আহমদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] অধ্যায় ৫ম ভাগ হাদিস নং ৭২১ – ৭৬০
পরিচ্ছেদঃ
৭২১। হাদীস নং ৬৩৫ দ্রষ্টব্য।
৬৩৫। আলী (রাঃ) বলেছেন, দশ ব্যক্তিকে রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম অভিশাপ দিয়েছেনঃ সুদখোর, সুদদাতা, সুদ সংক্রান্ত বিষয়ের লেখক, সুদের দু’জন সাক্ষী, হিল্লাকারী, যার জন্য হিল্লা করা হয়, যে ব্যক্তি যাকাত দেয় না, উল্কি অঙ্কনকারী, যে উল্কি করায়।
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭২২
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পরিচ্ছেদঃ
৭২২। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাকে স্বর্ণের আংটি, রেশমী পোশাক ও কোমল মসৃণ রেশমী বিছানা বা গদি ব্যবহার করতে নিষেধ করেছেন।
[আবু দাউদ ৪০৫১, ইবনু মাজাহ ৩৬৫৪, তিরমিযী ২৮০৮, নাসায়ী ১৬৫/৮, মুসনাদ আহমাদ ৮১৬, ১০৪৯, ১১০২, ১১১৩, ১১৫৯]
حَدَّثَنَا عَفَّانُ، حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، قَالَ: أَخْبَرَنَا أَبُو إِسْحَاقَ، قَالَ: سَمِعْتُ هُبَيْرَةَ، يَقُولُ: سَمِعْتُ عَلِيًّا، يَقُولُ: ” نَهَى رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ – أَوْ نَهَانِي رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ – عَنْ خَاتَمِ الذَّهَبِ، وَالْقَسِّيِّ وَالْمِيثَرَةِ
إسناده حسن، رجاله ثقات رجال الشيخين غير هُبيرة بن يريم، فقد روى له أصحاب السنن، وهو حسن الحديث فيما لا يخالف فيه. عفان: هو ابن مسلم، وأبو إسحاق: هو عمرو بن عبد الله السبيعي
وأخرجه أبو داود (4051) ، والبزار (728) ، وابن حبان (5438) من طرق عن شعبة، بهذا الإسناد
وأخرجه أبو يعلى (605) من طريق زكريا بن أبي زائدة، والطحاوىِ 4/260 من طريق أسد بن موسى، كلاهما عن أبي إسحاق، به. وسيأتي برقم (816) و (1049) و (1102) و (1113) و (1159) ، وانظر (710) و (981)
حدثنا عفان، حدثنا شعبة، قال: أخبرنا أبو إسحاق، قال: سمعت هبيرة، يقول: سمعت عليا، يقول: ” نهى رسول الله صلى الله عليه وسلم – أو نهاني رسول الله صلى الله عليه وسلم – عن خاتم الذهب، والقسي والميثرة إسناده حسن، رجاله ثقات رجال الشيخين غير هبيرة بن يريم، فقد روى له أصحاب السنن، وهو حسن الحديث فيما لا يخالف فيه. عفان: هو ابن مسلم، وأبو إسحاق: هو عمرو بن عبد الله السبيعي وأخرجه أبو داود (4051) ، والبزار (728) ، وابن حبان (5438) من طرق عن شعبة، بهذا الإسناد وأخرجه أبو يعلى (605) من طريق زكريا بن أبي زائدة، والطحاوى 4/260 من طريق أسد بن موسى، كلاهما عن أبي إسحاق، به. وسيأتي برقم (816) و (1049) و (1102) و (1113) و (1159) ، وانظر (710) و (981)
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭২৩
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- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭২৩। আলী (রাঃ) বর্ণনা করেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেনঃ মুকাতাব (মুক্তিপণ দিয়ে মুক্তি লাভের চুক্তি সম্পাদনকারী দাস) যতটা মুক্তিপণ পরিশোধ করবে, ততটুকু স্বাধীনতা লাভ করবে।
[হাদীস নং ৮১৮ দ্রষ্টব্য]
حَدَّثَنَا عَفَّانُ، حَدَّثَنَا وُهَيْبٌ، حَدَّثَنَا أَيُّوبُ، عَنْ عِكْرِمَةَ، عَنْ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: يُودَى الْمُكَاتَبُ بِقَدْرِ مَا أَدَّى
صحيح، رجاله ثقات رجال الشيخين غير عكرمة، فقد احتج به البخاري، وروى له مسلم مقروناً، وزعم أبو زرعة والبيهقي أن رواية عكرمة عن علي مرسلة، ورد ذلك الشيخ أحمد شاكر بأن عمره حين قتل علي رضي الله عنه كان (15) سنة، وأنه عاصر علياً أربعَ سنين أو أكثر مملوكاً لابنِ عباس، والله أعلم. وهيب: هو ابن خالد بن عجلان
وأخرجه البيهقي 10/325-326 من طريق عفان، بهذا الإسناد. وقال: رواية عكرمة عن علي مرسلة، ورواه حماد بن زيد وإسماعيل بن إبراهيم عن أبوب عن عكرمة عن النبي صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مرسلاً، وجعله إسماعيل من قول عكرمة
وأخرجه النسائي في “الكبرى” (5022) من طريق أبي هشام المخزومي، عن وهيب، به. وسيأتي برقم (818)
وأخرجه النسائي أيضاً (5023) من طريق إسماعيل بن عُلية، عن أيوب، عن عكرمة، عن علي.. مثله ولم يرفعه
وأخرجه النسائي أيضاً (5024) من طريق حماد بن زيد، عن أيوب، عن عكرمة: أن مكاتباً قتل على عهدِ النبيَ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وقد أدى طائفة، فأمر أن يُودى ما أدى منه ديةَ الحر، وما لا ديةَ المملوك. وسيأتي بنحوه في مسند ابن عباس برقم (3489) من طريق حماد بن سلمة عن أيوب عن عكرمة عن ابن عباس مرفوعا
ومعنى الحديث: أن المكاتَب إذا قُتِلَ وقد أدى بعض كتابته يجب على قاتله أن يدفع إلى ورثته بقدر ما أدى من كتابته دية حر ويدفع إلى سيده بقدر ما بقي من كتابته دية عبد
قال الخطابي في “معالم السنن” 4/37: أجمع عامة الفقهاء على أن المكاتب عبد ما بقي عليه درهم في جنايته والجناية عليه، ولم يذهب إلى هدا الحديث من العلماء – فيما بلغنا- إلا إبراهيم النخعي، وإذا صَح الحديث وجب القول به إذا لم يكن منسوخاً أو معارَضاً بما هو أولى منه، والله أعلم. وانظر “الجوهر النقي” 10/325-326
حدثنا عفان، حدثنا وهيب، حدثنا أيوب، عن عكرمة، عن علي بن أبي طالب، عن النبي صلى الله عليه وسلم قال: يودى المكاتب بقدر ما أدى صحيح، رجاله ثقات رجال الشيخين غير عكرمة، فقد احتج به البخاري، وروى له مسلم مقرونا، وزعم أبو زرعة والبيهقي أن رواية عكرمة عن علي مرسلة، ورد ذلك الشيخ أحمد شاكر بأن عمره حين قتل علي رضي الله عنه كان (15) سنة، وأنه عاصر عليا أربع سنين أو أكثر مملوكا لابن عباس، والله أعلم. وهيب: هو ابن خالد بن عجلان وأخرجه البيهقي 10/325-326 من طريق عفان، بهذا الإسناد. وقال: رواية عكرمة عن علي مرسلة، ورواه حماد بن زيد وإسماعيل بن إبراهيم عن أبوب عن عكرمة عن النبي صلى الله عليه وسلم مرسلا، وجعله إسماعيل من قول عكرمة وأخرجه النسائي في “الكبرى” (5022) من طريق أبي هشام المخزومي، عن وهيب، به. وسيأتي برقم (818) وأخرجه النسائي أيضا (5023) من طريق إسماعيل بن علية، عن أيوب، عن عكرمة، عن علي.. مثله ولم يرفعه وأخرجه النسائي أيضا (5024) من طريق حماد بن زيد، عن أيوب، عن عكرمة: أن مكاتبا قتل على عهد النبي صلى الله عليه وسلم وقد أدى طائفة، فأمر أن يودى ما أدى منه دية الحر، وما لا دية المملوك. وسيأتي بنحوه في مسند ابن عباس برقم (3489) من طريق حماد بن سلمة عن أيوب عن عكرمة عن ابن عباس مرفوعا ومعنى الحديث: أن المكاتب إذا قتل وقد أدى بعض كتابته يجب على قاتله أن يدفع إلى ورثته بقدر ما أدى من كتابته دية حر ويدفع إلى سيده بقدر ما بقي من كتابته دية عبد قال الخطابي في “معالم السنن” 4/37: أجمع عامة الفقهاء على أن المكاتب عبد ما بقي عليه درهم في جنايته والجناية عليه، ولم يذهب إلى هدا الحديث من العلماء – فيما بلغنا- إلا إبراهيم النخعي، وإذا صح الحديث وجب القول به إذا لم يكن منسوخا أو معارضا بما هو أولى منه، والله أعلم. وانظر “الجوهر النقي” 10/325-326
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭২৪
শেয়ার ও অন্যান্য
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পরিচ্ছেদঃ
৭২৪। হাদীস নং ৬২২ দ্রষ্টব্য।
৬২২। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম কোথাও একটি সেনাদল পাঠিয়েছিলেন। তাদের সেনাপতি হিসাবে আনসারদের একজনকে নিযুক্ত করে দিয়েছেন। সফরে বের হওয়ার পর সেনাপতি তাদের ওপর কোন কারণে রেগে গেলেন। তখন সেনাপতি তাদেরকে বললেনঃ রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম তোমাদেরকে আমার আনুগত্য করতে বলেছেন, তাই নয় কি? তারা বললোঃ হ্যাঁ, বলেছেন। তখন তিনি বললেনঃ কিছু কাষ্ঠ যোগাড় কর। তারপর তাতে আগুন ধরাতে আদেশ দিলেন। তারপর বললেন, আমি সিদ্ধান্ত নিয়েছি, তোমরা এই আগুনের ভেতর ঢুকবে। সঙ্গে সঙ্গে তারা আগুনে ঢুকতে প্রস্তুত হয়ে গেল।
সহসা তাদের মধ্যকার এক যুবক বললোঃ তোমরা তো আগুন থেকে বাঁচার জন্যই রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের নিকট আশ্রয় নিয়েছ। কাজেই তাড়াহুড়ো করো না। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের সাক্ষাত করা পর্যন্ত অপেক্ষা কর। তিনি যদি আগুনে ঢুকবার আদেশ দেন তাহলে ঢুকো। অতঃপর সবাই রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের নিকট ফিরে গেল এবং তাকে পুরো ঘটনা জানালো। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বললেনঃ তোমরা যদি আগুনে ঢুকতে, তবে আর কখনো তা থেকে বের হতে পারতে না। (অর্থাৎ তোমাদের চিরতরে জাহান্নামের অধিবাসী হতে হতো।) মনে রেখ, আনুগত্য শুধু সৎকাজে।
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭২৫
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭২৫। আলী (রাঃ) বলেছেন, উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) তাঁর কাছে উপস্থিত লোকদেরকে বললেনঃ আমাদের নিকট জনগণের সম্পদের কিছু যে উদ্ধৃত্ত রয়ে গেছে, সে সম্পর্কে তোমাদের মত কী? লোকেরা বললোঃ হে আমীরুল মুমিনীন, আমরা আপনাকে আপনার পরিবার থেকে, আপনার জমিজমা থেকে এবং আপনার ব্যবসায় থেকে নিষ্ক্রিয় করে দিয়েছি। কাজেই এই উদ্ধৃত্ত সম্পদটুকু আপনার থাকুক। অতঃপর উমর (রাঃ) আমাকে বললেনঃ আপনি কি বলেন? আমি বললামঃ লোকেরা তো আপনার দিকেই ইঙ্গিত করেছে। তিনি বললেনঃ আপনি বলুন। আমি বললামঃ আপনি আপনার নিশ্চিত বিশ্বাসকে ধারণায় পরিণত করলেন কেন? উমার (রাঃ) বললেনঃ আপনি যা বলেছেন, তা থেকে অবশ্যই বেরিয়ে আসবেন। (অর্থাৎ পরিবর্তন করবেন।) আমি বললামঃ বেশ, আল্লাহর কসম, আমি এ মত থেকে অবশ্যই বেরিয়ে আসবো। আপনার কি মনে পড়ে, আল্লাহর নবী সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম যখন আপনাকে যাকাত আদায়কারী হিসাবে পাঠিয়েছিলেন, তখন আপনি আব্বাস বিন আবদুল মুত্তালিবের কাছে উপস্থিত হলেন, তিনি তাঁর যাকাত আপনার কাছে দিলেন না, ফলে আপনাদের দু’জনের মধ্যে কিছু তর্ক হয়েছিল।
তখন আপনি আমাকে বললেনঃ আমার সাথে রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কাছে চলুন। আমরা গেলাম এবং তাকে খানিকটা বিব্রত দেখতে পেলাম। তা দেখে আমরা ফিরে এলাম। পুনরায় পরদিন সকালে তার কাছে গেলাম। দেখলাম, তার মন প্রফুল্প আছে। আপনি তাকে ইতিপূর্বে তিনি যা যা করেছেন তা জানালেন। তিনি আপনাকে বললেনঃ তুমি কি জানিনা, চাচা বাপের সহোদর ভাই? আর আমরা তাকে প্রথম দিন যে বিব্রত অবস্থায় দেখেছি, তার উল্লেখ করলাম, আর দ্বিতীয় দিন যে প্রফুল্ল অবস্থায় দেখলাম তারও উল্লেখ করলাম। তখন তিনি বললেনঃ তোমরা দু’জন যখন প্রথম দিন আমার কাছে এসেছিলে, তখন আমার নিকট যাকাতের দুই দিনার বণ্টন করা বাকী ছিল। সেটাই ছিল আমাকে বিব্রত অবস্থায় দেখার কারণ। আর আজকে যখন তোমরা আমাকে দেখছ, তখন আমি ঐ দুটো দিনার বণ্টন করে ফেলেছি। সেজন্যই আজ আমাকে প্রফুল্ল দেখছি। তখন উমার (রাঃ) বললেনঃ আপনি সত্য বলেছেন। আল্লাহর কসম, আমি আপনাকে প্রথম দিন ও দ্বিতীয় দিন- উভয় দিনের জন্য কৃতজ্ঞতা জানাচ্ছি। (অর্থাৎ উদ্বৃত্ত সম্পদ বণ্টন করাই জরুরী।) [তিরমিযী ৩৭৬০]
حَدَّثَنَا وَهْبُ بْنُ جَرِيرٍ، حَدَّثَنَا أَبِي، سَمِعْتُ الْأَعْمَشَ، يُحَدِّثُ عَنْ عَمْرِو بْنِ مُرَّةَ، عَنْ أَبِي الْبَخْتَرِيِّ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: قَالَ عُمَرُ بْنُ الْخَطَّابِ لِلنَّاسِ: مَا تَرَوْنَ فِي فَضْلٍ فَضَلٌ عِنْدَنَا مِنْ هَذَا الْمَالِ؟ فَقَالَ النَّاسُ: يَا أَمِيرَ الْمُؤْمِنِينَ، قَدْ شَغَلْنَاكَ عَنْ أَهْلِكَ وَضَيْعَتِكَ وَتِجَارَتِكَ، فَهُوَ لَكَ. فَقَالَ لِي: مَا تَقُولُ أَنْتَ؟ فَقُلْتُ: قَدْ أَشَارُوا عَلَيْكَ. فَقَالَ: قُلْ. فَقُلْتُ: لِمَ تَجْعَلُ يَقِينَكَ ظَنًّا؟ فَقَالَ: لَتَخْرُجَنَّ مِمَّا قُلْتَ. فَقُلْتُ: أَجَلْ، وَاللهِ لاخْرُجَنَّ مِنْهُ، أَتَذْكُرُ حِينَ بَعَثَكَ نَبِيُّ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ سَاعِيًا، فَأَتَيْتَ الْعَبَّاسَ بْنَ عَبْدِ الْمُطَّلِبِ، فَمَنَعَكَ صَدَقَتَهُ، فَكَانَ بَيْنَكُمَا شَيْءٌ فَقُلْتَ لِي: انْطَلِقْ مَعِي إِلَى النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَوَجَدْنَاهُ خَاثِرًا، فَرَجَعْنَا، ثُمَّ غَدَوْنَا عَلَيْهِ فَوَجَدْنَاهُ طَيِّبَ النَّفْسِ، فَأَخْبَرْتَهُ بِالَّذِي صَنَعَ، فَقَالَ لَكَ: ” أَمَا عَلِمْتَ أَنَّ عَمَّ الرَّجُلِ صِنْوُ أَبِيهِ؟ ” وَذَكَرْنَا لَهُ الَّذِي رَأَيْنَاهُ مِنْ خُثُورِهِ فِي الْيَوْمِ الْأَوَّلِ، وَالَّذِي رَأَيْنَاهُ مِنْ طِيبِ نَفْسِهِ فِي الْيَوْمِ الثَّانِي، فَقَالَ: ” إِنَّكُمَا أَتَيْتُمَانِي فِي الْيَوْمِ الْأَوَّلِ وَقَدْ بَقِيَ عِنْدِي مِنَ الصَّدَقَةِ دِينَارَانِ، فَكَانَ الَّذِي رَأَيْتُمَا مِنْ خُثُورِي لَهُ، وَأَتَيْتُمَانِي الْيَوْمَ وَقَدْ وَجَّهْتُهُمَا، فَذَاكَ الَّذِي رَأَيْتُمَا مِنْ طِيبِ نَفْسِي ” فَقَالَ عُمَرُ: صَدَقْتَ، وَاللهِ لاشْكُرَنَّ لَكَ الْأُولَى وَالْآخِرَةَ
إسناده ضعيف لانقطاعه، أبو البختري- واسمه سعيد بن فيروز- لم يدرك عليا
جرير: هو ابن حازم، والأعمش: هو سليمان بن مهران
وأخرجه يعقوب بن سفيان في “المعرفة” 1/500-501، ومن طريقه البيهقي 4/111 عن عيسى بن محمد، والترمذي (3760) عن أحمد بن إبراهيم الدورقي، وأبو يعلى (545) عن أبي موسى محمد بن المثنى الزمِن، ثلاثتهم عن وهب بن جرير، بهذا الإسناد. قال عيسى بن محمد في حديثه: “إنا كنا احتجنا، فاستسلفنا العباس صدقة عامين”، وحديث أحمد بن إبراهيم الدورقي مختصر بلفظ: أن النبي صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قال لعمر في العباس: “إن عم الرجل صِنْو أبيه” وكان عمر تكلم في صدقته. وقال الترمذي: حسن صحيح
قلنا: وإنما قال الترمذي ذلك لأن لهذا الحرف شاهداً من حديث أبي هريرة أخرجه هو برقم (3761) ، ومسلم (983) وغيرهما، وسيأتي تخريجه في “مسند أحمد” (2/322 الطبعة الميمنية)
قوله: “فوجدناه خاثراً”، الخثور: ثقل النفس وقلة نشاطها
وقوله: “عم الرجل صنو أبيه”، أي: مثله وقرينه، وأصله النخلتان تخرجان عن أصل واحد
