئته، فهو مؤمن إسناده صحيح، رجاله ثقات رجال الشيخين غير علي بن إسحاق – وهو المروزي – فقد روى له الترمذي، وهو ثقة. وهو في ” مسند عبد الله بن المبارك ” (241) ومن طريق عبد الله بن المبارك أخرجه الطحاوي 4 / 150، وابن حبان (7254) ، والحاكم 1 / 113، والبيهقي 7 / 91، وصححه الحاكم على شرط الشيخين، ووافقه الذهبي وأخرجه أبو عبيد في ” الخطب والمواعظ ” (133) ، والترمذي (2165) ، وابن أبي عاصم في ” السنة ” (88) و (897) ، والبزار (166) ، والنسائي في ” الكبرى (9225) من طريق النضر بن إسماعيل، عن محمد بن سوقة، بهذا الإسناد. قال الترمذي: حسن صحيح غريب من هذا الوجه والبحبحة: التمكن والتوسط في المنزل والمقام

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১১৫

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১১৫। উমার (রাঃ) বলেন, যে ব্যক্তি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কুরবানীর পশু কেমন ছিল দেখতে চায়, সে যেন আমর ইবনুল আসওয়াদের কুরবানীর পশু দেখে নেয়।

حَدَّثَنَا أَبُو الْيَمَانِ، حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرٍ، عَنْ حَكِيمِ بْنِ عُمَيْرٍ وَضَمْرَةَ بْنِ حَبِيبٍ، قَالا: قَالَ عُمَرُ بْنُ الْخَطَّابِ: مَنْ سَرَّهُ أَنْ يَنْظُرَ إِلَى هَدْيِ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَلْيَنْظُرْ إِلَى هَدْيِ عَمْرِو بْنِ الْأَسْوَدِ

إسناده ضعيف لانقطاعه، حكيم بن عمرو وضمرة بن حبيب لم يُدركا عمر بن الخطاب، وأبو بكر – وهو ابن عبد الله بن أبي مريم – ضعيف. وعمرو بن الأسود: هو عمرو بن الأسود العنسي أبو عياض وأبو عبد الرحمن، ويقال: اسمه عمير، تابعي مخضرم ثقة. انظر ترجمته في ” الإصابة ” برقم (6528) ، وقد ليِّن الحافظ فيه سند هذا الخبر، وله ترجمة أيضاً في ” تهذيب التهذيب ” 4 / 8 – 6

حدثنا أبو اليمان، حدثنا أبو بكر، عن حكيم بن عمير وضمرة بن حبيب، قالا: قال عمر بن الخطاب: من سره أن ينظر إلى هدي رسول الله صلى الله عليه وسلم، فلينظر إلى هدي عمرو بن الأسود إسناده ضعيف لانقطاعه، حكيم بن عمرو وضمرة بن حبيب لم يدركا عمر بن الخطاب، وأبو بكر – وهو ابن عبد الله بن أبي مريم – ضعيف. وعمرو بن الأسود: هو عمرو بن الأسود العنسي أبو عياض وأبو عبد الرحمن، ويقال: اسمه عمير، تابعي مخضرم ثقة. انظر ترجمته في ” الإصابة ” برقم (6528) ، وقد لين الحافظ فيه سند هذا الخبر، وله ترجمة أيضا في ” تهذيب التهذيب ” 4 / 8 – 6

 হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১১৬

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১১৬। উমার (রাঃ) বলেন, আমরা রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের সাথে একটা কাফিলায় ছিলাম। সহসা এক ব্যক্তি বলে উঠলো, “না, আমার বাবার কসম” তৎক্ষণাত অপর এক ব্যক্তি বললো, তোমাদের বাপদাদার নামে কসম খাবে না। শেষোক্ত ব্যক্তির দিকে তাকিয়ে দেখি, তিনি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম।[১]