حدثنا وهب بن جرير، حدثنا أبي، سمعت الأعمش، يحدث عن عمرو بن مرة، عن أبي البختري، عن علي، قال: قال عمر بن الخطاب للناس: ما ترون في فضل فضل عندنا من هذا المال؟ فقال الناس: يا أمير المؤمنين، قد شغلناك عن أهلك وضيعتك وتجارتك، فهو لك. فقال لي: ما تقول أنت؟ فقلت: قد أشاروا عليك. فقال: قل. فقلت: لم تجعل يقينك ظنا؟ فقال: لتخرجن مما قلت. فقلت: أجل، والله لاخرجن منه، أتذكر حين بعثك نبي الله صلى الله عليه وسلم ساعيا، فأتيت العباس بن عبد المطلب، فمنعك صدقته، فكان بينكما شيء فقلت لي: انطلق معي إلى النبي صلى الله عليه وسلم، فوجدناه خاثرا، فرجعنا، ثم غدونا عليه فوجدناه طيب النفس، فأخبرته بالذي صنع، فقال لك: ” أما علمت أن عم الرجل صنو أبيه؟ ” وذكرنا له الذي رأيناه من خثوره في اليوم الأول، والذي رأيناه من طيب نفسه في اليوم الثاني، فقال: ” إنكما أتيتماني في اليوم الأول وقد بقي عندي من الصدقة ديناران، فكان الذي رأيتما من خثوري له، وأتيتماني اليوم وقد وجهتهما، فذاك الذي رأيتما من طيب نفسي ” فقال عمر: صدقت، والله لاشكرن لك الأولى والآخرة إسناده ضعيف لانقطاعه، أبو البختري- واسمه سعيد بن فيروز- لم يدرك عليا جرير: هو ابن حازم، والأعمش: هو سليمان بن مهران وأخرجه يعقوب بن سفيان في “المعرفة” 1/500-501، ومن طريقه البيهقي 4/111 عن عيسى بن محمد، والترمذي (3760) عن أحمد بن إبراهيم الدورقي، وأبو يعلى (545) عن أبي موسى محمد بن المثنى الزمن، ثلاثتهم عن وهب بن جرير، بهذا الإسناد. قال عيسى بن محمد في حديثه: “إنا كنا احتجنا، فاستسلفنا العباس صدقة عامين”، وحديث أحمد بن إبراهيم الدورقي مختصر بلفظ: أن النبي صلى الله عليه وسلم قال لعمر في العباس: “إن عم الرجل صنو أبيه” وكان عمر تكلم في صدقته. وقال الترمذي: حسن صحيح قلنا: وإنما قال الترمذي ذلك لأن لهذا الحرف شاهدا من حديث أبي هريرة أخرجه هو برقم (3761) ، ومسلم (983) وغيرهما، وسيأتي تخريجه في “مسند أحمد” (2/322 الطبعة الميمنية) قوله: “فوجدناه خاثرا”، الخثور: ثقل النفس وقلة نشاطها وقوله: “عم الرجل صنو أبيه”، أي: مثله وقرينه، وأصله النخلتان تخرجان عن أصل واحد
হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭২৬
শেয়ার ও অন্যান্য
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পরিচ্ছেদঃ
৭২৬। হাদীস নং ৭০১ দ্রষ্টব্য।
৭০১। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাকে শিখিয়েছেন, যখন আমার ওপর কোন কঠিন বিপদ আসে, তখন যেন (এই দু’আ) পড়িঃ
لَا إِلَهَ إِلا اللهُ الْحَلِيمُ الْكَرِيمُ، سُبْحَانَ اللهِ، وَتَبَارَكَ اللهُ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ، وَالْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
“লা-ইলাহা ইল্লাল্লাহুল হালিমুল কারীম, সুবহানাল্লাহি ওয়া তাবারাকাল্লাহু রাব্বুল আরশিল আযীম, ওয়াল হামদুলিল্লাহি রাব্বিল আলামীন।”
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭২৭
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭২৭। আলী (রাঃ) বলেছেন, আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে বলতে শুনেছিঃ যে ব্যক্তি একটি পশমের জায়গাও জানাবাতের গোসলে পানি পৌছাতে বাদ রাখবে, আল্লাহ তা’আলা তাকে জাহান্নামে এরূপ এরূপ শাস্তি দেবেন। আলী (রাঃ) বলেনঃ এ কারণেই আমি আমার প্রতিটি চুল ও পশমকে কঠোরভাবে কচলাই।
[আবু দাউদ ২৪৯, ইবনু মাজাহ ৫৯৯, মুসনাদ আহমাদ ৭৯8, ১১২১]
حَدَّثَنَا حَسَنُ بْنُ مُوسَى، حَدَّثَنَا حَمَّادُ بْنُ سَلَمَةَ، عَنْ عَطَاءِ بْنِ السَّائِبِ، عَنْ زَاذَانَ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: سَمِعْتُ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: ” مَنْ تَرَكَ مَوْضِعَ شَعَرَةٍ مِنْ جَنَابَةٍ لَمْ يُصِبْهَا مَاءٌ، فَعَلَ اللهُ تَعَالَى بِهِ كَذَا وَكَذَا مِنَ النَّارِ ” قَالَ عَلِيٌّ: فَمِنْ ثَمَّ عَادَيْتُ شَعْرِي
إسناده مرفوعاً ضعيف، عطاء بن السائب اختلط بأخرة، وعامة من شفع عنه هذا الحديث، فإنما رواه عنه بعد اختلاطه، ومما يؤيد ذلك أن علي بن المديني ذكر عن يحيى بن سعيد القطان أنه قال: ما حدت سفيان وشعبة عن عطاء بن السائب صحيح، إلا حديثين كان شعبة يقول: سمعتهما منه بأخرة عن زاذان. قلنا: أحد هذين الحديثين حديثنا هذا، فقد أخرجه الحافظ ابن المظفر البزاز في “غرائب شعبة” ورقة 26- فيما أفاده محقق “الكواكب النيرات” ص 330- من طريق شعبة، عن عطاء، عن زاذان، عن علي، به مرفوعا
وقد روى هذا الحديث عن عطاء بن السائب، فوقفه على علي رضي الله عنه من قوله حمادُ بن زيد، وهو ممن اتفقوا على أنه روى عن عطاء قبل اختلاطه، ذكر ذلك الدارقطني في “العلل” 3/208
وأما حماد بن سلمة الراوي عن عطاء هنا، فقد نقل العقيلي في “الضعفاء” 3/399 عن ابن المديني عن يحيى القطان أن حماد بن سلمة حمل عن عطاء بعد الاختلاط، وخالف آخرون فقالوا: قبل الاختلاط، واستظهر الحافظ ابن حجر في “التهذيب” في آخر ترجمة عطاء بن السائب أن حماد بن سلمة سمع منه قبل الاختلاط وبعده، ويغلب على ظننا أن هذا الحديث رواه عنه بعد الاختلاط
وأخرجه الطيالسي (175) ، وابن أبي شيبة 1/100، والدارمي (751) ، وأبو داود (249) ، وابن ماجه (599) ، والبزار (813) ، والطبري في “تهذيب الآثار” ص 276 و276-277، وأبو نعيم في “الحلية” 4/200، والبيهقي 1/175 من طرق عن حماد بن سلمة، بهذا الإسناد، وزاد بعضهم: أنه كان يَجُرُّه. وسيأتي برقم (794) و (1121)
قال ابن حجر في “تلخيص الحبير” 1/142 بعد أن أورد هذا الحديثَ: وإسناده صحيح، فإنه من رواية عطاء بن السائب، وقد سمع منه حماد بن سلمة قبل الاختلاط
لكن قيل: إن الصواب وقفه على علي
وقال الأمير الصنعاني في “سبل السلام” 1/93 بعد أن ذكر عن الحافظ ابن حجر تصحيحه للحديث: لكن قال ابن كثير في “الإرشاد”: إن حديث علي هذا من رواية عطاء بن السايب وهو سيئ الحفظ، وقال النووي: إنه حديث ضعيف
قلت (القائل هو الصنعاني) : وسبب اختلاف الأئمة في تصحيحه وتضعيفه أن عطاء بنَ السائب اختلط في آخر عمره، فمن روى عنه قَبْلَ اختلاطه، فروايته عنه صحيحة، ومن روى عنه بَعْدَ اختلاطه، فروايته عنه ضعيفة، وحديث علي هذا اختلفوا هل رواه قبل الاختلاط أو بعده، فلذا اختلفوا في تصحيحه وتضعيفه حتى يتبين الحالُ فيه، وقيل: الصوابُ وقفه على على رضي الله عنه
حدثنا حسن بن موسى، حدثنا حماد بن سلمة، عن عطاء بن السائب، عن زاذان، عن علي، قال: سمعت النبي صلى الله عليه وسلم يقول: ” من ترك موضع شعرة من جنابة لم يصبها ماء، فعل الله تعالى به كذا وكذا من النار ” قال علي: فمن ثم عاديت شعري إسناده مرفوعا ضعيف، عطاء بن السائب اختلط بأخرة، وعامة من شفع عنه هذا الحديث، فإنما رواه عنه بعد اختلاطه، ومما يؤيد ذلك أن علي بن المديني ذكر عن يحيى بن سعيد القطان أنه قال: ما حدت سفيان وشعبة عن عطاء بن السائب صحيح، إلا حديثين كان شعبة يقول: سمعتهما منه بأخرة عن زاذان. قلنا: أحد هذين الحديثين حديثنا هذا، فقد أخرجه الحافظ ابن المظفر البزاز في “غرائب شعبة” ورقة 26- فيما أفاده محقق “الكواكب النيرات” ص 330- من طريق شعبة، عن عطاء، عن زاذان، عن علي، به مرفوعا وقد روى هذا الحديث عن عطاء بن السائب، فوقفه على علي رضي الله عنه من قوله حماد بن زيد، وهو ممن اتفقوا على أنه روى عن عطاء قبل اختلاطه، ذكر ذلك الدارقطني في “العلل” 3/208 وأما حماد بن سلمة الراوي عن عطاء هنا، فقد نقل العقيلي في “الضعفاء” 3/399 عن ابن المديني عن يحيى القطان أن حماد بن سلمة حمل عن عطاء بعد الاختلاط، وخالف آخرون فقالوا: قبل الاختلاط، واستظهر الحافظ ابن حجر في “التهذيب” في آخر ترجمة عطاء بن السائب أن حماد بن سلمة سمع منه قبل الاختلاط وبعده، ويغلب على ظننا أن هذا الحديث رواه عنه بعد الاختلاط وأخرجه الطيالسي (175) ، وابن أبي شيبة 1/100، والدارمي (751) ، وأبو داود (249) ، وابن ماجه (599) ، والبزار (813) ، والطبري في “تهذيب الآثار” ص 276 و276-277، وأبو نعيم في “الحلية” 4/200، والبيهقي 1/175 من طرق عن حماد بن سلمة، بهذا الإسناد، وزاد بعضهم: أنه كان يجره. وسيأتي برقم (794) و (1121) قال ابن حجر في “تلخيص الحبير” 1/142 بعد أن أورد هذا الحديث: وإسناده صحيح، فإنه من رواية عطاء بن السائب، وقد سمع منه حماد بن سلمة قبل الاختلاط لكن قيل: إن الصواب وقفه على علي وقال الأمير الصنعاني في “سبل السلام” 1/93 بعد أن ذكر عن الحافظ ابن حجر تصحيحه للحديث: لكن قال ابن كثير في “الإرشاد”: إن حديث علي هذا من رواية عطاء بن السايب وهو سيئ الحفظ، وقال النووي: إنه حديث ضعيف قلت (القائل هو الصنعاني) : وسبب اختلاف الأئمة في تصحيحه وتضعيفه أن عطاء بن السائب اختلط في آخر عمره، فمن روى عنه قبل اختلاطه، فروايته عنه صحيحة، ومن روى عنه بعد اختلاطه، فروايته عنه ضعيفة، وحديث علي هذا اختلفوا هل رواه قبل الاختلاط أو بعده، فلذا اختلفوا في تصحيحه وتضعيفه حتى يتبين الحال فيه، وقيل: الصواب وقفه على على رضي الله عنه
হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭২৮
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭২৮। মুহাম্মাদ বিন আলী ইবনুল হানাফিয়া তাঁর পিতা থেকে বর্ণনা করেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে সাতটি কাপড় দিয়ে কাফন দেয়া হয়েছিল। [হাদীস নং ৮০১ দ্রষ্টব্য]
حَدَّثَنَا حَسَنُ بْنُ مُوسَى، حَدَّثَنَا حَمَّادٌ، عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ مُحَمَّدِ بْنِ عَقِيلٍ، عَنْ مُحَمَّدِ بْنِ عَلِيٍّ ابْنِ الْحَنَفِيَّةِ، عَنْ أَبِيهِ، قَالَ: ” كُفِّنَ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي سَبْعَةِ أَثْوَابٍ
إسناده ضعيف لتفرد عبد الله بن محمد بن عَقيل به، ولمخالفته الحديثَ الصحيح الذي رواه البخاري (1264) ، ومسلم (941) عن أم المؤمنين عائشة رضي الله عنها أن رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كُفِّن في ثلاثة أثوابٍ يمانيَةٍ بيض سَحولية من كُرسُف
والقول الفصل في عبد الله بن محمد بن عقيل ما قاله الحافظ ابن حجر في “التلخيص الحبير” 2/108 من أنه سيئ الحفظ يصلح حديثه للمتابعات، فأما إذا انفرد فيحسن، وأما إذا خالف فلا يُقبل. وهو هنا قد خالف فلا يُقبل حديثه
قلنا: وقد تساهل الهيثمي في “مجمع الزوائد” 3/23 والشيخ أحمد شاكر في تعليقه على “المسند”- رحمهما الله تعالى- فحسن الأول إسناده، وصححه الثاني! وقد أورد هذا الحديثَ ابنُ الجوزي في “العلل المتناهية” 2/897 – 898 وقال: هذا حديث لا يصح، تفرد به ابن عقيل وقد ضعفه يحيى، وقال ابن حبان: رديئ الحفظ يحدث على التوهم، فيجيء بالخبر على غير سَننه، فوجب مجانبة أخباره
وأخرجه ابن أبي شيبة 3/262 عن سويد بن عمرو، وابن حبان في “المجروحين” 2/3، وابن عدي في “الكامل” 4/1448 من طريق هدبة بن خالد، كلاهما عن حماد بن سلمة، بهذا الإسناد. وسيأتي برقم (801)
حدثنا حسن بن موسى، حدثنا حماد، عن عبد الله بن محمد بن عقيل، عن محمد بن علي ابن الحنفية، عن أبيه، قال: ” كفن النبي صلى الله عليه وسلم في سبعة أثواب إسناده ضعيف لتفرد عبد الله بن محمد بن عقيل به، ولمخالفته الحديث الصحيح الذي رواه البخاري (1264) ، ومسلم (941) عن أم المؤمنين عائشة رضي الله عنها أن رسول الله صلى الله عليه وسلم كفن في ثلاثة أثواب يمانية بيض سحولية من كرسف والقول الفصل في عبد الله بن محمد بن عقيل ما قاله الحافظ ابن حجر في “التلخيص الحبير” 2/108 من أنه سيئ الحفظ يصلح حديثه للمتابعات، فأما إذا انفرد فيحسن، وأما إذا خالف فلا يقبل. وهو هنا قد خالف فلا يقبل حديثه قلنا: وقد تساهل الهيثمي في “مجمع الزوائد” 3/23 والشيخ أحمد شاكر في تعليقه على “المسند”- رحمهما الله تعالى- فحسن الأول إسناده، وصححه الثاني! وقد أورد هذا الحديث ابن الجوزي في “العلل المتناهية” 2/897 – 898 وقال: هذا حديث لا يصح، تفرد به ابن عقيل وقد ضعفه يحيى، وقال ابن حبان: رديئ الحفظ يحدث على التوهم، فيجيء بالخبر على غير سننه، فوجب مجانبة أخباره وأخرجه ابن أبي شيبة 3/262 عن سويد بن عمرو، وابن حبان في “المجروحين” 2/3، وابن عدي في “الكامل” 4/1448 من طريق هدبة بن خالد، كلاهما عن حماد بن سلمة، بهذا الإسناد. وسيأتي برقم (801)
হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭২৯
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭২৯। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম যখন তাকবীর তাহরীমা বলতেন, তখন শুরুর দু’আ (সানা) পড়তেন, তারপর বলতেনঃ
“যিনি আকাশ ও পৃথিবী সৃষ্টি করেছেন, তাঁর দিকে একমুখী ও আত্মসমর্পণকারী হয়ে ফিরলাম, আমি মুশরিক নই, আমার নামায, আমার কুরবানী, আমার জীবন ও আমার মৃত্যু সর্বজগতের প্রতিপালক আল্লাহর জন্য। তাঁর কোন শরীক নেই, আমাকে এরই নির্দেশ দেয়া হয়েছে এবং আমিই প্ৰথম আত্মসমৰ্পণকারী। হে আল্লাহ, (তুমিই বাদশাহ) তুমি ছাড়া আর কোন ইলাহ নেই। তুমি আমার প্রতিপালক, আমি তোমার দাস, আমি নিজের ওপর যুলম করেছি, আমি নিজের গুনাহর কথা স্বীকার করছি। সুতরাং আমার সকল গুনাহ মাফ করে দাও, তুমি ছাড়া তো কেউ গুনাহ মাফ করতে পারে না। আমাকে সর্বোত্তম চরিত্র অর্জনের পথ দেখাও। তুমি ছাড়া তো সর্বোত্তম চরিত্রের পথ আর কেউ দেখাতে পারে না। আমার কাছ থেকে খারাপ চরিত্র দূর করে দাও। আমার কাছ থেকে খারাপ চরিত্র তুমি ছাড়া আর কেউ দূর করতে পারে না। তুমি বরকতময় ও মহান। তোমার নিকট ক্ষমা চাই ও তাওবা করি।”
আর যখন তিনি রুকু দিতেন বলতেনঃ
হে আল্লাহ্, তোমার জন্যই রুকু করলাম, তোমার উপরই ঈমান আনলাম তোমার নিকট আত্মসমৰ্পণ করলাম, আমার কান, চোখ, মগজ, হাড়গোড় ও ধমনী সবই তোমার অনুগত।
আর রুকু থেকে মাথা তুলে বলতেনঃ
সামিয়াল্লাহু লিমান হামিদাহ। হে আমাদের প্রতিপালক, তোমার জন্য আকাশ, পৃথিবী ও তার মাঝখানে যত জায়গা রয়েছে, তার পূর্তি পরিমাণ এবং তারপর আর যে জিনিস তোমার ইচ্ছা তার পূর্তি পরিমাণ প্রশংসা।
আর যখন সিজদায় যেতেন বলতেনঃ
হে আল্লাহ, তোমার নিকট আত্মসমৰ্পণ করলাম। আমার মুখমণ্ডল আল্লাহর সামনে সিজদায় নত হলো, যিনি তা সৃষ্টি করেছেন, তাকে রূপ দান করেছেন এবং সুন্দর রূপ দান করেছেন। তার কান ও চোখ খুলে দিয়েছেন। মহান আল্লাহ শ্রেষ্ঠ স্ৰষ্টা বরকতময়।”
তারপর সালাম ফিরিয়ে যখন নামায শেষ করতেন তখন বলতেনঃ
হে আল্লাহ, আমার আগের গুনাহ, পরের গুনাহ, গোপন গুনাহ, প্ৰকাশ্য গুনাহ, অপচয়ের গুনাহ এবং যে গুনাহ তুমি আমার চেয়েও ভালো জান- সবই মাফ করে দাও। তুমি অনাদি, তুমি অনন্ত। তুমি ছাড়া কোন ইলাহ নেই।
[মুসলিম ৭৭১, ইবনু খুযাইমা 8৬২, ৪৬৩, ৪৬8, ৫৮8, ৬০৭, ৬১২, ৬৭৩, ৭২৩, ৭8৩; মুসনাদ আহমাদ ৭১৭]
حَدَّثَنَا أَبُو سَعِيدٍ، حَدَّثَنَا عَبْدُ الْعَزِيزِ بْنُ عَبْدِ اللهِ الْمَاجِشُونُ، حَدَّثَنَا عَبْدُ اللهِ بْنُ الْفَضْلِ، وَالْمَاجِشُونُ، عَنْ الْأَعْرَجِ، عَنْ عُبَيْدِ اللهِ بْنِ رَافِعٍ، عَنِ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ، أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ إِذَا كَبَّرَ اسْتَفْتَحَ ثُمَّ قَالَ: ” وَجَّهْتُ وَجْهِي لِلَّذِي فَطَرَ السَّمَاوَاتِ، وَالْأَرْضَ حَنِيفًا مُسْلِمًا، وَمَا أَنَا مِنَ الْمُشْرِكِينَ، إِنَّ صَلاتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ، لَا شَرِيكَ لَهُ، وَبِذَلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَا مِنَ الْمُسْلِمِينَ – وقَالَ أَبُو النَّضْرِ: وَأَنَا أَوَّلُ الْمُسْلِمِينَ – اللهُمَّ لَا إِلَهَ إِلا أَنْتَ، أَنْتَ رَبِّي وَأَنَا عَبْدُكَ، ظَلَمْتُ نَفْسِي، وَاعْتَرَفْتُ بِذَنْبِي، فَاغْفِرْ لِي ذُنُوبِي جَمِيعًا، لَا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلا أَنْتَ، وَاهْدِنِي لِأَحْسَنِ الْأَخْلاقِ، لَا يَهْدِي لِأَحْسَنِهَا إِلا أَنْتَ، وَاصْرِفْ عَنِّي سَيِّئَهَا، لَا يَصْرِفُ عَنِّي سَيِّئَهَا إِلا أَنْتَ، تَبَارَكْتَ وَتَعَالَيْتَ، أَسْتَغْفِرُكَ وَأَتُوبُ إِلَيْكَ ” وَكَانَ إِذَا رَكَعَ قَالَ: ” اللهُمَّ لَكَ رَكَعْتُ، وَبِكَ آمَنْتُ، وَلَكَ أَسْلَمْتُ، خَشَعَ لَكَ سَمْعِي وَبَصَرِي وَمُخِّي وَعِظَامِي وَعَصَبِي ” وَإِذَا رَفَعَ رَأْسَهُ مِنَ الرَّكْعَةِ قَالَ: ” سَمِعَ اللهُ لِمَنْ حَمِدَهُ، رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ، مِلْءَ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا، وَمِلْءَ مَا شِئْتَ مِنْ شَيْءٍ بَعْدُ ” وَإِذَا سَجَدَ قَالَ: ” اللهُمَّ لَكَ سَجَدْتُ، وَبِكَ آمَنْتُ، وَلَكَ أَسْلَمْتُ، سَجَدَ وَجْهِي لِلَّذِي خَلَقَهُ فَصَوَّرَهُ فَأَحْسَنَ صُوَرَهُ، فَشَقَّ سَمْعَهُ وَبَصَرَهُ، فَتَبَارَكَ اللهُ أَحْسَنُ الْخَالِقِينَ ” فَإِذَا سَلَّمَ مِنَ الصَّلاةِ قَالَ: اللهُمَّ اغْفِرْ لِي مَا قَدَّمْتُ وَمَا أَخَّرْتُ، وَمَا أَسْرَرْتُ وَمَا أَعْلَنْتُ، وَمَا أَسْرَفْتُ، وَمَا أَنْتَ أَعْلَمُ بِهِ مِنِّي، أَنْتَ الْمُقَدِّمُ وَأَنْتَ الْمُؤَخِّرُ، لَا إِلَهَ إِلا أَنْتَ
–
إسناده صحيح، رجاله ثقات رجال الصحيح. أبو سعيد: هو عبد الرحمن بن عبد الله بن عبيد البصري مولى بني هاشم، والماجشون: هو يعقوب بن أبي سلمة، والأعرج: هو عبد الرحمن بن هرمز
وأخرجه ابن خزيمة (463) ، والطحاوي في “شرح معاني الآثار” 1/199 من طريق أحمد بن خالد الوهبي، عن عبد العزيز الماجشون، بهذا الإسناد. وقرن الطحاوي بأحمد بن خالد عبدَ الله بن صالح
وأخرجه عبد الرزاق (2567) و (2903) ، وابن ماجه (1054) ، وابن خزيمة (464) و (673) ، وأبو عوانة 2/102، والطحاوي في “شرح مشكل الآثار” 1/488، و”شرح معاني الآثار” 1/239، وابن حبان (1771) و (1772) و (1774) ، والدارقطني 1/287، والبيهقي 2/33 و74 من طريق موسى بن عقبة، عن عبد الله بن الفضل، به
وأخرجه الطيالسي (152) ، وابن أبي شيبة 1/231-232 و248، والدارمي (1238) و (1314) ، ومسلم (771) (202) ، وأبو داود (1509) ، والترمذي (266) و (3422) ، والنسائي 2/129- 130 و192 و220، وابن خزيمة (462) و (612) و (743) ، وأبو يعلى (285) و (574) ، وابن الجارود (179) ، وأبو عوانة 2/100 و101، والطحاوي في “شرح معاني الآثار” 1/199، والد ارقطني 1/296 من طرق عن عبد العزيز بن عبد الله الماجشون، عن يعقوب بن أبي سلمة الماجشون، به. وقرن الترمذي في الموضع الثاني بعبد العزيز يوسفَ بن يعقوب الماجشون، وقال: حسن صحيح
وأخرجه مسلم (771) (201) ، والترمذي (3421) ، والبزار (536) ، وابن خزيمة (723) ، وأبو يعلى (575) ، والبيهقي 2/32، والبغوي (572) من طريق يوسف بن يعقوب بن أبي سلمة الماجشون، عن أبيه، به. وسيأتي برقم (803) و (804) و (805) و (960)
قوله: “ظلمت نفسي”، قال السندي: قاله تشريعاً للأمة، وتعظيماً لحق الرب، وبياناً لعجز العبد عن أداء حقه
واهدني: أريدَ به التثبيت والزيادة، وفيه بيان دوام حاجة العبد إلى فضل الرب تبارك وتعالى، وأنه لولا التثبيت وصرف السوء تعالى لوقع العبد في السوء
حدثنا أبو سعيد، حدثنا عبد العزيز بن عبد الله الماجشون، حدثنا عبد الله بن الفضل، والماجشون، عن الأعرج، عن عبيد الله بن رافع، عن علي بن أبي طالب، أن رسول الله صلى الله عليه وسلم كان إذا كبر استفتح ثم قال: ” وجهت وجهي للذي فطر السماوات، والأرض حنيفا مسلما، وما أنا من المشركين، إن صلاتي ونسكي ومحياي ومماتي لله رب العالمين، لا شريك له، وبذلك أمرت وأنا من المسلمين – وقال أبو النضر: وأنا أول المسلمين – اللهم لا إله إلا أنت، أنت ربي وأنا عبدك، ظلمت نفسي، واعترفت بذنبي، فاغفر لي ذنوبي جميعا، لا يغفر الذنوب إلا أنت، واهدني لأحسن الأخلاق، لا يهدي لأحسنها إلا أنت، واصرف عني سيئها، لا يصرف عني سيئها إلا أنت، تباركت وتعاليت، أستغفرك وأتوب إليك ” وكان إذا ركع قال: ” اللهم لك ركعت، وبك آمنت، ولك أسلمت، خشع لك سمعي وبصري ومخي وعظامي وعصبي ” وإذا رفع رأسه من الركعة قال: ” سمع الله لمن حمده، ربنا ولك الحمد، ملء السموات والأرض وما بينهما، وملء ما شئت من شيء بعد ” وإذا سجد قال: ” اللهم لك سجدت، وبك آمنت، ولك أسلمت، سجد وجهي للذي خلقه فصوره فأحسن صوره، فشق سمعه وبصره، فتبارك الله أحسن الخالقين ” فإذا سلم من الصلاة قال: اللهم اغفر لي ما قدمت وما أخرت، وما أسررت وما أعلنت، وما أسرفت، وما أنت أعلم به مني، أنت المقدم وأنت المؤخر، لا إله إلا أنت – إسناده صحيح، رجاله ثقات رجال الصحيح. أبو سعيد: هو عبد الرحمن بن عبد الله بن عبيد البصري مولى بني هاشم، والماجشون: هو يعقوب بن أبي سلمة، والأعرج: هو عبد الرحمن بن هرمز وأخرجه ابن خزيمة (463) ، والطحاوي في “شرح معاني الآثار” 1/199 من طريق أحمد بن خالد الوهبي، عن عبد العزيز الماجشون، بهذا الإسناد. وقرن الطحاوي بأحمد بن خالد عبد الله بن صالح وأخرجه عبد الرزاق (2567) و (2903) ، وابن ماجه (1054) ، وابن خزيمة (464) و (673) ، وأبو عوانة 2/102، والطحاوي في “شرح مشكل الآثار” 1/488، و”شرح معاني الآثار” 1/239، وابن حبان (1771) و (1772) و (1774) ، والدارقطني 1/287، والبيهقي 2/33 و74 من طريق موسى بن عقبة، عن عبد الله بن الفضل، به وأخرجه الطيالسي (152) ، وابن أبي شيبة 1/231-232 و248، والدارمي (1238) و (1314) ، ومسلم (771) (202) ، وأبو داود (1509) ، والترمذي (266) و (3422) ، والنسائي 2/129- 130 و192 و220، وابن خزيمة (462) و (612) و (743) ، وأبو يعلى (285) و (574) ، وابن الجارود (179) ، وأبو عوانة 2/100 و101، والطحاوي في “شرح معاني الآثار” 1/199، والد ارقطني 1/296 من طرق عن عبد العزيز بن عبد الله الماجشون، عن يعقوب بن أبي سلمة الماجشون، به. وقرن الترمذي في الموضع الثاني بعبد العزيز يوسف بن يعقوب الماجشون، وقال: حسن صحيح وأخرجه مسلم (771) (201) ، والترمذي (3421) ، والبزار (536) ، وابن خزيمة (723) ، وأبو يعلى (575) ، والبيهقي 2/32، والبغوي (572) من طريق يوسف بن يعقوب بن أبي سلمة الماجشون، عن أبيه، به. وسيأتي برقم (803) و (804) و (805) و (960) قوله: “ظلمت نفسي”، قال السندي: قاله تشريعا للأمة، وتعظيما لحق الرب، وبيانا لعجز العبد عن أداء حقه واهدني: أريد به التثبيت والزيادة، وفيه بيان دوام حاجة العبد إلى فضل الرب تبارك وتعالى، وأنه لولا التثبيت وصرف السوء تعالى لوقع العبد في السوء
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৩০
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৩০। আলী (রাঃ) রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া সাল্লামাকে বললেনঃ ইয়া রাসূলাল্লাহ, আপনার পরে যদি আমার কোন পুত্ৰ সন্তান ভূমিষ্ঠ হয়, তবে কি তার নাম আপনার নামে ও তার ডাকনাম আপনার ডাকনামে রাখবো? রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বললেনঃ হ্যাঁ, রেখো? এভাবে আলীর জন্য এটা রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের পক্ষ থেকে একটা অনুমতি হিসাবে বিবেচিত। [আবু দাউদ ৪৯৬৭]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا فِطْرٌ، عَنِ مُنْذِرٍ، عَنِ ابْنِ الْحَنَفِيَّةِ، قَالَ: قَالَ عَلِيٌّ، يَا رَسُولَ اللهِ أَرَأَيْتَ إِنْ وُلِدَ لِي بَعْدَكَ وَلَدٌ أُسَمِّيهِ بِاسْمِكَ، وَأُكَنِّيهِ بِكُنْيَتِكَ؟ قَالَ: نَعَمْ ” فَكَانَتْ رُخْصَةً مِنْ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ لِعَلِيٍّ
إسناده صحيح، فطر- وهو ابن خليفة أبو بكر الحناط- روى له البخاري حديثاً واحداً مقروناً، واحتج به أصحاب السنن، وهو ثقة، وباقي رجاله ثقات رجال الشيخين
المنذر: هو ابن يعلى الثوري، وابن الحنفية: هو محمد بن علي بن أبي طالب. والإسناد – وإن كان ظاهره الإرسال- متصل، فقد أوضحت رواية غير “المسند” أنه من حديث ابن الحنفية عن أبيه علي
وأخرجه البخاري في “الأدب المفرد” (843) ، وأبو داود (4967) ، والترمذي (2843) ، والحاكم 4/278 من طرق عن فطر، بهذا الإسناد. قال الترمذي: صحيح، وصححه الحاكم على شرط الشيخين ووافقه الذهبي، فوهما
ذكر العلامة ابن القيم في “زاد المعاد” 2/245 – 248 أن الناس اختلفوا في التكني بكنيته والتسمِّي باسمه صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ على أربعة أقوال
أحدها: أنه لا يجوز التكني بكنيته مطلقاً، سواء أفردها عن اسمه، أو قرنها به، وسواء محياه وبعد مماته، وحكي ذلك عن الشافعي
القول الثاني: أن النهي إنما هو عن الجمع بين اسمه وكنيته، فإذا أفرد أحدُهما عن الآخر، فلا بأس
القول الثالث: جواز الجمع بينهما، وهو المنقول عن مالك
القول الرابع: أن التكني بأبي القاسم كان ممنوعاً منه في حياة النبي صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وهو جائز
بعد وفاته. وذكر أدلة القائلين بكل قول من هذه الأربعة
وقال الإمام البغوي في “شرح السنة” 12/331-332 بعد أن أشار إلى آراء أهل العلم في المسالة: والأحاديث في النهي المطلق أصحُّ. وانظر “شرح صحيح مسلم” للإمام النووي 14/112-113
حدثنا وكيع، حدثنا فطر، عن منذر، عن ابن الحنفية، قال: قال علي، يا رسول الله أرأيت إن ولد لي بعدك ولد أسميه باسمك، وأكنيه بكنيتك؟ قال: نعم ” فكانت رخصة من رسول الله صلى الله عليه وسلم لعلي إسناده صحيح، فطر- وهو ابن خليفة أبو بكر الحناط- روى له البخاري حديثا واحدا مقرونا، واحتج به أصحاب السنن، وهو ثقة، وباقي رجاله ثقات رجال الشيخين المنذر: هو ابن يعلى الثوري، وابن الحنفية: هو محمد بن علي بن أبي طالب. والإسناد – وإن كان ظاهره الإرسال- متصل، فقد أوضحت رواية غير “المسند” أنه من حديث ابن الحنفية عن أبيه علي وأخرجه البخاري في “الأدب المفرد” (843) ، وأبو داود (4967) ، والترمذي (2843) ، والحاكم 4/278 من طرق عن فطر، بهذا الإسناد. قال الترمذي: صحيح، وصححه الحاكم على شرط الشيخين ووافقه الذهبي، فوهما ذكر العلامة ابن القيم في “زاد المعاد” 2/245 – 248 أن الناس اختلفوا في التكني بكنيته والتسمي باسمه صلى الله عليه وسلم على أربعة أقوال أحدها: أنه لا يجوز التكني بكنيته مطلقا، سواء أفردها عن اسمه، أو قرنها به، وسواء محياه وبعد مماته، وحكي ذلك عن الشافعي القول الثاني: أن النهي إنما هو عن الجمع بين اسمه وكنيته، فإذا أفرد أحدهما عن الآخر، فلا بأس القول الثالث: جواز الجمع بينهما، وهو المنقول عن مالك القول الرابع: أن التكني بأبي القاسم كان ممنوعا منه في حياة النبي صلى الله عليه وسلم، وهو جائز بعد وفاته. وذكر أدلة القائلين بكل قول من هذه الأربعة وقال الإمام البغوي في “شرح السنة” 12/331-332 بعد أن أشار إلى آراء أهل العلم في المسالة: والأحاديث في النهي المطلق أصح. وانظر “شرح صحيح مسلم” للإمام النووي 14/112-113
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৩১
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৩১। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাকে প্রতিশ্রুতি দিয়েছেন যে, মুমিন ছাড়া কেউ তোমাকে ভালোবাসবে না এবং মুনাফিক ব্যতীত কেউ তোমাকে ঘূণা করবে না।
[দেখুন ৬৪২ নং হাদীস ]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا الْأَعْمَشُ، عَنْ عَدِيِّ بْنِ ثَابِتٍ، عَنْ زِرِّ بْنِ حُبَيْشٍ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: عَهِدَ إِلَيَّ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” أَنَّهُ لَا يُحِبُّكَ إِلا مُؤْمِنٌ، وَلا يُبْغِضُكَ إِلا مُنَافِقٌ
إسناده على شرط الشيخين، وقد تقدم القول فيه عند الحديث رقم (642)
وأخرجه ابن أبي شيبة 12/56، ومسلم (78) ، وابن ماجه (114) ، وابن أبي عاصم (1325) ، والنسائي 8/117، وفي “خصائص علي” (101) ، وعبد الله بن أحمد في زياداته على “الفضائل” (1107) ، وابن منده في “الإيمان” (261) ، والبغوي (3908) من طريق وكيع، بهذا الإسناد
حدثنا وكيع، حدثنا الأعمش، عن عدي بن ثابت، عن زر بن حبيش، عن علي، قال: عهد إلي النبي صلى الله عليه وسلم: ” أنه لا يحبك إلا مؤمن، ولا يبغضك إلا منافق إسناده على شرط الشيخين، وقد تقدم القول فيه عند الحديث رقم (642) وأخرجه ابن أبي شيبة 12/56، ومسلم (78) ، وابن ماجه (114) ، وابن أبي عاصم (1325) ، والنسائي 8/117، وفي “خصائص علي” (101) ، وعبد الله بن أحمد في زياداته على “الفضائل” (1107) ، وابن منده في “الإيمان” (261) ، والبغوي (3908) من طريق وكيع، بهذا الإسناد
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৩২
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৩২। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাদেরকে আদেশ দিয়েছেন, যেন কুরবানীর জন্তুর চোখ ও কানে খুঁত আছে কিনা ভালোভাবে দেখে নেই।
[ইবনু খুযাইমা ২৯১৪, ২৯১৫; ইবনু মাজা ৩১৪৩; তিরমিযী ১৫০৩, নাসায়ী ২১৭/৭, মুসনাদ আহমাদ ৭৩৪, ৮২৬, ১০২১, ১০২২, ১৩০৯, ১৩১২]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا سُفْيَانُ، عَنْ سَلَمَةَ، عَنْ حُجَيَّةَ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: أَمَرَنَا رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنْ نَسْتَشْرِفَ الْعَيْنَ وَالْأُذُنَ
إسناده حسن، حُجيّة- وهو أبن عدي الكندي- روى له أصحاب السنن، وهو صدوق حسن الحديث، وباقي رجاله ثقات رجال الشيخين. سفيان: هو الثوري، وسلمة: هو ابن كهيل
وأخرجه ابن ماجه (3143) ، وأبو يعلى (615) من طريق وكيع، بهذا الإسناد
وأخرجه عبد الرزاق (13437) ، والطحاوي 4/169، وابن حبان (5920) ، والبيهقي 9/275 من طرق عن سفيان الثوري، به
وأخرجه الترمذي (1503) ، والبزار (754) ، وابن خزيمة (2915) ، والطحاوي 4/170، والحاكم 1/468، والبيهقي 9/275 من طرق عن سلمة بن كهيل، به. وقال الترمذي: حسن صحيح، وصححه الحاكم أيضأ. وسيأتي برقم (734) و (826) و (1021) و (1022) و (1309) و (1312) ، وانظر (851)
وقوله: “نستشرف العين والأذن”، أي: نتأفل سلامتهما من آفة تكون بهما، وذلك في الهدي والأضحية
حدثنا وكيع، حدثنا سفيان، عن سلمة، عن حجية، عن علي، قال: أمرنا رسول الله صلى الله عليه وسلم أن نستشرف العين والأذن إسناده حسن، حجية- وهو أبن عدي الكندي- روى له أصحاب السنن، وهو صدوق حسن الحديث، وباقي رجاله ثقات رجال الشيخين. سفيان: هو الثوري، وسلمة: هو ابن كهيل وأخرجه ابن ماجه (3143) ، وأبو يعلى (615) من طريق وكيع، بهذا الإسناد وأخرجه عبد الرزاق (13437) ، والطحاوي 4/169، وابن حبان (5920) ، والبيهقي 9/275 من طرق عن سفيان الثوري، به وأخرجه الترمذي (1503) ، والبزار (754) ، وابن خزيمة (2915) ، والطحاوي 4/170، والحاكم 1/468، والبيهقي 9/275 من طرق عن سلمة بن كهيل، به. وقال الترمذي: حسن صحيح، وصححه الحاكم أيضأ. وسيأتي برقم (734) و (826) و (1021) و (1022) و (1309) و (1312) ، وانظر (851) وقوله: “نستشرف العين والأذن”، أي: نتأفل سلامتهما من آفة تكون بهما، وذلك في الهدي والأضحية
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৩৩
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৩৩। মারওয়ান বিন হাকাম বলেছেন, আমরা উসমান (রাঃ)-এর সাথে ভ্ৰমণ করছিলাম। সহসা এক ব্যক্তিকে দেখলাম, হজ্জ ও উমরা উভয়ের জন্য তালবিয়া পড়ছে। উসমান (রাঃ) বললেনঃ এই ব্যক্তি কে? লোকেরা বললোঃ আলী (রাঃ)। উসমান (রাঃ) বললেনঃ তুমি কি জানতে না আমি এক সাথে হজ্জ ও উমরার তালবিয়া পড়তে নিষেধ করেছি? আলী (রাঃ) বললেনঃ জানতাম। কিন্তু আপনার কথার জন্য আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কথা বর্জন করতে প্রস্তুত নই।