[১]. দেখুন, হাদীস নং ২১৪, ২৪০, ২৯১

حَدَّثَنَا أَبُو سَعِيدٍ مَوْلَى بَنِي هَاشِمٍ، قَالَ: حَدَّثَنَا زَائِدَةُ، حَدَّثَنَا سِمَاكٌ، عَنْ عِكْرِمَةَ، عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ، قَالَ: قَالَ عُمَرُ: كُنَّا مَعَ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي رَكْبٍ، فَقَالَ رَجُلٌ: لَا وَأَبِي، فَقَالَ رَجُلٌ: ” لَا تَحْلِفُوا بِآبَائِكُمْ “، فَالْتَفَتُّ فَإِذَا هُوَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ

صحيح لغيره، وهذا إسناد ضعيف، رواية سماك – وهو ابن حرب – عن عكرمة فيها اضطراب. أبو سعيد مولى بني هاشم: هو عبد الرحمن بن عبد الله بن عبيد البصري، وزائدة: هو ابن قدامة. وقد صحَّ الحديث من طريق أخرى عن عمر، تقدمت برقم (112)

وأخرجه عبد بن حميد (36) من طريق أسباط بن نصر، عن سماك، بهذا الإسناد

وسيأتي برقم (240) ي (291)

حدثنا أبو سعيد مولى بني هاشم، قال: حدثنا زائدة، حدثنا سماك، عن عكرمة، عن ابن عباس، قال: قال عمر: كنا مع رسول الله صلى الله عليه وسلم في ركب، فقال رجل: لا وأبي، فقال رجل: ” لا تحلفوا بآبائكم “، فالتفت فإذا هو رسول الله صلى الله عليه وسلم صحيح لغيره، وهذا إسناد ضعيف، رواية سماك – وهو ابن حرب – عن عكرمة فيها اضطراب. أبو سعيد مولى بني هاشم: هو عبد الرحمن بن عبد الله بن عبيد البصري، وزائدة: هو ابن قدامة. وقد صح الحديث من طريق أخرى عن عمر، تقدمت برقم (112) وأخرجه عبد بن حميد (36) من طريق أسباط بن نصر، عن سماك، بهذا الإسناد وسيأتي برقم (240) ي (291)

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১১৭

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১১৭। আবু হুরাইরা (রাঃ) বলেন, যখন রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম ইন্তিকাল করলেন, তারপরে আবু বাকর (খালিফা হিসাবে) ছিলেন এবং আরবদের মধ্য থেকে কিছু লোক কাফির হয়ে গেল, (তখন আবু বাকর তাদের বিরুদ্ধে জিহাদ ঘোষণা করলেন)। উমার (রাঃ) বললেন, হে আবু বাকর, আপনি কিভাবে তাদের বিরুদ্ধে যুদ্ধ করবেন? অথচ রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেনঃ লোকেরা যতক্ষণ “আল্লাহ ছাড়া আর কোন ইলাহ নেই” এ কথা না বলবে, ততক্ষণ তাদের সাথে যুদ্ধ করতে আমাকে আদেশ দেয়া হয়েছে। যে ব্যক্তি বলবে, “আল্লাহ ছাড়া আর কোন ইলাহ নেই” সে আমার কাছ থেকে তার সম্পদ ও প্রাণ রক্ষা করবে, যথাযথ কারণ ছাড়া তা নষ্ট করা যাবে না। তার হিসাব আল্লাহর নিকট সমর্পিত।

আবু বাকর (রাঃ) বললেন, আল্লাহর কসম, যে ব্যক্তি নামায ও যাকাতের মধ্যে পার্থক্য করবে, তার বিরুদ্ধে আমি যুদ্ধ করবো, (আবুল ইয়ামান বলেন, আবু বাকর বলেছিলেন, … তাকে আমি হত্যা করবো) কেননা যাকাত হচ্ছে সম্পদের হক। আল্লাহর কসম, যে পাঠী ছাগল তারা রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের নিকট দিত, তাও যদি দিতে অস্বীকার করে, তবে আমি তাদের বিরুদ্ধে অবশ্যই যুদ্ধ করবো। উমার (রাঃ) বলেনঃ আল্লাহর কসম, আমি দেখতে পেয়েছিলাম যে, আবু বাকরের বুক আল্লাহ যুদ্ধের জন্য খুলে দিয়েছেন। ফলে আমি উপলব্ধি করেছিলাম যে, তার সিদ্ধান্তই সঠিক।[১]