[বুখারী ১৫৬৩, মুসনাদ আহমাদ ১১৩৯]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا الْأَعْمَشُ، عَنْ مُسْلِمٍ الْبَطِينِ، عَنْ عَلِيِّ بْنِ الْحُسَيْنِ، عَنْ مَرْوَانَ بْنِ الْحَكَمِ، قَالَ: كُنَّا نَسِيرُ مَعَ عُثْمَانَ، فَإِذَا رَجُلٌ يُلَبِّي بِهِمَا جَمِيعًا، فَقَالَ: عُثْمَانُ: مَنْ هَذَا؟ فَقَالُوا: عَلِيٌّ. فَقَالَ: أَلَمْ تَعْلَمْ أَنِّي قَدْ نَهَيْتُ عَنْ هَذَا؟ قَالَ: ” بَلَى، وَلَكِنْ لَمْ أَكُنْ لِأَدَعَ قَوْلَ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ لِقَوْلِكَ
إسناده صحيح على شرط البخاري، رجاله ثقات رجال الشيخين غير مروان بن الحكم، فمن رجال البخاري. الأعمش: هو سليمان بن مِهران، ومسلم البَطين: هو مسلم بن عمران البَطين، وعلي بن الحسين: هو ابن علي بن أبي طالب الهاشمي زين العابدين
وأخرجه أبو يعلى (349) و (609) من طريق وكيع، بهذا الإسناد
وأخرجه البزار (515) و (516) ، والنسائي 5/148 من طرق عن الأعمش، به. وقد تحرف في المطبوع من النسائي “الأعمش” إلى: الأشعث، ويصحح من “تحفة الأشراف” 7/446
وأخرجه البزار (517) من طريق يزيد بن أبي زياد، عن علي بن الحسين، به
وسيأتي برقم (1139)
حدثنا وكيع، حدثنا الأعمش، عن مسلم البطين، عن علي بن الحسين، عن مروان بن الحكم، قال: كنا نسير مع عثمان، فإذا رجل يلبي بهما جميعا، فقال: عثمان: من هذا؟ فقالوا: علي. فقال: ألم تعلم أني قد نهيت عن هذا؟ قال: ” بلى، ولكن لم أكن لأدع قول رسول الله صلى الله عليه وسلم لقولك إسناده صحيح على شرط البخاري، رجاله ثقات رجال الشيخين غير مروان بن الحكم، فمن رجال البخاري. الأعمش: هو سليمان بن مهران، ومسلم البطين: هو مسلم بن عمران البطين، وعلي بن الحسين: هو ابن علي بن أبي طالب الهاشمي زين العابدين وأخرجه أبو يعلى (349) و (609) من طريق وكيع، بهذا الإسناد وأخرجه البزار (515) و (516) ، والنسائي 5/148 من طرق عن الأعمش، به. وقد تحرف في المطبوع من النسائي “الأعمش” إلى: الأشعث، ويصحح من “تحفة الأشراف” 7/446 وأخرجه البزار (517) من طريق يزيد بن أبي زياد، عن علي بن الحسين، به وسيأتي برقم (1139)
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৩৪
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৩৪। এক ব্যক্তি আলী (রাঃ)-কে জিজ্ঞাসা করলো গরু কুরবানী সম্পর্কে। তিনি বললেন, একটা গরু সাত ব্যক্তির পক্ষ থেকে জবাই করা যাবে। সে বললোঃ শিং ভাঙ্গা হলে? তিনি বললেনঃ ক্ষতি নেই। সে বললোঃ যদি খোঁড়া হয়? তিনি বললেনঃ গরুটি যদি যাবাইখানা পর্যন্ত যেতে পারে তাহলে যাবাই কর। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাদেরকে জন্তুর চোখ ও কান দেখে নেয়ার আদেশ দিয়েছেন।
[হাদীস নং ৭৩২ দ্রষ্টব্য]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا سُفْيَانُ، عَنْ سَلَمَةَ بْنِ كُهَيْلٍ، عَنْ حُجَيَّةَ، قَالَ: سَأَلَ رَجُلٌ عَلِيًّا عَنِ الْبَقَرَةِ، فَقَالَ: عَنْ سَبْعَةٍ. فَقَالَ: مَكْسُورَةُ الْقَرْنِ؟ فَقَالَ: لَا يَضُرُّكَ. قَالَ: الْعَرْجَاءُ؟ قَالَ: إِذَا بَلَغَتِ الْمَنْسَكَ فَاذْبَحْ، أَمَرَنَا رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنْ نَسْتَشْرِفَ الْعَيْنَ وَالْأُذُنَ
إسناده حسن. وقد تقدم برقم (732)
حدثنا وكيع، حدثنا سفيان، عن سلمة بن كهيل، عن حجية، قال: سأل رجل عليا عن البقرة، فقال: عن سبعة. فقال: مكسورة القرن؟ فقال: لا يضرك. قال: العرجاء؟ قال: إذا بلغت المنسك فاذبح، أمرنا رسول الله صلى الله عليه وسلم أن نستشرف العين والأذن إسناده حسن. وقد تقدم برقم (732)
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৩৫
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৩৫। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেনঃ এক শ্রেণীর লোকের আবির্ভাব ঘটবে যাদের হাত খাটো বা অসম্পূর্ণ হবে। তোমরা যদি অহংকার না করতে, তবে আমি তোমাদেরকে জানাতাম, যারা তাদেরকে হত্যা করবে তাদের ব্যাপারে আল্লাহ তাঁর নবীর মুখ দিয়ে যে প্রতিশ্রুতি দিয়েছেন সে সম্পর্কে। আবিদা বলেনঃ আমি আলী (রাঃ)-কে জিজ্ঞাসা করলাম, আপনি কি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কাছ থেকে এ কথা শুনেছেন? তিনি বললেনঃ কাবার প্রভুর কসম, হ্যাঁ, কা’বার প্রভুর কসম, হ্যাঁ। কা’বার প্রভুর কসম, হ্যাঁ।
[দেখুন হাদীস নং ৬২৬]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا جَرِيرُ بْنُ حَازِمٍ، وَأَبُو عَمْرِو بْنِ الْعَلاءِ، عَنِ ابْنِ سِيرِينَ، سَمِعَاهُ عَنْ عَبِيدَةَ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” يَخْرُجُ قَوْمٌ فِيهِمْ رَجُلٌ مُودَنُ الْيَدِ – أَوْ مَثْدُونُ الْيَدِ، أَوْ مُخْدَجُ الْيَدِ – وَلَوْلا أَنْ تَبْطَرُوا لانْبَأْتُكُمْ بِمَا وَعَدَ اللهُ الَّذِينَ يَقْتُلُونَهُمْ عَلَى لِسَانِ نَبِيِّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ. قَالَ عَبِيدَةُ: قُلْتُ لِعَلِيٍّ: أَنْتَ سَمِعْتَهُ مِنْ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ؟ قَالَ: إِي وَرَبِّ الْكَعْبَةِ، إِي وَرَبِّ الْكَعْبَةِ، إِي وَرَبِّ الْكَعْبَةِ
إسناده صحيح على شرط الشيخين، وأبو عمرو بن العلاء قرين جرير في هذا الإسناد ثقة روى له البخاري تعليقاً، وأبو داود في “القدر”، وابن ماجه في “التفسير
عَبيدة: هو ابن عمرو السلْماني. وقوله في السند: “عن ابن سيرين سمعاه عن عَبيدة”
يعني أن جريراً وأبا عمرو سمعا محمد بن سيرين يحدث بهذا الحديث عن عبيدة
وأخرجه البزار (545) من طريق شبابة بن سوار، عن أبي عمرو بن العلاء، بهذا الإسناد
وأخرجه البزار أيضا (546) من طريق عبد الرحمن بن أبي بكر، عن جرير بن حازم، به. وانظر (626)
حدثنا وكيع، حدثنا جرير بن حازم، وأبو عمرو بن العلاء، عن ابن سيرين، سمعاه عن عبيدة، عن علي، قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: ” يخرج قوم فيهم رجل مودن اليد – أو مثدون اليد، أو مخدج اليد – ولولا أن تبطروا لانبأتكم بما وعد الله الذين يقتلونهم على لسان نبيه صلى الله عليه وسلم. قال عبيدة: قلت لعلي: أنت سمعته من رسول الله صلى الله عليه وسلم؟ قال: إي ورب الكعبة، إي ورب الكعبة، إي ورب الكعبة إسناده صحيح على شرط الشيخين، وأبو عمرو بن العلاء قرين جرير في هذا الإسناد ثقة روى له البخاري تعليقا، وأبو داود في “القدر”، وابن ماجه في “التفسير عبيدة: هو ابن عمرو السلماني. وقوله في السند: “عن ابن سيرين سمعاه عن عبيدة” يعني أن جريرا وأبا عمرو سمعا محمد بن سيرين يحدث بهذا الحديث عن عبيدة وأخرجه البزار (545) من طريق شبابة بن سوار، عن أبي عمرو بن العلاء، بهذا الإسناد وأخرجه البزار أيضا (546) من طريق عبد الرحمن بن أبي بكر، عن جرير بن حازم، به. وانظر (626)
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৩৬
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৩৬। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের জনৈকা দাসী সন্তান প্রসব করলো (অর্থাৎ ব্যভিচার জনিত)। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাকে আদেশ দিলেন, তার ওপর শাস্তি কার্যকর করতে। আমি তার কাছে গেলাম। জানতে পারলাম, তার প্রসবোত্তর রক্তপাত তখনো থামেনি। আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কাছে গিয়ে এ খবর জানালাম। তিনি বললেনঃ যখন রক্ত বন্ধ হবে তখন শাস্তি কার্যকর কর। তোমাদের দাসদাসীর ওপরও শরিয়াতের শাস্তি কার্যকর কর।
[দেখুন হাদীস নং ৬৭৯]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا سُفْيَانُ، عَنْ عَبْدِ الْأَعْلَى الثَّعْلَبِيِّ، عَنْ أَبِي جَمِيلَةَ الطُّهَوِيِّ، عَنْ عَلِيٍّ، أَنَّ خَادِمًا لِلنَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَحْدَثَتْ، فَأَمَرَنِي النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنْ أُقِيمَ عَلَيْهَا الْحَدَّ، فَأَتَيْتُهَا فَوَجَدْتُهَا لَمْ تَجِفَّ مِنْ دَمِهَا، فَأَتَيْتُهُ، فَأَخْبَرْتُهُ فَقَالَ: ” إِذَا جَفَّتْ مِنْ دَمِهَا فَأَقِمْ عَلَيْهَا الْحَدَّ، أَقِيمُوا الْحُدُودَ عَلَى مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ
حسن لغيره، وهذا إسناد ضعيف لضعف عبد الأعلى الثعلبي- وهو عبد الأعلى بن عامر الثعلبي-. أبو جميلة الطهوي: هو ميسرة بن يعقوب
وأخرجه عبد الرزاق (13601) ، والبزار (762) ، والنسائي في “الكبرى” (7239) و (7268) ، وأبو يعلى (320) من طرق عن سفيان الثوري، بهذا الإسناد. وبعضهم يزيد فيه على بعض
وأخرجه أبو داود (4473) من طريق إسرائيل، والبيهقي 8/245 من طريق شريك، كلاهما عن عبد الأعلى، به. وقرن البيهقي بعبد الأعلى عبدَ الله بن أبي جميلة، وهو مجهول. وانظر (679)
حدثنا وكيع، حدثنا سفيان، عن عبد الأعلى الثعلبي، عن أبي جميلة الطهوي، عن علي، أن خادما للنبي صلى الله عليه وسلم أحدثت، فأمرني النبي صلى الله عليه وسلم أن أقيم عليها الحد، فأتيتها فوجدتها لم تجف من دمها، فأتيته، فأخبرته فقال: ” إذا جفت من دمها فأقم عليها الحد، أقيموا الحدود على ما ملكت أيمانكم حسن لغيره، وهذا إسناد ضعيف لضعف عبد الأعلى الثعلبي- وهو عبد الأعلى بن عامر الثعلبي-. أبو جميلة الطهوي: هو ميسرة بن يعقوب وأخرجه عبد الرزاق (13601) ، والبزار (762) ، والنسائي في “الكبرى” (7239) و (7268) ، وأبو يعلى (320) من طرق عن سفيان الثوري، بهذا الإسناد. وبعضهم يزيد فيه على بعض وأخرجه أبو داود (4473) من طريق إسرائيل، والبيهقي 8/245 من طريق شريك، كلاهما عن عبد الأعلى، به. وقرن البيهقي بعبد الأعلى عبد الله بن أبي جميلة، وهو مجهول. وانظر (679)
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৩৭
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৩৭। আলী (রাঃ) বলেছেন, আমি মনে করতাম, পায়ের পিঠের চেয়ে পায়ের তলা মাসেহ করা বেশি যুক্তিসংগত। কিন্তু পরে দেখলাম, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম দু’পায়ের পিঠে মাসেহ করছেন।
[আবু দাউদ ১৬২, ১৬৩, ১৬৪; মুসনাদ আহমাদ ৯১৭, ৯১৮, ১০১৩, ১০১৪, ১০১৫, ১২৬৪]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا الْأَعْمَشُ، عَنْ أَبِي إِسْحَاقَ، عَنْ عَبْدِ خَيْرٍ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: كُنْتُ أَرَى أَنَّ بَاطِنَ الْقَدَمَيْنِ أَحَقُّ بِالْمَسْحِ مِنْ ظَاهِرِهِمَا، حَتَّى رَأَيْتُ ” رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَمْسَحُ ظَاهِرَهُمَا
حديث صحيح بمجموع طرقه، والأعمش في حديث أبي إسحاق- وهو عمرو بن عبد الله السبيعي- كان مضطرباً، أشار إلى ذلك يحيى القطان كما في مقدمة “الجرح والتعديل” لابن أبي حاتم ص 237، وقد أشار الدارقطني في “العلل” 4/44-47 إلى الاختلاف في سند الحديث ومتنه
وأخرجه أبو داود (163) ، والبيهقي 1/292 من طريق يزيد بن عبد العزيز، والبزار (788) ، والدارقطني في “السنن” 1/199 من طريق حفص بن غياث، والبزار (789) من طريق محاضر بن المورع، والنسائي في “الكبرى” (119) من طريق عيسى بن يونس، أربعتهم عن الأعمش، بهذا الإسناد. قال أبو داود في روايته: “ما كنت أرى باطن القدمين إلا أحق بالغسل حتى رأيت رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يمسح على ظهر خُفَّيه
وأخرجه الدارقطني في “العلل” 4/47 من طريق سفيان الثوري، والبيهقي 1/292 من طريق إبراهيم بن طهمان، كلاهما عن أبي إسحاق، به
وأخرجه ابن أبي شيبة 1/19 عن وكيع، بهذا الإسناد. ولفظه عن علي قال: لو كان الدين بالرأي كان باطن القدمين أحق بالمسح من ظاهرهما، ولكن رأيت رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مسح ظاهرهما
وأخرجه بهذا اللفظ ابن أبي شيبة 1/181، وأبو داود (162) و (164) ، والدارقطني 1/199، والبيهقي 1/292، والبغوي (239) من طريق حفص بن غياث، عن الأعمش، به. وأورد الحافظ ابن حجر في هذا الحديث من رواية أبي داود في “التلخيص الحبير” 1/160 وفي “بلوغ المرام” (65) ، فصحح إسناده في الأول، وحسنه في الثاني
وسيأتي الحديث برقم (917) و (918) و (1013) و (1014) و (1015) و (1264)
وقوله: “باطن القدمين وظاهرهما”، إنما عنى به الخفين، فقد جاء مفسراً كذلك في بعض المصادر التي خرجت الحديث. وانظر “سنن البيهقي” 1/292
حدثنا وكيع، حدثنا الأعمش، عن أبي إسحاق، عن عبد خير، عن علي، قال: كنت أرى أن باطن القدمين أحق بالمسح من ظاهرهما، حتى رأيت ” رسول الله صلى الله عليه وسلم يمسح ظاهرهما حديث صحيح بمجموع طرقه، والأعمش في حديث أبي إسحاق- وهو عمرو بن عبد الله السبيعي- كان مضطربا، أشار إلى ذلك يحيى القطان كما في مقدمة “الجرح والتعديل” لابن أبي حاتم ص 237، وقد أشار الدارقطني في “العلل” 4/44-47 إلى الاختلاف في سند الحديث ومتنه وأخرجه أبو داود (163) ، والبيهقي 1/292 من طريق يزيد بن عبد العزيز، والبزار (788) ، والدارقطني في “السنن” 1/199 من طريق حفص بن غياث، والبزار (789) من طريق محاضر بن المورع، والنسائي في “الكبرى” (119) من طريق عيسى بن يونس، أربعتهم عن الأعمش، بهذا الإسناد. قال أبو داود في روايته: “ما كنت أرى باطن القدمين إلا أحق بالغسل حتى رأيت رسول الله صلى الله عليه وسلم يمسح على ظهر خفيه وأخرجه الدارقطني في “العلل” 4/47 من طريق سفيان الثوري، والبيهقي 1/292 من طريق إبراهيم بن طهمان، كلاهما عن أبي إسحاق، به وأخرجه ابن أبي شيبة 1/19 عن وكيع، بهذا الإسناد. ولفظه عن علي قال: لو كان الدين بالرأي كان باطن القدمين أحق بالمسح من ظاهرهما، ولكن رأيت رسول الله صلى الله عليه وسلم مسح ظاهرهما وأخرجه بهذا اللفظ ابن أبي شيبة 1/181، وأبو داود (162) و (164) ، والدارقطني 1/199، والبيهقي 1/292، والبغوي (239) من طريق حفص بن غياث، عن الأعمش، به. وأورد الحافظ ابن حجر في هذا الحديث من رواية أبي داود في “التلخيص الحبير” 1/160 وفي “بلوغ المرام” (65) ، فصحح إسناده في الأول، وحسنه في الثاني وسيأتي الحديث برقم (917) و (918) و (1013) و (1014) و (1015) و (1264) وقوله: “باطن القدمين وظاهرهما”، إنما عنى به الخفين، فقد جاء مفسرا كذلك في بعض المصادر التي خرجت الحديث. وانظر “سنن البيهقي” 1/292
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৩৮
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৩৮। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম গাধাকে ঘোড়ার ওপর প্রজনন ক্রিয়া করাতে আমাদেরকে নিষেধ করেছেন।
[মুসনাদ আহমাদ ৭৬৬, ১১০৮]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا سُفْيَانُ، عَنْ عُثْمَانَ الثَّقَفِيِّ، عَنْ سَالِمِ بْنِ أَبِي الْجَعْدِ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: ” نَهَانَا رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنْ نُنْزِيَ حِمَارًا عَلَى فَرَسٍ
صحيح لغيره، وهذا إسناد ضعيف، رجاله رجال الصحح إلا أن رواية سالم بن الجعد عن علي مرسلة، بينهما في هذا الحديث علي بن علقمة الأنماري كما في (766) . سفيان: هو الثوري، وعثمان الثقفي: هو ابن المغيرة. وسيتكرر برقم (1108)
حدثنا وكيع، حدثنا سفيان، عن عثمان الثقفي، عن سالم بن أبي الجعد، عن علي، قال: ” نهانا رسول الله صلى الله عليه وسلم أن ننزي حمارا على فرس صحيح لغيره، وهذا إسناد ضعيف، رجاله رجال الصحح إلا أن رواية سالم بن الجعد عن علي مرسلة، بينهما في هذا الحديث علي بن علقمة الأنماري كما في (766) . سفيان: هو الثوري، وعثمان الثقفي: هو ابن المغيرة. وسيتكرر برقم (1108)
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৩৯
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৩৯। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেনঃ আমি যদি পরামর্শ ছাড়া কাউকে খালীফা নিযুক্ত করতাম তাহলে ইবনে উম্মে আবদকে নিযুক্ত করতাম। [দেখুন হাদীস নং ৫৬৬]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، عَنْ سُفْيَانَ، عَنِ أَبِي إِسْحَاقَ، عَنِ الْحَارِثِ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” لَوِ اسْتَخْلَفْتُ أَحَدًا عَنْ غَيْرِ مَشُورَةٍ، لاسْتَخْلَفْتُ ابْنَ أُمِّ عَبْدٍ
–
إسناده ضعيف لضعف الحارث بن عبد الله الأعور
وأخرجه ابن أبي شيبة 12/113، وابن ماجه (137) ، والترمذي (3809) من طريق وكيع، بهذا الإسناد
وأخرجه البزار (838) من طريق موسى بن مسعود، عن سفيان الثوري، به. وانظر (566)
حدثنا وكيع، عن سفيان، عن أبي إسحاق، عن الحارث، عن علي، قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: ” لو استخلفت أحدا عن غير مشورة، لاستخلفت ابن أم عبد – إسناده ضعيف لضعف الحارث بن عبد الله الأعور وأخرجه ابن أبي شيبة 12/113، وابن ماجه (137) ، والترمذي (3809) من طريق وكيع، بهذا الإسناد وأخرجه البزار (838) من طريق موسى بن مسعود، عن سفيان الثوري، به. وانظر (566)
হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৪০
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৪০। আলী (রাঃ) বলেছেন, ফাতিমা রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কাছে গিয়ে ফরিয়াদ জানালেন যে, আটা বানাতে বানাতে তাঁর হাতে দাগ পড়ে গেছে। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কাছে আগত দাসদাসীর মধ্য থেকে তাঁকে একটা দাসী দিতে তিনি অনুরোধ করলেন কিন্তু পেলেন না। অগত্যা ফাতিমা (রাঃ) ফিরে গেলেন। আলী (রাঃ) বলেনঃ আমরা যখন বিছানায় গিয়েছি, তখন রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এলেন। আমি উঠে তাঁর কাছে যেতে উদ্যত হলে তিনি বললেনঃ তোমরা নিজ নিজ জায়গায় থাক। তিনি এলেন এবং বসলেন। আমি তাঁর পায়ের শীতলতাও অনুভব করলাম। তারপর বললেনঃ একজন দাসী পাওয়ার চেয়ে তোমাদের জন্য যেটা বেশি উপকারী ও লাভজনক তা কি আমি বলে দেব না? যখন তোমরা বিছানায় যাবে তখন তেত্রিশ বার সুবহানাল্লাহ, তেত্রিশ বার আল হামদুলিল্লাহ এবং চৌত্রিশ বার আল্লাহু আকবার বলবে।
[বুখারী ৩১১৩, মুসলিম ২৭২৭, ইবনু হিব্বান ৫৫২৪, মুসনাদ আহমাদ ৬০৪]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، عَنْ الْحَكَمِ، عَنْ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ أَبِي لَيْلَى، حَدَّثَنَا عَلِيٌّ، أَنَّ فَاطِمَةَ شَكَتْ إِلَى النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَثَرَ الْعَجِينِ فِي يَدِهَا، فَأَتَى النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ سَبْيٌ فَأَتَتْهُ تَسْأَلُهُ خَادِمًا، فَلَمْ تَجِدْهُ، فَرَجَعَتْ، قَالَ: فَأَتَانَا وَقَدْ أَخَذْنَا مَضَاجِعَنَا، قَالَ: فَذَهَبْتُ لِأَقُومَ، فَقَالَ: ” مَكَانَكُمَا ” فَجَاءَ حَتَّى جَلَسَ حَتَّى وَجَدْتُ بَرْدَ قَدَمَيْهِ، فَقَالَ: ” أَلا أَدُلُّكُمَا عَلَى مَا هُوَ خَيْرٌ لَكُمَا مِنْ خَادِمٍ؟ إِذَا أَخَذْتُمَا مَضْجَعَكُمَا سَبَّحْتُمَا اللهَ ثَلاثًا وَثَلاثِينَ، وَحَمِدْتُمَاهُ ثَلاثًا وَثَلاثِينَ، وَكَبَّرْتُمَاهُ أَرْبَعًا وَثَلاثِينَ
إسناده صحيح على شرط الشيخين. الحكم: هو ابن عتيبة
وأخرجه ابن أبي شيبة 10/263، وعنه مسلم (2727) عن وكيع، بهذا الإسناد
وأخرجه الطيالسي (93) ، والبخاري (3113) و (5361) و (6318) ، ومسلم (2727) ، وأبو داود (5062) ، وابن حبان (5524) ، والبيهقي 7/293 من طرق عن شعبة، به. وانظر (604)
حدثنا وكيع، حدثنا شعبة، عن الحكم، عن عبد الرحمن بن أبي ليلى، حدثنا علي، أن فاطمة شكت إلى النبي صلى الله عليه وسلم أثر العجين في يدها، فأتى النبي صلى الله عليه وسلم سبي فأتته تسأله خادما، فلم تجده، فرجعت، قال: فأتانا وقد أخذنا مضاجعنا، قال: فذهبت لأقوم، فقال: ” مكانكما ” فجاء حتى جلس حتى وجدت برد قدميه، فقال: ” ألا أدلكما على ما هو خير لكما من خادم؟ إذا أخذتما مضجعكما سبحتما الله ثلاثا وثلاثين، وحمدتماه ثلاثا وثلاثين، وكبرتماه أربعا وثلاثين إسناده صحيح على شرط الشيخين. الحكم: هو ابن عتيبة وأخرجه ابن أبي شيبة 10/263، وعنه مسلم (2727) عن وكيع، بهذا الإسناد وأخرجه الطيالسي (93) ، والبخاري (3113) و (5361) و (6318) ، ومسلم (2727) ، وأبو داود (5062) ، وابن حبان (5524) ، والبيهقي 7/293 من طرق عن شعبة، به. وانظر (604)
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
পরিচ্ছেদঃ
৭৪১। আবুল হাইয়ায আসাদী বলেন, আলী (রাঃ) আমাকে বললেনঃ রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাকে যে কাজ করতে পাঠিয়েছিলেন, আমি তোমাকে সেই কাজ করতে পাঠাবো। প্রত্যেকটি মূর্তি তুমি বিকৃত করবে এবং প্রত্যেকটি উঁচু কবরকে সমান করে দেবে।
[হাদীস নং ১০৬৪, ৬৫৭ দ্রষ্টব্য]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا سُفْيَانُ، عَنْ حَبِيبٍ، عَنْ أَبِي وَائِلٍ، عَنْ أَبِي الْهَيَّاجِ الْأَسَدِيِّ قَالَ: قَالَ لِي عَلِيٌّ: أَبْعَثُكَ عَلَى مَا بَعَثَنِي عَلَيْهِ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ؟ أَنْ لَا تَدَعَ تِمْثَالًا إِلا طَمَسْتَهُ، وَلا قَبْرًا مُشْرِفًا إِلا سَوَّيْتَهُ
–
إسناده صحيح على شرط مسلم، رجاله ثقات رجال الشيخين غير أبي الهياج الأسدي- واسمه حيان بن الحصين- فمن رجال مسلم. حبيب: هو ابن أبي ثابت، وأبو وائل: هو شقيق بن سلمة.
وأخرجه مسلم (969) ، وأبو يعلى (614) ، والحاكم 1/369 من طريق وكيع، بهذا الإسناد
وأخرجه عبد الرزاق (6487) ، وأبو داود (3218) ، والنسائي 4/88 من طريق سفيان الثوري، به
وأخرجه الطيالسي (155) عن قيس بن الربيع، عن حبيب بن أبي ثابت، به
وأخرجه أبو يعلى (343) من طريق يزيد بن هارون، عن عبد الرحمن بن عبد الله المسعودي، عن حبيب بن أبي ثابت، عن أبي الهياج، به. بإسقاط أبي وائل من السند، وهذا من أغلاط المسعودي، فإنه كان اختلط بأخرة، ويزيد بن هارون ممن حمل عنه بعد اختلاطه. وسياتي برقم (1064) ، وانظر (683)
حدثنا وكيع، حدثنا سفيان، عن حبيب، عن أبي وائل، عن أبي الهياج الأسدي قال: قال لي علي: أبعثك على ما بعثني عليه رسول الله صلى الله عليه وسلم؟ أن لا تدع تمثالا إلا طمسته، ولا قبرا مشرفا إلا سويته – إسناده صحيح على شرط مسلم، رجاله ثقات رجال الشيخين غير أبي الهياج الأسدي- واسمه حيان بن الحصين- فمن رجال مسلم. حبيب: هو ابن أبي ثابت، وأبو وائل: هو شقيق بن سلمة. وأخرجه مسلم (969) ، وأبو يعلى (614) ، والحاكم 1/369 من طريق وكيع، بهذا الإسناد وأخرجه عبد الرزاق (6487) ، وأبو داود (3218) ، والنسائي 4/88 من طريق سفيان الثوري، به وأخرجه الطيالسي (155) عن قيس بن الربيع، عن حبيب بن أبي ثابت، به وأخرجه أبو يعلى (343) من طريق يزيد بن هارون، عن عبد الرحمن بن عبد الله المسعودي، عن حبيب بن أبي ثابت، عن أبي الهياج، به. بإسقاط أبي وائل من السند، وهذا من أغلاط المسعودي، فإنه كان اختلط بأخرة، ويزيد بن هارون ممن حمل عنه بعد اختلاطه. وسياتي برقم (1064) ، وانظر (683)
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৪২
শেয়ার ও অন্যান্য
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পরিচ্ছেদঃ
৭৪২। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ “সাব্বিহিসমা রাব্বিকাল আ’লা” এ সূরাটি খুব ভালোবাসতেন।
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا إِسْرَائِيلُ، عَنْ ثُوَيْرِ بْنِ أَبِي فَاخِتَةَ، عَنْ أَبِيهِ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: ” كَانَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُحِبُّ هَذِهِ السُّورَةَ: سَبِّحِ اسْمَ رَبِّكَ الْأَعْلَى
–
إسناده ضعيف لضعف ثوير بن أبي فاختة. وأبوه اسمه: سعيد بن عِلاقة، مشهور بكنيته
وأخرجه البزار (775) من طريق وكيع، بهذا الإسناد
وأخرجه البزار (776) من طريق الفضل بن دكين، وابن عدي في “الكامل” 2/533 من طريق مؤمل، كلاهما عن إسرائيل، به
حدثنا وكيع، حدثنا إسرائيل، عن ثوير بن أبي فاختة، عن أبيه، عن علي، قال: ” كان رسول الله صلى الله عليه وسلم يحب هذه السورة: سبح اسم ربك الأعلى – إسناده ضعيف لضعف ثوير بن أبي فاختة. وأبوه اسمه: سعيد بن علاقة، مشهور بكنيته وأخرجه البزار (775) من طريق وكيع، بهذا الإسناد وأخرجه البزار (776) من طريق الفضل بن دكين، وابن عدي في “الكامل” 2/533 من طريق مؤمل، كلاهما عن إسرائيل، به
হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৪৩
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৪৩। আলী (রাঃ) বলেছেন, তিন ব্যক্তি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কাছে এল। এক ব্যক্তি বললোঃ ইয়া রাসূলাল্লাহ, আমার কাছে একশো দিনার ছিল, আমি তা থেকে দশ দিনার সাদাকা করেছি। আরেকজন বললোঃ ইয়া রাসূলাল্লাহ, আমার দশ দিনার ছিল, তা থেকে এক দিনার সাদাকা করেছি। আরেকজন বললোঃ আমার এক দিনার ছিল, তার দশভাগের এক ভাগ সাদাকা করেছি। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বললেনঃ তোমরা সবাই সমান সাওয়াব পাবে। সকলেই নিজের সম্পদের এক দশমাংশ সাদাকা করেছ।
[দেখুন হাদীস নং ৯২৫]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا سُفْيَانُ، عَنْ أَبِي إِسْحَاقَ، عَنِ الْحَارِثِ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: جَاءَ ثَلاثَةُ نَفَرٍ إِلَى النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ أَحَدُهُمْ: يَا رَسُولَ اللهِ، كَانَتْ لِي مِائَةُ دِينَارٍ، فَتَصَدَّقْتُ مِنْهَا بِعَشَرَةِ دَنَانِيرَ. وَقَالَ الْآخَرُ: يَا رَسُولَ اللهِ، كَانَ لِي عَشَرَةُ دَنَانِيرَ، فَتَصَدَّقْتُ مِنْهَا بِدِينَارٍ، وَقَالَ الْآخَرُ: يَا رَسُولَ اللهِ كَانَ لِي دِينَارٌ، فَتَصَدَّقْتُ بِعُشْرِهِ. قَالَ: فَقَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” كُلُّكُمْ فِي الْأَجْرِ سَوَاءٌ، كُلُّكُمْ تَصَدَّقَ بِعُشْرِ مَالِهِ
–
إسناده ضعيف لضعف الحارث الأعور، وعنعنة أبي إسحاق
وأخرجه البزار (841) من طريق أبي داود الحَفَري، عن سفيان الثوري، بهذا الإسناد
وأخرجه الطيالسي (177) عن سالم، عن أبي إسحاق، به. وسيأتي برقم (925)
قلنا: أخرج أحمد 2/379، والنسائي 5/59 بإسناد حسن عن أبي هريرة قال: قال رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: “سَبَقَ درهم مئة ألف درهم ” قالوا: وكيف؟ قال: كان لرجل درهمانِ، تصدقَ بأحدهما، وانطلق رجل إلى عُرْضِ ماله، فأخذ منه مئة ألف درهم فتصدق بها” وصححه ابن حبان (3377)
قال السندي في حاشيته على النسائي: ظاهر الأحاديث أن الأجر على قدر حال المعطي، لا على قدر المال المعطى، فصاحب الدرهمين حيث أعطى نصف ماله في حال لا يعطِي فيها إلا الأقوياء، يكون أجره على قدر همته، بخلاف الغني، فإنه ما أعطى نصف ماله، ولا في حال لا يُعطَى فيها عادة
حدثنا وكيع، حدثنا سفيان، عن أبي إسحاق، عن الحارث، عن علي، قال: جاء ثلاثة نفر إلى النبي صلى الله عليه وسلم، فقال أحدهم: يا رسول الله، كانت لي مائة دينار، فتصدقت منها بعشرة دنانير. وقال الآخر: يا رسول الله، كان لي عشرة دنانير، فتصدقت منها بدينار، وقال الآخر: يا رسول الله كان لي دينار، فتصدقت بعشره. قال: فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم: ” كلكم في الأجر سواء، كلكم تصدق بعشر ماله – إسناده ضعيف لضعف الحارث الأعور، وعنعنة أبي إسحاق وأخرجه البزار (841) من طريق أبي داود الحفري، عن سفيان الثوري، بهذا الإسناد وأخرجه الطيالسي (177) عن سالم، عن أبي إسحاق، به. وسيأتي برقم (925) قلنا: أخرج أحمد 2/379، والنسائي 5/59 بإسناد حسن عن أبي هريرة قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: “سبق درهم مئة ألف درهم ” قالوا: وكيف؟ قال: كان لرجل درهمان، تصدق بأحدهما، وانطلق رجل إلى عرض ماله، فأخذ منه مئة ألف درهم فتصدق بها” وصححه ابن حبان (3377) قال السندي في حاشيته على النسائي: ظاهر الأحاديث أن الأجر على قدر حال المعطي، لا على قدر المال المعطى، فصاحب الدرهمين حيث أعطى نصف ماله في حال لا يعطي فيها إلا الأقوياء، يكون أجره على قدر همته، بخلاف الغني، فإنه ما أعطى نصف ماله، ولا في حال لا يعطى فيها عادة
হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৪৪
শেয়ার ও অন্যান্য
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পরিচ্ছেদঃ
৭৪৪। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের হাতের তালুদ্বয় ও পা দ্বয় হৃষ্ট-পুষ্ট ও গ্রন্থিগুলো গোশতে পূর্ণ ছিল।
[তিরমিযী ৩৬৩৭, মুসনাদ আহমাদ ৭৪৬, ৯৪৪, ৯৪৬, ৯৪৭, ১০৫৩]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، حَدَّثَنَا الْمَسْعُودِيُّ، وَمِسْعَرٌ، عَنْ عُثْمَانَ بْنِ عَبْدِ اللهِ بْنِ هُرْمُزَ، عَنْ نَافِعِ بْنِ جُبَيْرِ بْنِ مُطْعِمٍ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: ” كَانَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ شَثْنَ الْكَفَّيْنِ وَالْقَدَمَيْنِ، ضَخْمَ الْكَرَادِيسِ
–
حسن لغيره، عثمان بن عبد الله- ويقال: ابن مسلم- ابن هرمز المكي لم يرو عنه غير المسعوي- وهو عبد الرحمن بن عبد الله بن عتبة- ومسعر بن كدام، وقال النسائي: ليس بذاك، وذكره ابن حبان في “الثقات”. والحديث يتقوى بمجموع طرقه فيحسن. وسيأتي تخريجه برقم (746)
حدثنا وكيع، حدثنا المسعودي، ومسعر، عن عثمان بن عبد الله بن هرمز، عن نافع بن جبير بن مطعم، عن علي، قال: ” كان رسول الله صلى الله عليه وسلم شثن الكفين والقدمين، ضخم الكراديس – حسن لغيره، عثمان بن عبد الله- ويقال: ابن مسلم- ابن هرمز المكي لم يرو عنه غير المسعوي- وهو عبد الرحمن بن عبد الله بن عتبة- ومسعر بن كدام، وقال النسائي: ليس بذاك، وذكره ابن حبان في “الثقات”. والحديث يتقوى بمجموع طرقه فيحسن. وسيأتي تخريجه برقم (746)
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৪৫
শেয়ার ও অন্যান্য
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পরিচ্ছেদঃ
৭৪৫। হাদীস নং ৬৯০ দ্রষ্টব্য।
৬৯০। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাকে বলেছেনঃ তোমার কাছে যখন দুই ব্যক্তি বাদী ও বিবাদী হয়ে আসবে, তখন একজনকে বাদ দিয়ে অপরজনের বক্তব্য শুনো না। দু’জনেরই বক্তব্য শুনলে বুঝবে কিভাবে বিচার করতে হয়। আলী (রাঃ) বলেনঃ এরপর থেকে আমি বিচারক হিসাবে কাজ করতে লাগলাম।
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৪৬
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৪৬। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বেশি খাটোও ছিলেন না, বেশি লম্বাও ছিলেন না, মাথা ও দাড়ি ছিল বড়, হাতের তালু ও পায়ের পাতা হৃষ্ট-পুষ্ট। চেহারায় লালিমা মিশ্রিত ছিল। দীর্ঘ লোমশ বুক এবং গ্ৰন্থিগুলো গোশতে পরিপূর্ণ ছিল। যখন হাঁটতেন, থেমে থেমে হাঁটতেন যেন কোন উঁচু জায়গা থেকে নামছেন, তাঁর পূর্বে বা পরে তাঁর মত মানুষ আমি আর দেখিনি। [দেখুন হাদীস নং ৭৪৪]