[১]. বুখারী, মুসলিম, ইবনু হিব্বান, দেখুন, এই গ্রন্থের হাদীস নং ২৩৯, ৩৩৫

حَدَّثَنَا عِصَامُ بْنُ خَالِدٍ، وَأَبُو الْيَمَانِ، قَالا: أَخْبَرَنَا شُعَيْبُ بْنُ أَبِي حَمْزَةَ، عَنِ الزُّهْرِيِّ، قَالَ: حَدَّثَنَا عُبَيْدُ اللهِ بْنُ عَبْدِ اللهِ بْنِ عُتْبَةَ بْنِ مَسْعُودٍ أَنَّ أَبَا هُرَيْرَةَ قَالَ: لَمَّا تُوُفِّيَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وَكَانَ أَبُو بَكْرٍ بَعْدَهُ، وَكَفَرَ مَنْ كَفَرَ مِنَ الْعَرَبِ، قَالَ عُمَرُ: يَا أَبَا بَكْرٍ، كَيْفَ تُقَاتِلُ النَّاسَ، وَقَدْ قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” أُمِرْتُ أَنْ أُقَاتِلَ النَّاسَ حَتَّى يَقُولُوا: لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ، فَمَنْ قَالَ: لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ، فَقَدْ عَصَمَ مِنِّي مَالَهُ وَنَفْسَهُ إِلَّا بِحَقِّهِ، وَحِسَابُهُ عَلَى اللهِ “؟ قَالَ أَبُو بَكْرٍ: وَاللهِ لَأُقَاتِلَنَّ – قَالَ أَبُو الْيَمَانِ: لَأَقْتُلَنَّ – مَنْ فَرَّقَ بَيْنَ الصَّلاةِ وَالزَّكَاةِ، فَإِنَّ الزَّكَاةَ حَقُّ الْمَالِ، وَاللهِ لَوْ مَنَعُونِي عَنَاقًا كَانُوا يُؤَدُّونَهَا إِلَى رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، لَقَاتَلْتُهُمْ عَلَى مَنْعِهَا.

قَالَ عُمَرُ: فَوَاللهِ مَا هُوَ إِلَّا أَنْ رَأَيْتُ أَنَّ اللهَ عَزَّ وَجَلَّ قَدْ شَرَحَ صَدْرَ أَبِي بَكْرٍ لِلْقِتَالِ، فَعَرَفْتُ أَنَّهُ الْحَقُّ

إسناده صحيح على شرط الشيخين، غير عصام بن خالد، فمن رجال البخاري. أبو اليمان: هو الحكم بن نافع

وأخرجه البخاري (1399) و (1456) و (1457) ، والبيهقي 4 / 104 من طريق أبي اليمان، بهذا الإسناد

وأخرجه النسائي 5 / 6 و7 / 78 وابن حبان (216) من طريقين عن شعيب بن أبي حمزة، به. وقد تقدم برقم (67)

والعناق: هي الأنثى من ولد المعز ما ثم تتم سنة

حدثنا عصام بن خالد، وأبو اليمان، قالا: أخبرنا شعيب بن أبي حمزة، عن الزهري، قال: حدثنا عبيد الله بن عبد الله بن عتبة بن مسعود أن أبا هريرة قال: لما توفي رسول الله صلى الله عليه وسلم، وكان أبو بكر بعده، وكفر من كفر من العرب، قال عمر: يا أبا بكر، كيف تقاتل الناس، وقد قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: ” أمرت أن أقاتل الناس حتى يقولوا: لا إله إلا الله، فمن قال: لا إله إلا الله، فقد عصم مني ماله ونفسه إلا بحقه، وحسابه على الله “؟ قال أبو بكر: والله لأقاتلن – قال أبو اليمان: لأقتلن – من فرق بين الصلاة والزكاة، فإن الزكاة حق المال، والله لو منعوني عناقا كانوا يؤدونها إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم، لقاتلتهم على منعها. قال عمر: فوالله ما هو إلا أن رأيت أن الله عز وجل قد شرح صدر أبي بكر للقتال، فعرفت أنه الحق إسناده صحيح على شرط الشيخين، غير عصام بن خالد، فمن رجال البخاري. أبو اليمان: هو الحكم بن نافع وأخرجه البخاري (1399) و (1456) و (1457) ، والبيهقي 4 / 104 من طريق أبي اليمان، بهذا الإسناد وأخرجه النسائي 5 / 6 و7 / 78 وابن حبان (216) من طريقين عن شعيب بن أبي حمزة، به. وقد تقدم برقم (67) والعناق: هي الأنثى من ولد المعز ما ثم تتم سنة

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১১৮

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১১৮। হাদীস নং ১১০ দ্রষ্টব্য

১১০। ইবনু আব্বাস (রাঃ) বলেন, অত্যন্ত সন্তোষভাজন কতিপয় ব্যক্তি, যাদের মধ্যে উমার (রাঃ) অন্যতম এবং আমার নিকট উমারই সর্বাপেক্ষা সন্তোষভাজন ব্যক্তি, আমার নিকট সাক্ষ্য প্রদান করেছেন যে, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলতেনঃ আসরের পর থেকে সূর্যাস্ত পর্যন্ত কোন নামায নেই এবং ফজরের পর থেকে সূর্যোদয় পর্যন্ত কোন নামায নেই।

 হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১১৯

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১১৯। উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) থেকে বর্ণিত। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এই মর্মে রায় দিয়েছেন যে, জন্তুর মালিক তার বুকের বেশি হকদার। (অর্থাৎ জন্তুর সম্মুখভাগে আরোহণ করার)।

حَدَّثَنَا الْحَكَمُ بْنُ نَافِعٍ، حَدَّثَنَا ابْنُ عَيَّاشٍ، عَنْ أَبِي سَبَأٍ عُتْبَةَ بْنِ تَمِيمٍ، عَنْ الْوَلِيدِ بْنِ عَامِرٍ الْيَزَنِيِّ، عَنْ عُرْوَةَ بْنِ مُغِيثٍ الْأَنْصَارِيِّ عَنْ عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ، قَالَ: قَضَى النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنَّ صَاحِبَ الدَّابَّةِ أَحَقُّ بِصَدْرِهَا

حديث حسن لشواهده، عتبة بن تميم روى عنه غيرُ واحد، وذكره ابنُ حبان في ” الثقات “، والوليد بن عامر اليمني، روى عنه غيرُ عروة بن معتب: ابنه مهدي بن الوليد بن عامر، وإسماعيل بن عياش أيضاً، وذكره ابن حبان في ” الثقات ” 7 / 552، وأورده البخاري 8 / 149، وابن أبي حاتم 9 / 11 فلم يذكرا فيه جرحاً ولا تعديلاً، وذكره ابنُ الأثير في ” أسد الغابة ” 4 / 34 فقال: مختلف في صحبته، قال البخاري: عداده في التابعين، وهو الصحيح، وذكره ابن أبي خيثمة في الصحابة، وقال ابن حجر في ” تعجيل المنفعة ” (738) : وذكره في الصحابة الحسن بن سفيان وابن قانع. ابن عياش: هو إسماعيل

وفي الباب عن أبي سعيد الخدري عند أحمد 3 / 32 وإسناده ضعيف، وسيأتي تخريجه في مسنده