حَدَّثَنَا وَكِيعٌ، أَخْبَرَنَا الْمَسْعُودِيُّ، عَنْ عُثْمَانَ بْنِ عَبْدِ اللهِ بْنِ هُرْمُزَ، عَنْ نَافِعِ بْنِ جُبَيْرِ بْنِ مُطْعِمٍ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: كَانَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ لَيْسَ بِالطَّوِيلِ وَلا بِالْقَصِيرِ، ضَخْمُ الرَّأْسِ وَاللِّحْيَةِ، شَثْنُ الْكَفَّيْنِ وَالْقَدَمَيْنِ، مُشْرَبٌ وَجْهُهُ حُمْرَةً، طَوِيلُ الْمَسْرُبَةِ، ضَخْمُ الْكَرَادِيسِ، إِذَا مَشَى تَكَفَّأَ تَكَفُّؤًا كَأَنَّمَا يَنْحَطُّ مِنْ صَبَبٍ، لَمْ أَرَ قَبْلَهُ وَلا بَعْدَهُ مِثْلَهُ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ
–
حسن لغيره كسابقه، وسماع وكيع من المسعودي قبل الاختلاط
وأخرجه الترمذي في “السنن” (3637) ، وفي “الشمائل” (5) من طريق وكيع، بهذا الإسناد
وأخرجه الطيالسي (171) ، وابن سعد 1/411، والترمذي أيضاً، وأبو زرعة الدمشقي في “تاريخه” 1/160، والبيهقي في “الدلائل” 1/244، والبغوي (3641) من طرق عن المسعودي، به. وقال الترمذي: حسن صحيح. وسيأتي برقم (944) و (946) و (947) و (1053) ، وانظر (1122) ، وما تقدم برقم (684)
والكراديس: رؤوس العظام، وقيل: هي ملتقى كل عظمين ضخمين كالركبتين والمرفقين والمنكبين، أراد أنه ضخم الأعضاء
حدثنا وكيع، أخبرنا المسعودي، عن عثمان بن عبد الله بن هرمز، عن نافع بن جبير بن مطعم، عن علي، قال: كان رسول الله صلى الله عليه وسلم ليس بالطويل ولا بالقصير، ضخم الرأس واللحية، شثن الكفين والقدمين، مشرب وجهه حمرة، طويل المسربة، ضخم الكراديس، إذا مشى تكفأ تكفؤا كأنما ينحط من صبب، لم أر قبله ولا بعده مثله صلى الله عليه وسلم – حسن لغيره كسابقه، وسماع وكيع من المسعودي قبل الاختلاط وأخرجه الترمذي في “السنن” (3637) ، وفي “الشمائل” (5) من طريق وكيع، بهذا الإسناد وأخرجه الطيالسي (171) ، وابن سعد 1/411، والترمذي أيضا، وأبو زرعة الدمشقي في “تاريخه” 1/160، والبيهقي في “الدلائل” 1/244، والبغوي (3641) من طرق عن المسعودي، به. وقال الترمذي: حسن صحيح. وسيأتي برقم (944) و (946) و (947) و (1053) ، وانظر (1122) ، وما تقدم برقم (684) والكراديس: رؤوس العظام، وقيل: هي ملتقى كل عظمين ضخمين كالركبتين والمرفقين والمنكبين، أراد أنه ضخم الأعضاء
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৪৭
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৪৭। আলী (রাঃ) বলেছেন, পারস্য সম্রাট রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে হাদিয়া পাঠিয়েছিলেন এবং তিনি তা গ্ৰহণ করেছেন। রোম সম্রাট তাকে হাদিয়া পাঠিয়েছেন, তাও তিনি গ্ৰহণ করেছেন, বহু রাজা বাদশাহ তাকে উপহার উপটৌকন পাঠাতেন এবং তিনি তা গ্ৰহণ করতেন।
[তিরমিযী ১৫৭৬, মুসনাদ আহমাদ ১২৩৫]
حَدَّثَنَا يَزِيدُ، أَخْبَرَنَا إِسْرَائِيلُ، عَنْ ثُوَيْرِ بْنِ أَبِي فَاخِتَةَ، عَنْ أَبِيهِ، عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: ” أَهْدَى كِسْرَى لِرَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَبِلَ مِنْهُ، وَأَهْدَى لَهُ قَيْصَرُ فَقَبِلَ مِنْهُ، وَأَهْدَتْ لَهُ الْمُلُوكُ فَقَبِلَ مِنْهَا
–
إسناده ضعيف لضعف ثوير بن أبي فاختة. يزيد: هو ابن هارون
وأخرجه البزار (778) من طريق يزيد بن هارون، بهذا الإسناد
وأخرجه الترمذي (1576) من طريق عبد الرحيم بن سليمان، عن إسرائيل، به
وقال: حسن غريب، وسيأتي برقم (1235)
وأخذ الهدية من المشركين بقصد تأنيسهم وتأليفهم على الإسلام، ثابت عنه صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ في
غير ما حديث هي في “صحيح البخاري” 5/230-232 في الهبة: باب قبول الهدية من المشركين، وفي “صحيح مسلم” (1392) و (2469)
حدثنا يزيد، أخبرنا إسرائيل، عن ثوير بن أبي فاختة، عن أبيه، عن علي، قال: ” أهدى كسرى لرسول الله صلى الله عليه وسلم، فقبل منه، وأهدى له قيصر فقبل منه، وأهدت له الملوك فقبل منها – إسناده ضعيف لضعف ثوير بن أبي فاختة. يزيد: هو ابن هارون وأخرجه البزار (778) من طريق يزيد بن هارون، بهذا الإسناد وأخرجه الترمذي (1576) من طريق عبد الرحيم بن سليمان، عن إسرائيل، به وقال: حسن غريب، وسيأتي برقم (1235) وأخذ الهدية من المشركين بقصد تأنيسهم وتأليفهم على الإسلام، ثابت عنه صلى الله عليه وسلم في غير ما حديث هي في “صحيح البخاري” 5/230-232 في الهبة: باب قبول الهدية من المشركين، وفي “صحيح مسلم” (1392) و (2469)
হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৪৮
শেয়ার ও অন্যান্য
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পরিচ্ছেদঃ
৭৪৮। শুরাইহ ইবনে হানী বলেন, আমি আয়িশা (রাঃ) কে মোজার ওপর মাসিহ সম্পর্কে জিজ্ঞাসা করলাম। তিনি বললেনঃ আলীকে জিজ্ঞাসা কর। তিনি এ বিষয়ে আমার চেয়ে বেশী জানেন। (কারণ) তিনি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের সাথে (প্রায়ই) সফর করতেন। অতঃপর আমি আলী (রাঃ)-কে জিজ্ঞাসা করলে তিনি বললেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেনঃ মুসাফির তিন দিন তিন রাত এবং মুকীম এক দিন ও এক রাত মোজার ওপর মাসিহ করবে।
[মুসলিম ২৭৬, ইবনু খুযাইমা ১৯৪, ১৯৫; মুসনাদ আহমাদ ৭৮০, ৭৮১, ৯০৬, ৯০৭, ৯৪৯, ৯৬৬, ১১১৯, ১১২৬, ১২৪৫, ১২৭৭]
حَدَّثَنَا يَزِيدُ، عَنْ الْحَجَّاجِ، عَنِ الْحَكَمِ، عَنِ الْقَاسِمِ بْنِ مُخَيْمِرَةَ، عَنْ شُرَيْحِ بْنِ هَانِئٍ، قَالَ: سَأَلْتُ عَائِشَةَ عَنِ الْمَسْحِ فَقَالَتْ: سَلْ عَلِيًّا، فَإِنَّهُ أَعْلَمُ بِهَذَا مِنِّي، كَانَ يُسَافِرُ مَعَ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ. قَالَ: فَسَأَلْتُ عَلِيًّا، فَقَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: لِلْمُسَافِرِ ثَلاثَةُ أَيَّامٍ وَلَيَالِيهِنَّ، وَلِلْمُقِيمِ يَوْمٌ وَلَيْلَةٌ
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صحيح، الحجاج- وهو ابن أرطاة- مدلس وقد عنعن، لكنه توبع، وقد اختُلف في رفع الحديث ووقفه، انظر “علل الدارقطني” 3/230-237
وأخرجه بنحوه مسلم (276) من طريق زيد بن أبي أنيسة، وابن خزيمة (195) ، وابن حبان (1322) ، والدارقطني في “العلل” 3/236 من طريق أبي غَنِية عبد الملك بن حميد، كلاهما عن الحكم بن عتيبة، به. لفظ مسلم: “جعل رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ثلاثةَ أيام ولياليهن للمسافر، ويوماً وليلة للمقيم” يعني في المسح على الخفين، ولفظه عند الباقين: (رخص لنا رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ …)
وأخرجه بنحوه الحميدي (46) ، وأبو يعلى (560) من طريق يزيد بن أبي زياد، والطحاوي 1/81، والدارقطني 3/237 من طريق أبي إسحاق، كلاهما عن القاسم بن مخيمرة، به. وسيأتي برقم (906) و (907) و (949) و (1119) و (1126) و (1245) و (1277) ، وانظر (780)
حدثنا يزيد، عن الحجاج، عن الحكم، عن القاسم بن مخيمرة، عن شريح بن هانئ، قال: سألت عائشة عن المسح فقالت: سل عليا، فإنه أعلم بهذا مني، كان يسافر مع رسول الله صلى الله عليه وسلم. قال: فسألت عليا، فقال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: للمسافر ثلاثة أيام ولياليهن، وللمقيم يوم وليلة – صحيح، الحجاج- وهو ابن أرطاة- مدلس وقد عنعن، لكنه توبع، وقد اختلف في رفع الحديث ووقفه، انظر “علل الدارقطني” 3/230-237 وأخرجه بنحوه مسلم (276) من طريق زيد بن أبي أنيسة، وابن خزيمة (195) ، وابن حبان (1322) ، والدارقطني في “العلل” 3/236 من طريق أبي غنية عبد الملك بن حميد، كلاهما عن الحكم بن عتيبة، به. لفظ مسلم: “جعل رسول الله صلى الله عليه وسلم ثلاثة أيام ولياليهن للمسافر، ويوما وليلة للمقيم” يعني في المسح على الخفين، ولفظه عند الباقين: (رخص لنا رسول الله صلى الله عليه وسلم …) وأخرجه بنحوه الحميدي (46) ، وأبو يعلى (560) من طريق يزيد بن أبي زياد، والطحاوي 1/81، والدارقطني 3/237 من طريق أبي إسحاق، كلاهما عن القاسم بن مخيمرة، به. وسيأتي برقم (906) و (907) و (949) و (1119) و (1126) و (1245) و (1277) ، وانظر (780)
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৪৯
শেয়ার ও অন্যান্য
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পরিচ্ছেদঃ
৭৪৯। হাদীস নং ৭৪৮-এর অনুরূপ। [দেখুন পূর্বের হাদিস]
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৫০
শেয়ার ও অন্যান্য
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পরিচ্ছেদঃ
৭৫০। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম একদা ডান হাতে স্বর্ণ ও বাম হাতে রেশম নিলেন। তারপর বললেন, আমার উম্মাতের পুরুষদের জন্যে এই দুটো জিনিস হারাম।
[হাদীস নং ৯৩৫ দ্রষ্টব্য]
حَدَّثَنَا يَزِيدُ، أَخْبَرَنَا مُحَمَّدُ بْنُ إِسْحَاقَ، عَنْ يَزِيدَ بْنِ أَبِي حَبِيبٍ، عَنْ عَبْدِ الْعَزِيزِ بْنِ أَبِي الصَّعْبَةِ، عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ زُرَيْرٍ الْغَافِقِيِّ، قَالَ: سَمِعْتُ عَلِيًّا، يَقُولُ: أَخَذَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ذَهَبًا بِيَمِينِهِ، وَحَرِيرًا بِشِمَالِهِ، ثُمَّ رَفَعَ بِهِمَا يَدَيْهِ فَقَالَ: ” هَذَانِ حَرَامٌ عَلَى ذُكُورِ أُمَّتِي
–
صحيج لشواهده، وقد سقط من الإسناد في جميع الأصول التي بين أيدينا ومن “أطراف المسند” 2/ورقة 29 “أبو أفلح الهمداني” بين عبد العزيز بن أبي الصعبة وبين عبد الله بن زرير، وهو ثابت عند غير المصنف، وسيأتي الحديث في “المسند” برقم (935) وفيه أبو أفلح هذا، وقد روى عنه اثنان، ووثقه العجلي، وقال الذهبي في “الكاشف”: صدوق، وقال الحافظ في “التقريب”: مقبول
وأخرجه عبد بن حميد (80) ، وأخرجه النسائي 8/160-161 عن عمرو بن علي، وأبو يعلى (272) عن زهير بن حرب، وهو أيضاً (325) عن عبيد الله بن عمر القواريري، والطحاوي 4/250 عن حسين بن نصر، والبيهقي 2/425 من طريق الحسن بن محمد الزعفراني وشعيب بن أيوب، سبعتهم (عبد بن حميد وعمرو وزهير وعبيد الله وحسين والحسن وشعيب) عن يزيد بن هارون، بهذا الإسناد. وكلهم عندهم أبو أفلح الهمداني، وانظر “العلل” للدارقطني 3/260-262
وكذلك أخرجه ابن أبي شيبة 8/351، وعنه ابن ماجه (3595) عن عبد الرحيم بن سليمان، والبزار (886) من طريق جرير، كلاهما عن محمد بن إسحاق، به
وأخرجه أيضاً البزار (887) من طريق عبد الحميد بن جعفر، عن ابن أبي حبيب، به
وأخرجه ابن حبان (5434) من طريق يزيد بن أبي أنيصة، عن يزيد بن أبي حبيب، عن حميد بن أبي الصعبة، عن عبد الله بن زرير، به. وحميد بن أبي الصعبة ذكره ابن حبان في “ثقاته” 6/193-194! والصواب “عبد العزيز بن أبي الصعبة” فالحديث حديثه، وما عند ابن حبان لعله خطأ من أحد الرواة، والله أعلم
وأخرجه الطحاوي 4/250 من طريق ابن لهيعة، عن يزيد بن أبي حبيب، عن عبد العزيز بن أبي الصعبة، عن أبي علي الهمداني، عن عبد الله بن زرير به
وفي الباب عن عبد الله بن عمرو عند ابن وهب في “الجامع” (102) ، والطيالسي (2253) ، وابن ماجه (3597) ، والطحاوي 4/251، وفي سنده ضعيفان
وعن عبد الله بن عباس عند البزار (3006) ، والطبراني (10889) . وفيه إسماعيل بن مسلم المكي، وهو ضعيف
وعن عقبة بن عامر عند الطحاوي 4/251، والبيهقي 2/275-276، وسنده حسن في الشواهد
وعن أبي موسى الأشعري عند أحمد 4/394 و407، والترمذي (1720) ، والنسائي 8/161، وقال الترمذي: حسن صحيح
حدثنا يزيد، أخبرنا محمد بن إسحاق، عن يزيد بن أبي حبيب، عن عبد العزيز بن أبي الصعبة، عن عبد الله بن زرير الغافقي، قال: سمعت عليا، يقول: أخذ رسول الله صلى الله عليه وسلم ذهبا بيمينه، وحريرا بشماله، ثم رفع بهما يديه فقال: ” هذان حرام على ذكور أمتي – صحيج لشواهده، وقد سقط من الإسناد في جميع الأصول التي بين أيدينا ومن “أطراف المسند” 2/ورقة 29 “أبو أفلح الهمداني” بين عبد العزيز بن أبي الصعبة وبين عبد الله بن زرير، وهو ثابت عند غير المصنف، وسيأتي الحديث في “المسند” برقم (935) وفيه أبو أفلح هذا، وقد روى عنه اثنان، ووثقه العجلي، وقال الذهبي في “الكاشف”: صدوق، وقال الحافظ في “التقريب”: مقبول وأخرجه عبد بن حميد (80) ، وأخرجه النسائي 8/160-161 عن عمرو بن علي، وأبو يعلى (272) عن زهير بن حرب، وهو أيضا (325) عن عبيد الله بن عمر القواريري، والطحاوي 4/250 عن حسين بن نصر، والبيهقي 2/425 من طريق الحسن بن محمد الزعفراني وشعيب بن أيوب، سبعتهم (عبد بن حميد وعمرو وزهير وعبيد الله وحسين والحسن وشعيب) عن يزيد بن هارون، بهذا الإسناد. وكلهم عندهم أبو أفلح الهمداني، وانظر “العلل” للدارقطني 3/260-262 وكذلك أخرجه ابن أبي شيبة 8/351، وعنه ابن ماجه (3595) عن عبد الرحيم بن سليمان، والبزار (886) من طريق جرير، كلاهما عن محمد بن إسحاق، به وأخرجه أيضا البزار (887) من طريق عبد الحميد بن جعفر، عن ابن أبي حبيب، به وأخرجه ابن حبان (5434) من طريق يزيد بن أبي أنيصة، عن يزيد بن أبي حبيب، عن حميد بن أبي الصعبة، عن عبد الله بن زرير، به. وحميد بن أبي الصعبة ذكره ابن حبان في “ثقاته” 6/193-194! والصواب “عبد العزيز بن أبي الصعبة” فالحديث حديثه، وما عند ابن حبان لعله خطأ من أحد الرواة، والله أعلم وأخرجه الطحاوي 4/250 من طريق ابن لهيعة، عن يزيد بن أبي حبيب، عن عبد العزيز بن أبي الصعبة، عن أبي علي الهمداني، عن عبد الله بن زرير به وفي الباب عن عبد الله بن عمرو عند ابن وهب في “الجامع” (102) ، والطيالسي (2253) ، وابن ماجه (3597) ، والطحاوي 4/251، وفي سنده ضعيفان وعن عبد الله بن عباس عند البزار (3006) ، والطبراني (10889) . وفيه إسماعيل بن مسلم المكي، وهو ضعيف وعن عقبة بن عامر عند الطحاوي 4/251، والبيهقي 2/275-276، وسنده حسن في الشواهد وعن أبي موسى الأشعري عند أحمد 4/394 و407، والترمذي (1720) ، والنسائي 8/161، وقال الترمذي: حسن صحيح
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৫১
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৫১। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বিতরের শেষে (এই দু’আ) পড়তেনঃ হে আল্লাহ, তোমার ক্ৰোধ থেকে তোমার সন্তষ্টির, তোমার শান্তি থেকে তোমার নিরাপত্তার এবং তোমার থেকে তোমার কাছে আশ্রয় চাইছি। তোমার প্রশংসা করে শেষ করতে পারি না। তুমি তেমনই যেমন নিজের প্ৰশংসা নিজে করেছ।
[আবু দাউদ ১৪২৭, ইবনু মাজাহ ১১৭৯, তিরমিযী ৩৫৬৬, নাসায়ী ২৪৮/৩, মুসনাদ আহমাদ ৯৫৭, ১২৯৫]
حَدَّثَنَا يَزِيدُ، أَخْبَرَنَا حَمَّادُ بْنُ سَلَمَةَ، عَنْ هِشَامِ بْنِ عَمْرٍو، عَنْ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ الْحَارِثِ بْنِ هِشَامٍ، عَنْ عَلِيٍّ، أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يَقُولُ فِي آخِرِ وِتْرِهِ: ” اللهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِرِضَاكَ مِنْ سَخَطِكَ، وَأَعُوذُ بِمُعَافَاتِكَ مِنْ عُقُوبَتِكَ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْكَ، لَا أُحْصِي ثَنَاءً عَلَيْكَ، أَنْتَ كَمَا أَثْنَيْتَ عَلَى نَفْسِكَ
–
إسناده قوي، هشام بن عمرو- وهو الفزاري- لم يرو عنه غير حماد بن سلمة وهو أقدم شيخ له، ووثقه ابن معين وأحمد وأبو حاتم، وذكره ابن حبان في “الثقات”، واحتج به أصحاب السنن الأربعة