وعن قيس بن سعد عند أحمد أيضاً 3 / 422

وعن بريدة الأسلمي عند أحمد كذلك 5 / 353 وإسناده صحيح، وسيأتي تخريجهما

حدثنا الحكم بن نافع، حدثنا ابن عياش، عن أبي سبأ عتبة بن تميم، عن الوليد بن عامر اليزني، عن عروة بن مغيث الأنصاري عن عمر بن الخطاب، قال: قضى النبي صلى الله عليه وسلم أن صاحب الدابة أحق بصدرها حديث حسن لشواهده، عتبة بن تميم روى عنه غير واحد، وذكره ابن حبان في ” الثقات “، والوليد بن عامر اليمني، روى عنه غير عروة بن معتب: ابنه مهدي بن الوليد بن عامر، وإسماعيل بن عياش أيضا، وذكره ابن حبان في ” الثقات ” 7 / 552، وأورده البخاري 8 / 149، وابن أبي حاتم 9 / 11 فلم يذكرا فيه جرحا ولا تعديلا، وذكره ابن الأثير في ” أسد الغابة ” 4 / 34 فقال: مختلف في صحبته، قال البخاري: عداده في التابعين، وهو الصحيح، وذكره ابن أبي خيثمة في الصحابة، وقال ابن حجر في ” تعجيل المنفعة ” (738) : وذكره في الصحابة الحسن بن سفيان وابن قانع. ابن عياش: هو إسماعيل وفي الباب عن أبي سعيد الخدري عند أحمد 3 / 32 وإسناده ضعيف، وسيأتي تخريجه في مسنده وعن قيس بن سعد عند أحمد أيضا 3 / 422 وعن بريدة الأسلمي عند أحمد كذلك 5 / 353 وإسناده صحيح، وسيأتي تخريجهما

 হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)

 ১২০

 শেয়ার ও অন্যান্য 

  • বাংলা/ العربية

পরিচ্ছেদঃ

১২০। হুমরা ইবনে আবদ কুলাল বলেনঃ উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) প্রথমবারসিরিয়া ভ্রমণের পর পুনরায় সিরিয়া সফরে রওনা হন। যখন সিরিয়ার কাছাকাছি পৌছেন, তখন তার ও তার সঙ্গীদের নিকট সংবাদ আসে যে, দেশটিতে প্লেগ ছড়িয়ে পড়েছে। তখন তার সাথীরা তাকে বললোঃ ফিরে চলুন, ঝুঁকি নিয়ে ওখানে যাওয়ার দরকার নেই। কেননা আপনি যদি সিরিয়ায় পৌছে যান এবং সেখানে প্লেগ সত্যিই থেকে থাকে, তাহলে আমাদের মনে হয়না আপনি সেখান থেকে বেরিয়ে আসতে পারবেন। তাই তিনি মদীনায় ফিরে চললেন। সেই রাতেই তিনি বাসর ঘরে ঘুমালেন। তখন আমিই ছিলাম তার সবচেয়ে নিকটবর্তী। তারপর যখন তিনি সেখান থেকে যাত্রা করলেন, তখন আমিও তার পেছনে পেছনে যাত্রা করলাম। তখন আমি শুনলাম, তিনি বলছেনঃ (সাথীরা) আমাকে সিরিয়া থেকে ফিরিয়ে দিল। অথচ আমি তার কাছেই পৌছে গিয়েছিলাম। ওখানে প্লেগ দেখা দিয়েছে বলে আমাকে ফিরিয়ে দিল।

জেনে রাখ, আমার ফিরে আসায় আমার মৃত্যু বিলম্বিত হবে না। আর সেখানে যাওয়াতে আমার মৃত্যু ত্বরান্বিতও হতো না। জেনে রাখ, আমি যদি মদীনায় পৌছে যাই এবং সেখানে আমার কিছু জরুরী প্রয়োজন সেরে আসতে পারি তাহলে আমি রওনা হয়ে সিরিয়ায় চলে যাব, অতঃপর হিমসে উপনীত হব। কেননা আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে বলতে শুনেছিঃ আল্লাহ কিয়ামতের দিন সিরিয়া থেকে এমন সত্তর হাজার ব্যক্তিকে উথিত করবেন, যাদের কোন হিসাব দিতে হবে না, আযাবও হবে না। তারা উথিত হবে যাইতুন ও তার মধ্যকার বারাচুল আহমারের প্রাচীরের মধ্যস্থল থেকে। (আল হাকেম)

حَدَّثَنَا أَبُو الْيَمَانِ الْحَكَمُ بْنُ نَافِعٍ، حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرِ بْنُ عَبْدِ اللهِ، عَنْ رَاشِدِ بْنِ سَعْدٍ، عَنْ حُمْرَةَ بْنِ عَبْدِ كُلالٍ، قَالَ: سَارَ عُمَرُ بْنُ الْخَطَّابِ إِلَى الشَّامِ بَعْدَ مَسِيرِهِ الْأَوَّلِ كَانَ إِلَيْهَا، حَتَّى إِذَا شَارَفَهَا، بَلَغَهُ وَمَنْ مَعَهُ أَنَّ الطَّاعُونَ فَاشٍ فِيهَا، فَقَالَ لَهُ أَصْحَابُهُ: ارْجِعْ وَلا تَقَحَّمْ عَلَيْهِ، فَلَوْ نَزَلْتَهَا وَهُوَ بِهَا لَمْ نَرَ لَكَ الشُّخُوصَ عَنْهَا. فَانْصَرَفَ رَاجِعًا إِلَى الْمَدِينَةِ، فَعَرَّسَ مِنْ لَيْلَتِهِ تِلْكَ، وَأَنَا أَقْرَبُ الْقَوْمِ مِنْهُ، فَلَمَّا انْبَعَثَ، انْبَعَثْتُ مَعَهُ فِي أَثَرِهِ، فَسَمِعْتُهُ يَقُولُ: رَدُّونِي عَنِ الشَّامِ بَعْدَ أَنْ شَارَفْتُ عَلَيْهِ، لِأَنَّ الطَّاعُونَ فِيهِ، أَلَا وَمَا مُنْصَرَفِي عَنْهُ بمُؤَخِّرٍّ فِي أَجَلِي، وَمَا كَانَ قُدُومِي مِنْهُ بمُعَجِّلِي عَنْ أَجَلِي، أَلا وَلَوْ قَدْ قَدِمْتُ الْمَدِينَةَ فَفَرَغْتُ مِنْ حَاجَاتٍ لَا بُدَّ لِي مِنْهَا، لَقَدْ سِرْتُ حَتَّى أَدْخُلَ الشَّامَ، ثُمَّ أَنْزِلَ حِمْصَ، فَإِنِّي سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: ” لَيَبْعَثَنَّ اللهُ مِنْهَا يَوْمَ الْقِيَامَةِ سَبْعِينَ أَلْفًا لَا حِسَابَ عَلَيْهِمْ وَلا عَذَابَ عَلَيْهِمْ، مَبْعَثُهُمْ فِيمَا بَيْنَ الزَّيْتُونِ وَحَائِطِهَا فِي الْبَرْثِ الْأَحْمَرِ مِنْهَا

إسناده ضعيف لضعف أبي بكر بن عبد الله – وهو ابن أبي مريم -، وحُمرة بن عبد كُلال قال الذهبي في ” الميزان ” 1 / 604: ليس بعمدة يُجهل

وأخرجه المرفوع منه البزار (317) من طريق بشر بن بكر، عن أبي بكر بن أبي مريم، بهذا الإسناد. وقال: ابن عبد كلال ليس بمعروف بالنقل

وأخرجه الحاكم 3 / 88 من طريق إسحاق بن إبراهيم بن العلاء الزبيدي، عن عمروبن الحارث، عن عبد الله بن سالم الأشعري، عن محمد بن الوليد بن عامر الزبيدي، عن راشد بن سعد، عن أبي راشد، عن معدي كرب بن عبد كلال، عن عبد الله بن عمروبن العاص، عن عمر، بهذه القصة. قال الحاكم: هذا حديث صحيح الإسناد، فتعقبه الذهبيُّ بقوله: بل منكر، وإسحاق: هو ابن زبريق، كذبه محمد بن عوف الطائي، وقال أبو داود: ليس بشيء، وقال النسائي: ليس بثقة