وأخرجه ابن أبي شيبة 2/306 و10/386، وعبد بن حميد (81) ، والترمذي (3566) وحسنه، وأبو يعلى (275) من طريق يزيد بن هارون، بهذا الإسناد
وأخرجه الطيالسي (123) ، وأبو داود (1427) ، والنسائي في “المجتبى” 3/248-249، وفي “الكبرى” (7753) ، والطبراني في “الدعاء” (751) ، والبيهقي 3/42 من طرق عن حماد بن سلمة، به. وسيأتي برقم (957) و (1295)
قوله: “كما أثنيت”، قال السندي: أي: أنت الذي أثنيت على ذاتك ثناءً يليق بك، فمن يقدر على أداء حق ثنائك، فالكافُ زائدةً، والخطاب في عائد الموصول بملاحظة المعنى، ويحتمل أن الكاف بمعنى “على”، والعائد محذوف، أي: أنت ثابت على أوصافٍ أثنيت بها على نفسك، والجملةُ على الوجهين في محل التعليل، وفيه إطلاق النفس عليه تعالى بلا مشاكلة، وقيل: “أنت” تأكيد للمجرور في “عليك”، فهو من استعارة المرفوع المنفصل موضع المجرور المتصل؛ إذ لا منفصلَ في المجرور، و”ما” مصدرية، والكاف بمعنى: مثل، صفة ثناء
حدثنا يزيد، أخبرنا حماد بن سلمة، عن هشام بن عمرو، عن عبد الرحمن بن الحارث بن هشام، عن علي، أن النبي صلى الله عليه وسلم كان يقول في آخر وتره: ” اللهم إني أعوذ برضاك من سخطك، وأعوذ بمعافاتك من عقوبتك، وأعوذ بك منك، لا أحصي ثناء عليك، أنت كما أثنيت على نفسك – إسناده قوي، هشام بن عمرو- وهو الفزاري- لم يرو عنه غير حماد بن سلمة وهو أقدم شيخ له، ووثقه ابن معين وأحمد وأبو حاتم، وذكره ابن حبان في “الثقات”، واحتج به أصحاب السنن الأربعة وأخرجه ابن أبي شيبة 2/306 و10/386، وعبد بن حميد (81) ، والترمذي (3566) وحسنه، وأبو يعلى (275) من طريق يزيد بن هارون، بهذا الإسناد وأخرجه الطيالسي (123) ، وأبو داود (1427) ، والنسائي في “المجتبى” 3/248-249، وفي “الكبرى” (7753) ، والطبراني في “الدعاء” (751) ، والبيهقي 3/42 من طرق عن حماد بن سلمة، به. وسيأتي برقم (957) و (1295) قوله: “كما أثنيت”، قال السندي: أي: أنت الذي أثنيت على ذاتك ثناء يليق بك، فمن يقدر على أداء حق ثنائك، فالكاف زائدة، والخطاب في عائد الموصول بملاحظة المعنى، ويحتمل أن الكاف بمعنى “على”، والعائد محذوف، أي: أنت ثابت على أوصاف أثنيت بها على نفسك، والجملة على الوجهين في محل التعليل، وفيه إطلاق النفس عليه تعالى بلا مشاكلة، وقيل: “أنت” تأكيد للمجرور في “عليك”، فهو من استعارة المرفوع المنفصل موضع المجرور المتصل؛ إذ لا منفصل في المجرور، و”ما” مصدرية، والكاف بمعنى: مثل، صفة ثناء
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৫২
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৫২। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম মাগরিব ও ইশার মধ্যবর্তী সময়ে একজন আরেকজনকে জোরে শুনিয়ে কুরআন পড়তে নিষেধ করেছেন।
[দেখুন হাদীস নং ৬৩৩]
حَدَّثَنَا يَزِيدُ بْنُ هَارُونَ، حَدَّثَنَا خَالِدُ بْنُ عَبْدِ اللهِ، عَنْ مُطَرِّفٍ، عَنْ أَبِي إِسْحَاقَ، عَنِ الْحَارِثِ، عَنْ عَلِيٍّ: ” أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ نَهَى أَنْ يَجْهَرَ الْقَوْمُ بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ بَيْنَ الْمَغْرِبِ وَالْعِشَاءِ بِالْقُرْآنِ
–
حسن لغيره، وهذا إسناد ضعيف لضعف الحارث بن عبد الله الأعور. مطرف: هو ابن طريف، وأبو إسحاق: هو عمرو بن عبد الله السبيعي. وقد تقدم برقم (663)
حدثنا يزيد بن هارون، حدثنا خالد بن عبد الله، عن مطرف، عن أبي إسحاق، عن الحارث، عن علي: ” أن رسول الله صلى الله عليه وسلم نهى أن يجهر القوم بعضهم على بعض بين المغرب والعشاء بالقرآن – حسن لغيره، وهذا إسناد ضعيف لضعف الحارث بن عبد الله الأعور. مطرف: هو ابن طريف، وأبو إسحاق: هو عمرو بن عبد الله السبيعي. وقد تقدم برقم (663)
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৫৩
শেয়ার ও অন্যান্য
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পরিচ্ছেদঃ
৭৫৩। আলী বিন রাবি’আ বলেন, আলী (রাঃ)-এর নিকট একটি জন্তু আনা হলো, যার ওপর তিনি আরোহণ করবেন। তিনি যখন জিনে পা রাখলেন, বললেন, বিসমিল্লাহ। যখন উঠে বসলেন তখন বললেনঃ আলহামদুলিল্লাহ, সুবহানাল্লাজী সাখখারা লানা হাযা ওয়ামা কুন্না লাহু মুক্বরীনীন ওয়া ইন্না ইলা রাব্বিনা লা মুনকালিবুন। তারপর তিনবার আলহামদুলিল্লাহ ও তিন বার আল্লাহু আকবার বললেন। তারপর বললেনঃ সুবহানাকা লা-ইলাহা ইল্লা আনতা, কাদ যালামতু নাফছী ফাগাফির লী। তারপর হাসলেন। আলী বিন রাবি’আ বলেনঃ আমি জিজ্ঞাসা করলাম, হে আমীরুল মুমিনীন, হাসলেন কেন? তিনি বললেনঃ আমি যা করলাম, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে অদ্রপ করতে দেখেছি। তারপর তিনি হেসেছিলেন। আমি জিজ্ঞাসা করলামঃ ইয়া রাসূলাল্লাহ, হাসলেন কেন? তিনি বললেনঃ আল্লাহ তাঁর বান্দাকে দেখে অবাক হন, যখন সে বলে, হে আল্লাহ, আমাকে ক্ষমা কর এবং বলেনঃ আমার বান্দা জানে আমি ছাড়া কেউ গুনাহ মাফ করতে পারে না।
[ইবনু হিব্বান ২৬৯৭, আল হাকেম ২/৯৮-৯৯, আবু দাউদ ২৬০২, তিরমিযী ৩৪৪৬, মুসনাদ আহমাদ ৯৩০, ১০৫৬]
حَدَّثَنَا يَزِيدُ، أَخْبَرَنَا شَرِيكُ بْنُ عَبْدِ اللهِ، عَنْ أَبِي إِسْحَاقَ، عَنْ عَلِيِّ بْنِ رَبِيعَةَ، قَالَ: رَأَيْتُ عَلِيًّا أُتِيَ بِدَابَّةٍ لِيَرْكَبَهَا، فَلَمَّا وَضَعَ رِجْلَهُ فِي الرِّكَابِ قَالَ: بِسْمِ اللهِ، فَلَمَّا اسْتَوَى عَلَيْهَا قَالَ: ” الْحَمْدُ لِلَّهِ، سُبْحَانَ الَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَذَا وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْرِنِينَ، وَإِنَّا إِلَى رَبِّنَا لَمُنْقَلِبُونَ، ثُمَّ حَمِدَ اللهَ ثَلاثًا، وَكَبَّرَ ثَلاثًا، ثُمَّ قَالَ: سُبْحَانَكَ لَا إِلَهَ إِلا أَنْتَ، قَدْ ظَلَمْتُ نَفْسِي فَاغْفِرْ لِي. ثُمَّ ضَحِكَ، فَقُلْتُ: مِمَّ ضَحِكْتَ يَا أَمِيرَ الْمُؤْمِنِينَ؟ قَالَ: رَأَيْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَعَلَ مِثْلَ مَا فَعَلْتُ، ثُمَّ ضَحِكَ، فَقُلْتُ: مِمَّ ضَحِكْتَ يَا رَسُولَ اللهِ؟ قَالَ: ” يَعْجَبُ الرَّبُّ مِنْ عَبْدِهِ إِذَا قَالَ: رَبِّ اغْفِرْ لِي، وَيَقُولُ: عَلِمَ عَبْدِي أَنَّهُ لَا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ غَيْرِي
–
حسن لغيره، شريك بن عبد الله- وإن كان سيئ الحفظ- قد توبع، وأبو إسحاق- وهو السبيعي- قد دلّسه فحذف منه رجلين بينه وبين علي بنِ ربيعة، قال الدارقطني في “العلل” 4/61: أبو إسحاق لم يسمع هذا الحديثَ من علي بنِ ربيعة، يبين ذلك ما رواه عبدُ الرحمن بن مهدي عن شعبة قال: قلتُ لأبي إسحاق: سمعتَه من علي بن ربيعة؟ فقال: حدثني يونس بن خباب عن رجل عنه. قلنا: ونحو هذا في مقدمة “الجرح والتعديل” ص 168، والرجل الذي روى عنه يونس هو شقيق الأزدي، سماه الطبراني في “الأوسط” (177) شقيق بن أبي عبد الله، والدارقطني في “العلل” شقيق بن عقبة، وكلاهما ليسا بأزديين، ولم نتبينه، وقال الحافظ ابن حجر- كما في “الفتوحات الربانية” 5/126-: شقيق هذا ما عرفت اسم أبيه ولا حاله هو، والعلم عند الله تعالى، وأما يونس بن خباب، فهو ضعيف فيه شيعية مفرطة كان يسب عثمان
وبإسناد المصنف أخرجه الطيالسي (132) ، وأبو داود (2602) ، والترمذي في “السنن” (3446) ، و”الشمائل” (233) ، والبزار (773) ، والنسائي في ” الكبرى” (8800) ، و”عمل اليوم والليلة” (502) ، وأبو يعلى (586) ، وابن حبان (2697) و (2698) ، وابن السني في “اليوم والليلة” (496) ، والطبراني في “الدعاء” (781) و (784) و (785) و (786) و (787) ، والدارقطني في “العلل” 4/62-63، والحاكم 2/99، والبيهقي في “الأسماء والصفات ” ص 471 من طرق عن أبي إسحاق، بهذا الإسناد، وبعضهم يزيد فيه على بعض، وقال الترمذي: حسن صحيح
وأخرجه الطبراني في “الدعاء” (779) ، و”الأوسط” (177) من طريق سعيد بن أبي مريم، عن ابن لهيعة، عن عبد ربه بن سعيد، عن يونس بن خباب، عن شقيق الأزدي، عن علي بن ربيعة، به. وقد تقدم آنفاً الكلام على هذا الإسناد
وأخرجه ابن أبي شيبة 10/284، والبزار (771) ، والطبراني في “الدعاء” (777) من طريق إسماعيل بن عبد الملك بن أبي الصغير، والطبراني (780) من طريق الحكم، والطبراني أيضاً (778) ، والحاكم 2/98-99 من طريق المنهال بن عمرو، ثلاثتهم عن علي بن ربيعة، به. وصححه الحاكم على شرط مسلم ووافقه الذهبي! مع أن المنهال لم يخرج له مسلم شيئاً وخرج له البخاري. قلنا: وهذه الأسانيد من باب الحسان، يُقوي بعضُها بعضاً، وأحسنها إسناداً حديث المنهال بن عمرو عن علي بن ربيعة، فيما قاله الدارقطني في “العلل” 4/62، وقال الحافظ ابن حجر فى حديث المنهال بن عمرو – كما في “الفتوحات الربانية” 5/125-: رجاله كلهم موثقون من رجال الصحيح إلا ميسرة وهو ثقة. وسياتي الحديث برقم (930) و (1056)
قوله: وما كنا له مقرنين”، أي: ما كنا لتسخير هذه الدواب مطيقين ولا قادرين عليه لولا تسخيره سبحانه. منقلبون: أي: راجعون إليه في المعاد
حدثنا يزيد، أخبرنا شريك بن عبد الله، عن أبي إسحاق، عن علي بن ربيعة، قال: رأيت عليا أتي بدابة ليركبها، فلما وضع رجله في الركاب قال: بسم الله، فلما استوى عليها قال: ” الحمد لله، سبحان الذي سخر لنا هذا وما كنا له مقرنين، وإنا إلى ربنا لمنقلبون، ثم حمد الله ثلاثا، وكبر ثلاثا، ثم قال: سبحانك لا إله إلا أنت، قد ظلمت نفسي فاغفر لي. ثم ضحك، فقلت: مم ضحكت يا أمير المؤمنين؟ قال: رأيت رسول الله صلى الله عليه وسلم فعل مثل ما فعلت، ثم ضحك، فقلت: مم ضحكت يا رسول الله؟ قال: ” يعجب الرب من عبده إذا قال: رب اغفر لي، ويقول: علم عبدي أنه لا يغفر الذنوب غيري – حسن لغيره، شريك بن عبد الله- وإن كان سيئ الحفظ- قد توبع، وأبو إسحاق- وهو السبيعي- قد دلسه فحذف منه رجلين بينه وبين علي بن ربيعة، قال الدارقطني في “العلل” 4/61: أبو إسحاق لم يسمع هذا الحديث من علي بن ربيعة، يبين ذلك ما رواه عبد الرحمن بن مهدي عن شعبة قال: قلت لأبي إسحاق: سمعته من علي بن ربيعة؟ فقال: حدثني يونس بن خباب عن رجل عنه. قلنا: ونحو هذا في مقدمة “الجرح والتعديل” ص 168، والرجل الذي روى عنه يونس هو شقيق الأزدي، سماه الطبراني في “الأوسط” (177) شقيق بن أبي عبد الله، والدارقطني في “العلل” شقيق بن عقبة، وكلاهما ليسا بأزديين، ولم نتبينه، وقال الحافظ ابن حجر- كما في “الفتوحات الربانية” 5/126-: شقيق هذا ما عرفت اسم أبيه ولا حاله هو، والعلم عند الله تعالى، وأما يونس بن خباب، فهو ضعيف فيه شيعية مفرطة كان يسب عثمان وبإسناد المصنف أخرجه الطيالسي (132) ، وأبو داود (2602) ، والترمذي في “السنن” (3446) ، و”الشمائل” (233) ، والبزار (773) ، والنسائي في ” الكبرى” (8800) ، و”عمل اليوم والليلة” (502) ، وأبو يعلى (586) ، وابن حبان (2697) و (2698) ، وابن السني في “اليوم والليلة” (496) ، والطبراني في “الدعاء” (781) و (784) و (785) و (786) و (787) ، والدارقطني في “العلل” 4/62-63، والحاكم 2/99، والبيهقي في “الأسماء والصفات ” ص 471 من طرق عن أبي إسحاق، بهذا الإسناد، وبعضهم يزيد فيه على بعض، وقال الترمذي: حسن صحيح وأخرجه الطبراني في “الدعاء” (779) ، و”الأوسط” (177) من طريق سعيد بن أبي مريم، عن ابن لهيعة، عن عبد ربه بن سعيد، عن يونس بن خباب، عن شقيق الأزدي، عن علي بن ربيعة، به. وقد تقدم آنفا الكلام على هذا الإسناد وأخرجه ابن أبي شيبة 10/284، والبزار (771) ، والطبراني في “الدعاء” (777) من طريق إسماعيل بن عبد الملك بن أبي الصغير، والطبراني (780) من طريق الحكم، والطبراني أيضا (778) ، والحاكم 2/98-99 من طريق المنهال بن عمرو، ثلاثتهم عن علي بن ربيعة، به. وصححه الحاكم على شرط مسلم ووافقه الذهبي! مع أن المنهال لم يخرج له مسلم شيئا وخرج له البخاري. قلنا: وهذه الأسانيد من باب الحسان، يقوي بعضها بعضا، وأحسنها إسنادا حديث المنهال بن عمرو عن علي بن ربيعة، فيما قاله الدارقطني في “العلل” 4/62، وقال الحافظ ابن حجر فى حديث المنهال بن عمرو – كما في “الفتوحات الربانية” 5/125-: رجاله كلهم موثقون من رجال الصحيح إلا ميسرة وهو ثقة. وسياتي الحديث برقم (930) و (1056) قوله: وما كنا له مقرنين”، أي: ما كنا لتسخير هذه الدواب مطيقين ولا قادرين عليه لولا تسخيره سبحانه. منقلبون: أي: راجعون إليه في المعاد
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৫৪
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৫৪। আমর বিন হুরাইছ অসুস্থ হাসান বিন আলী (রাঃ)-কে দেখতে এলেন। আলী (রাঃ) বললেনঃ আপনার মনে যা আছে, তা সত্ত্বেও হাসানকে দেখতে এলেন? আমর বললেনঃ আপনি তো আমার প্রতিপালক নন যে, আমার মনকে যেদিকে ইচ্ছা সরিয়ে দেবেন। আলী (রাঃ) বললেনঃ শুনুন, মনে যাই থাক, তা আমাদেরকে পরস্পরের শুভাকাঙ্খী হতে বাধা দেয় না। আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে বলতে শুনেছিঃ কোন মুসলিম তার অসুস্থ মুসলিম ভাইকে দেখতে গেলে আল্লাহ তার জন্য সত্তর হাজার ফেরেশতা পাঠান, যারা তার জন্য দিনের যে কোন সময় থেকে সন্ধ্যা পর্যন্ত এবং রাতের যে কোন সময় থেকে সকাল পর্যন্ত তার জন্য দু’আ করতে থাকে। আমর তাঁকে বললেনঃ মৃত ব্যক্তির সাথে চলা সম্পর্কে কী বলেন? সামনে চলা উচিত না পেছনে চলা উচিত? আলী (রাঃ) বললেনঃ যারা পেছনে চলে, সামনে চলা লোকদের ওপর তাদের শ্রেষ্ঠত্ব তেমনি, যেমন জামায়াতে ফরয নামায পড়া একাকী পড়ার চেয়ে শ্রেষ্ঠ। আমর বললেনঃ আমি আবু বাকর (রাঃ) ও উমর (রাঃ)-কে মৃত ব্যক্তির আগে আগে চলতে দেখেছি। আলী (রাঃ) বললেনঃ তারা মানুষকে অসুবিধায় ফেলা অপছন্দ করতেন।
[হাদীস নং ৯৫৫ দ্রষ্টব্য]
حَدَّثَنَا يَزِيدُ، حَدَّثَنَا حَمَّادُ بْنُ سَلَمَةَ، عَنْ يَعْلَى بْنِ عَطَاءٍ، عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ يَسَارٍ، أَنَّ عَمْرَو بْنَ حُرَيْثٍ، عَادَ الْحَسَنَ بْنَ عَلِيٍّ، فَقَالَ لَهُ عَلِيٌّ: أَتَعُودُ الْحَسَنَ وَفِي نَفْسِكَ مَا فِيهَا؟ فَقَالَ لَهُ عَمْرٌو: إِنَّكَ لَسْتَ بِرَبِّي فَتَصْرِفَ قَلْبِي حَيْثُ شِئْتَ. قَالَ عَلِيٌّ: أَمَا إِنَّ ذَلِكَ لَا يَمْنَعُنَا أَنْ نُؤَدِّيَ إِلَيْكَ النَّصِيحَةَ، سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: مَا مِنْ مُسْلِمٍ عَادَ أَخَاهُ إِلا ابْتَعَثَ اللهُ لَهُ سَبْعِينَ أَلْفَ مَلَكٍ يُصَلُّونَ عَلَيْهِ مِنْ أَيِّ سَاعَاتِ النَّهَارِ، كَانَ حَتَّى يُمْسِيَ، وَمِنْ أَيِّ سَاعَاتِ اللَّيْلِ كَانَ حَتَّى يُصْبِحَ “
قَالَ لَهُ عَمْرٌو: كَيْفَ تَقُولُ فِي الْمَشْيِ مَعَ الْجِنَازَةِ: بَيْنَ يَدَيْهَا أَوْ خَلْفَهَا؟ فَقَالَ عَلِيٌّ: ” إِنَّ فَضْلَ الْمَشْيِ خَلْفَهَا عَلَى بَيْنِ يَدَيْهَا، كَفَضْلِ صَلَاةِ الْمَكْتُوبَةِ فِي جَمَاعَةٍ عَلَى الْوَحْدَةِ . قَالَ عَمْرٌو: فَإِنِّي رَأَيْتُ أَبَا بَكْرٍ وَعُمَرَ يَمْشِيَانِ أَمَامَ الْجِنَازَةِ. قَالَ عَلِيٌّ: إِنَّهُمَا كَرِهَا أَنْ يُحْرِجَا النَّاسَ
–
حسن لغيره، وهذا إسناد ضعيف لجهالة عبد الله بن يسار- وهو أبو همام الكوفي-، وانظر رقم (955)