وأورده ابن الجوزي في ” العلل المتناهية ” 1 / 307 عن ” المسند “، وقال: هذا حديث لا يصح. لكن وقع له وهم في تعيين أبي بكر بن عبد الله فقال: وأبو بكر بن عبد الله: اسمه سلمى، والصواب أنه أبو بكر بن عبد الله بن أبي مريم الغساني الحمصي، وقد أدرج الإمام الذهبي في ” ميزان الاعتدال ” 4 / 498 حديثه هذا في ترجمته والبرث: الأرض اللينة

حدثنا أبو اليمان الحكم بن نافع، حدثنا أبو بكر بن عبد الله، عن راشد بن سعد، عن حمرة بن عبد كلال، قال: سار عمر بن الخطاب إلى الشام بعد مسيره الأول كان إليها، حتى إذا شارفها، بلغه ومن معه أن الطاعون فاش فيها، فقال له أصحابه: ارجع ولا تقحم عليه، فلو نزلتها وهو بها لم نر لك الشخوص عنها. فانصرف راجعا إلى المدينة، فعرس من ليلته تلك، وأنا أقرب القوم منه، فلما انبعث، انبعثت معه في أثره، فسمعته يقول: ردوني عن الشام بعد أن شارفت عليه، لأن الطاعون فيه، ألا وما منصرفي عنه بمؤخر في أجلي، وما كان قدومي منه بمعجلي عن أجلي، ألا ولو قد قدمت المدينة ففرغت من حاجات لا بد لي منها، لقد سرت حتى أدخل الشام، ثم أنزل حمص، فإني سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: ” ليبعثن الله منها يوم القيامة سبعين ألفا لا حساب عليهم ولا عذاب عليهم، مبعثهم فيما بين الزيتون وحائطها في البرث الأحمر منها إسناده ضعيف لضعف أبي بكر بن عبد الله – وهو ابن أبي مريم -، وحمرة بن عبد كلال قال الذهبي في ” الميزان ” 1 / 604: ليس بعمدة يجهل وأخرجه المرفوع منه البزار (317) من طريق بشر بن بكر، عن أبي بكر بن أبي مريم، بهذا الإسناد. وقال: ابن عبد كلال ليس بمعروف بالنقل وأخرجه الحاكم 3 / 88 من طريق إسحاق بن إبراهيم بن العلاء الزبيدي، عن عمروبن الحارث، عن عبد الله بن سالم الأشعري، عن محمد بن الوليد بن عامر الزبيدي، عن راشد بن سعد، عن أبي راشد، عن معدي كرب بن عبد كلال، عن عبد الله بن عمروبن العاص، عن عمر، بهذه القصة. قال الحاكم: هذا حديث صحيح الإسناد، فتعقبه الذهبي بقوله: بل منكر، وإسحاق: هو ابن زبريق، كذبه محمد بن عوف الطائي، وقال أبو داود: ليس بشيء، وقال النسائي: ليس بثقة وأورده ابن الجوزي في ” العلل المتناهية ” 1 / 307 عن ” المسند “، وقال: هذا حديث لا يصح. لكن وقع له وهم في تعيين أبي بكر بن عبد الله فقال: وأبو بكر بن عبد الله: اسمه سلمى، والصواب أنه أبو بكر بن عبد الله بن أبي مريم الغساني الحمصي، وقد أدرج الإمام الذهبي في ” ميزان الاعتدال ” 4 / 498 حديثه هذا في ترجمته والبرث: الأرض اللينة

 হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f)

 পুনঃনিরীক্ষণঃ 

 মুসনাদে আহমাদ

 মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)