حدثنا يزيد، حدثنا حماد بن سلمة، عن يعلى بن عطاء، عن عبد الله بن يسار، أن عمرو بن حريث، عاد الحسن بن علي، فقال له علي: أتعود الحسن وفي نفسك ما فيها؟ فقال له عمرو: إنك لست بربي فتصرف قلبي حيث شئت. قال علي: أما إن ذلك لا يمنعنا أن نؤدي إليك النصيحة، سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: ما من مسلم عاد أخاه إلا ابتعث الله له سبعين ألف ملك يصلون عليه من أي ساعات النهار، كان حتى يمسي، ومن أي ساعات الليل كان حتى يصبح ” قال له عمرو: كيف تقول في المشي مع الجنازة: بين يديها أو خلفها؟ فقال علي: ” إن فضل المشي خلفها على بين يديها، كفضل صلاة المكتوبة في جماعة على الوحدة . قال عمرو: فإني رأيت أبا بكر وعمر يمشيان أمام الجنازة. قال علي: إنهما كرها أن يحرجا الناس – حسن لغيره، وهذا إسناد ضعيف لجهالة عبد الله بن يسار- وهو أبو همام الكوفي-، وانظر رقم (955)
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৫৫
শেয়ার ও অন্যান্য
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পরিচ্ছেদঃ
৭৫৫। হাদীস নং ৬৯৮ দ্রষ্টব্য।
৬৯৮। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে একসেট রেশম মিশ্ৰিত নতুন পোশাক উপহার দেয়া হলো। তিনি সেটি আমার কাছে পাঠালেন। আমি তা নিয়ে রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কাছে উপস্থিত হলাম। এতে রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের মুখমণ্ডলে ক্রোধের লক্ষণ পরিস্ফুট দেখতে পেলাম। তাই আমি সেটটি আমার মহিলাদের মধ্যে বণ্টন করে দিলাম।
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৫৬
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৫৬। হাদীস নং ৪৩১ দ্রষ্টব্য।
৪৩১। আবদুল্লাহ বিন শাকীক বলেন, উসমান (রাঃ) মুত’আ বিয়ে করতে নিষেধ করতেন, আর আলী (রাঃ) তার পক্ষে ফতোয়া দিতেন। এরপর উসমান(রাঃ) আলী (রাঃ) কে কী যেন বললেন। তারপর তাকে আলী(রাঃ) বললেনঃ তুমিতো জানো, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এটা করেছেন? উসমান(রাঃ) বললেনঃ হ্যাঁ, তবে আমরা ভয় পেতাম। (মুসনাদে আহমাদ-৪৩২, ৭৫৬)
এ হাদীসের অন্যতম বর্ণনাকারী শু’বা বলেন, আমি কাতাদাকে জিজ্ঞাসা করলামঃ তারা কিসের ভয় পেতেন? কাতাদা বললেনঃ জানি না।
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৫৭
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৫৭। হাদীস নং ৫৬৩ দ্রষ্টব্য।
৫৬৩। আলী (রাঃ) বলেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেনঃ ছেলে শিশুর পেশাবের ওপর পানি ছিটিয়ে দিতে হবে এবং মেয়ে শিশুর পেশাব ধুয়ে ফেলতে হবে।
কাতাদাহ বলেনঃ এ রকম হবে তখন পর্যন্ত, যখন পর্যন্ত তারা কোন শক্ত খাবার খায় না। শক্ত খাবার খেলে উভয়ের পেশাবে ধুতে হবে।
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৫৮
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৫৮। আলী (রাঃ) থেকে বর্ণিত। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেনঃ কোন বান্দা ততক্ষণ পর্যন্ত মুমিন হবে না, যতক্ষণ না সে চারটি বিষয়ে ঈমান আনবে। সে সাক্ষ্য দেবে যে, আল্লাহ ছাড়া আর কোন ইলাহ নেই এবং আমি আল্লাহর রাসূল, আমাকে সত্য দিয়ে পাঠিয়েছেন, সে ঈমান আনবে মৃত্যুর পরে পুনরুজ্জীবিত হবার ওপর এবং ঈমান আনবে অদৃষ্টর ওপর।
[ইবনু মাজাহ ৮১, তিরমিযী ২১৪৫, মুসনাদ আহমাদ ১১১২]
حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ جَعْفَرٍ، حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، عَنْ مَنْصُورٍ، عَنْ رِبْعِيِّ بْنِ حِرَاشٍ، عَنْ عَلِيٍّ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنَّهُ قَالَ: ” لَا يُؤْمِنُ عَبْدٌ حَتَّى يُؤْمِنَ بِأَرْبَعٍ: حَتَّى يَشْهَدَ أَنْ لَا إِلَهَ إِلا اللهُ، وَأَنِّي رَسُولُ اللهِ، بَعَثَنِي بِالْحَقِّ، وَحَتَّى يُؤْمِنَ بِالْبَعْثِ بَعْدَ الْمَوْتِ، وَحَتَّى يُؤْمِنَ بِالْقَدَرِ
–
رجاله ثقات رجال الشيخين، وربعي بن حِراش سمع من علي بن أبي طالب وهو تابعي قديم مخضرم، لكن قال الدارقطني في “العلل” 3/196 لما سئل عن حديث ربعي هذا: حدث به شريك وورقاء وجرير وعمرو بن أبي قيس عن منصور عن ربعي عن علي، وخالفهم سفيان الثوري وزائدة وأبو الأحوص وسليمان التيمي فرووه عن منصور عن ربعي عن رجل من بني أسد عن علي، وهو الصواب
قلنا: الحديث أخرجه ابن أبي عاصم في “السنة” (887) ، والبزار (904) من طريق محمد بن جعفر، بهذا الإسناد
وأخرجه الطيالسي (106) ، ومن طريقه الترمذي (2145) عن شعبة، به
وأخرجه الترمذي (2145) من طريق النضر بن شميل، عن شعبة، عن منصور، عن ربعي بن حراش، عن رجل، عن علي. قال الترمذي: حديث أبي داود (يعني الطيالسي) عن شعبة عندي أصح من حديث النضر، وهكذا روى غير واحد عن منصور عن ربعي عن علي
قلنا: أما رواية شريك- وهو ابن عبد الله النخعي- التي أشار إليها الدارقطني، فقد أخرجها ابن أبي عاصم (130) و (887) ، وابن ماجه (81) ، والخطيب في “تاريخ بغداد” 3/366 من طريقه عن منصور بن المعتمر، عن ربعي، عن علي
وأما رواية ورقاء بن عمر اليشكري بإسقاط الرجل المجهول، فلم تقع لنا، لكن أخرجه الطيالسي في “مسنده” (106) عنه، عن منصور، عن ربعي، عن رجل، عن علي
ورواية جرير بن عبد الحميد أخرجها أبو يعلى (583) ، والحاكم 1/33 من طريقه عن منصور، عن ربعي، عن علي
وأما رواية عمرو بن أبي قيس فلم نقف عليها في المصادر التي بين أيدينا
وأما رواية سفيان الثوري عن منصور بزيادة الرجل من بني أسد، فستأتي في “المسند” برقم (1112)
ورواية زاثدة بن قدامة أخرجها أبو يعلي (352) من طريقه عن منصور، به لكن بإسقاط الرجل من بني أسد
ورواية أبي الأحوص- وهو سلام بن سليم الحنفي- أخرجها الطيالسي (170) عنه عن منصور بإسقاطِ الرجلِ أيضاً، ولفظه عنده: “لا يجد عبدُ طعمَ الإيمان حتى يؤمن بالقدر كله
وأما رواية سليمان التيمي، فلم نظفر بها فيما بين أيدينا من مصادر
حدثنا محمد بن جعفر، حدثنا شعبة، عن منصور، عن ربعي بن حراش، عن علي، عن النبي صلى الله عليه وسلم أنه قال: ” لا يؤمن عبد حتى يؤمن بأربع: حتى يشهد أن لا إله إلا الله، وأني رسول الله، بعثني بالحق، وحتى يؤمن بالبعث بعد الموت، وحتى يؤمن بالقدر – رجاله ثقات رجال الشيخين، وربعي بن حراش سمع من علي بن أبي طالب وهو تابعي قديم مخضرم، لكن قال الدارقطني في “العلل” 3/196 لما سئل عن حديث ربعي هذا: حدث به شريك وورقاء وجرير وعمرو بن أبي قيس عن منصور عن ربعي عن علي، وخالفهم سفيان الثوري وزائدة وأبو الأحوص وسليمان التيمي فرووه عن منصور عن ربعي عن رجل من بني أسد عن علي، وهو الصواب قلنا: الحديث أخرجه ابن أبي عاصم في “السنة” (887) ، والبزار (904) من طريق محمد بن جعفر، بهذا الإسناد وأخرجه الطيالسي (106) ، ومن طريقه الترمذي (2145) عن شعبة، به وأخرجه الترمذي (2145) من طريق النضر بن شميل، عن شعبة، عن منصور، عن ربعي بن حراش، عن رجل، عن علي. قال الترمذي: حديث أبي داود (يعني الطيالسي) عن شعبة عندي أصح من حديث النضر، وهكذا روى غير واحد عن منصور عن ربعي عن علي قلنا: أما رواية شريك- وهو ابن عبد الله النخعي- التي أشار إليها الدارقطني، فقد أخرجها ابن أبي عاصم (130) و (887) ، وابن ماجه (81) ، والخطيب في “تاريخ بغداد” 3/366 من طريقه عن منصور بن المعتمر، عن ربعي، عن علي وأما رواية ورقاء بن عمر اليشكري بإسقاط الرجل المجهول، فلم تقع لنا، لكن أخرجه الطيالسي في “مسنده” (106) عنه، عن منصور، عن ربعي، عن رجل، عن علي ورواية جرير بن عبد الحميد أخرجها أبو يعلى (583) ، والحاكم 1/33 من طريقه عن منصور، عن ربعي، عن علي وأما رواية عمرو بن أبي قيس فلم نقف عليها في المصادر التي بين أيدينا وأما رواية سفيان الثوري عن منصور بزيادة الرجل من بني أسد، فستأتي في “المسند” برقم (1112) ورواية زاثدة بن قدامة أخرجها أبو يعلي (352) من طريقه عن منصور، به لكن بإسقاط الرجل من بني أسد ورواية أبي الأحوص- وهو سلام بن سليم الحنفي- أخرجها الطيالسي (170) عنه عن منصور بإسقاط الرجل أيضا، ولفظه عنده: “لا يجد عبد طعم الإيمان حتى يؤمن بالقدر كله وأما رواية سليمان التيمي، فلم نظفر بها فيما بين أيدينا من مصادر
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৫৯
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৫৯। আলী (রাঃ) রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কাছে এসে বললেন, আবু তালিব মারা গেছেন। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম তাকে বললেনঃ যাও, তাকে দাফন করে এস। আলী (রাঃ) বললেনঃ উনি তো মুশরিক অবস্থায় মারা গেছেন। রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বললেনঃ (তা হোক) তুমি যাও, তাকে কবর দিয়ে এস। আলী (রাঃ) বলেনঃ এরপর যখন তাকে কবর দিলাম এবং রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কাছে ফিরে এলাম, তখন তিনি আমাকে বললেনঃ গোসল কর।
[আবু দাউদ ৩২১৪, নাসায়ী ৭৯/৪, ১১০/১, মুসনাদ আহমাদ ১০৯৩]
حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ جَعْفَرٍ، حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، عَنْ أَبِي إِسْحَاقَ قَالَ: سَمِعْتُ نَاجِيَةَ بْنَ كَعْبٍ، يُحَدِّثُ عَنْ عَلِيٍّ، أَنَّهُ أَتَى النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقَالَ: إِنَّ أَبَا طَالِبٍ مَاتَ. فَقَالَ لَهُ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: ” اذْهَبْ فَوَارِهِ “، فَقَالَ: إِنَّهُ مَاتَ مُشْرِكًا. فَقَالَ: ” اذْهَبْ فَوَارِهِ ” قَالَ: فَلَمَّا وَارَيْتُهُ رَجَعْتُ إِلَى النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ لِي: اغْتَسِلْ
–
إسناده ضعيف، ناجية بن كعب: هو الأسدي كما حققه الحافظ في “التهذيب”، قال ابنُ المديني: لا أعلم أحداً روى عنه غيرَ أبي إسحاق وهو مجهول، ولم يوثقه غير العجلي، وقد وَهِمَ الحافظُ في “التقريب” فقال عنه: ثقة! وأما قوله في “التهذيب”: إن ابن حبان ذكره في “الثقات” فهو وَهَم منه أيضاً فإنه ليس فيه، وإنما ذكره في “المجروحين” 3/57 وقال: ناجية بن كعب من أهل الكوفة، وهو الأسدي، يروي عن علي، روى عنه أبو إسحاق وأبو حسان الأعرج، كان شيخاً صالحاً، إلا أن في حديثه تخليطاً لا يشبه حديثَ أقرانه الثقات عن علي، فلا يعجبني الاحتجاجُ به إذا انفرد، وفيما وافق الثقاث، فإن احتج به محتج أرجو أنه لم يجرح في فعله ذلك
قلنا: وقد ضعف الحديث البيهقي في “السنن”، وتبعه النووي في “المجموع” 5/144 فضعفه، ونقل البيهقي عن علي بن المديني أنه قال: في إسناده بعض الشيء.
وأخرجه النسائي 1/110 عن محمد بن المثنى، عن محمد بن جعفر، بهذا الإسناد
وأخرجه الطيالسي (120) ، ومن طريقه البيهقي في “دلائل النبوة” 2/348 عن شعبة، به
وأخرجه الشافعي في “مسنده” 1/207 عن عمرو بن الهيثم، وابن الجارود (550) من طريق وهب بن جرير، كلاهما عن شعبة، به
وأخرجه ابن أبي شيبة 3/347 عن أبي الأحوص، وأبو يعلي (423) من طريق إبراهيم بن طهمان، والبيهقي في “السنن” 1/304 من طريق إسرائيل، ثلاثتهم عن أبي إسحاق، به. زاد أبو يعلى: وعلمني دعواتٍ هن أحب إلي من حُمر النعَم، ولفظ الزيادة عند البيهقي: ثم دعا لي بدعوات ولا يسرني بها ما على الأرض من شيء، ولم يذكر ابن أبي شيبة أنه صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أمر عليا بالغسل، وزاد: ثُم رجعت إليه وعلى أثر التراب والغبار، فدعا لي بدعوات … مثل رواية البيهقي
وأخرجه عبد الرزاق (9936) عن معمر والثوري، عن ناجية بن كعب الأسدي: أن أبا طالب لما مات … فذكر الحديث مرسلاً، وأسقط منه أبا إسحاق بين معمر والثوري وبين ناجية، وهو خطأ والصواب إثباته، فلعله من النساخ. وسيأتي الحديث برقم (1093)
وللحديث طريق أخرى سيأتي الكلام عليها برقم (807) عن أبي عبد الرحمن السلمي، عن علي
وأورد له البيهقي في “السنن” 1/305 طريقين آخرين، وهما معلولان، وأعلهما البيهقي نفسه
حدثنا محمد بن جعفر، حدثنا شعبة، عن أبي إسحاق قال: سمعت ناجية بن كعب، يحدث عن علي، أنه أتى النبي صلى الله عليه وسلم فقال: إن أبا طالب مات. فقال له النبي صلى الله عليه وسلم: ” اذهب فواره “، فقال: إنه مات مشركا. فقال: ” اذهب فواره ” قال: فلما واريته رجعت إلى النبي صلى الله عليه وسلم، فقال لي: اغتسل – إسناده ضعيف، ناجية بن كعب: هو الأسدي كما حققه الحافظ في “التهذيب”، قال ابن المديني: لا أعلم أحدا روى عنه غير أبي إسحاق وهو مجهول، ولم يوثقه غير العجلي، وقد وهم الحافظ في “التقريب” فقال عنه: ثقة! وأما قوله في “التهذيب”: إن ابن حبان ذكره في “الثقات” فهو وهم منه أيضا فإنه ليس فيه، وإنما ذكره في “المجروحين” 3/57 وقال: ناجية بن كعب من أهل الكوفة، وهو الأسدي، يروي عن علي، روى عنه أبو إسحاق وأبو حسان الأعرج، كان شيخا صالحا، إلا أن في حديثه تخليطا لا يشبه حديث أقرانه الثقات عن علي، فلا يعجبني الاحتجاج به إذا انفرد، وفيما وافق الثقاث، فإن احتج به محتج أرجو أنه لم يجرح في فعله ذلك قلنا: وقد ضعف الحديث البيهقي في “السنن”، وتبعه النووي في “المجموع” 5/144 فضعفه، ونقل البيهقي عن علي بن المديني أنه قال: في إسناده بعض الشيء. وأخرجه النسائي 1/110 عن محمد بن المثنى، عن محمد بن جعفر، بهذا الإسناد وأخرجه الطيالسي (120) ، ومن طريقه البيهقي في “دلائل النبوة” 2/348 عن شعبة، به وأخرجه الشافعي في “مسنده” 1/207 عن عمرو بن الهيثم، وابن الجارود (550) من طريق وهب بن جرير، كلاهما عن شعبة، به وأخرجه ابن أبي شيبة 3/347 عن أبي الأحوص، وأبو يعلي (423) من طريق إبراهيم بن طهمان، والبيهقي في “السنن” 1/304 من طريق إسرائيل، ثلاثتهم عن أبي إسحاق، به. زاد أبو يعلى: وعلمني دعوات هن أحب إلي من حمر النعم، ولفظ الزيادة عند البيهقي: ثم دعا لي بدعوات ولا يسرني بها ما على الأرض من شيء، ولم يذكر ابن أبي شيبة أنه صلى الله عليه وسلم أمر عليا بالغسل، وزاد: ثم رجعت إليه وعلى أثر التراب والغبار، فدعا لي بدعوات … مثل رواية البيهقي وأخرجه عبد الرزاق (9936) عن معمر والثوري، عن ناجية بن كعب الأسدي: أن أبا طالب لما مات … فذكر الحديث مرسلا، وأسقط منه أبا إسحاق بين معمر والثوري وبين ناجية، وهو خطأ والصواب إثباته، فلعله من النساخ. وسيأتي الحديث برقم (1093) وللحديث طريق أخرى سيأتي الكلام عليها برقم (807) عن أبي عبد الرحمن السلمي، عن علي وأورد له البيهقي في “السنن” 1/305 طريقين آخرين، وهما معلولان، وأعلهما البيهقي نفسه
হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai’f) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)
৭৬০
শেয়ার ও অন্যান্য
- বাংলা/ العربية
পরিচ্ছেদঃ
৭৬০। আলী (রাঃ) বলেছেন, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাকে আদেশ দিলেন সহোদর দুই গোলামকে বিক্রি করে দিতে। আমি তাদেরকে আলাদাভাবে দু’জনের কাছে বিক্রি করলাম। অতঃপর এ খবর রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে জানালাম। তিনি আমাকে বললেনঃ ওদেরকে খুঁজে বের কর ও ফেরত আন। তারপর দু’জনকে একই সাথে একই জায়গায় ব্যতীত বিক্রি করো না।
[মুসনাদ আহমাদ ১০৫৪]
حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ جَعْفَرٍ، حَدَّثَنَا سَعِيدٌ يَعْنِي ابْنَ أَبِي عَرُوبَةَ، عَنِ الْحَكَمِ بْنِ عُتَيْبَةَ، عَنْ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ أَبِي لَيْلَى، عَنْ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ، قَالَ: أَمَرَنِي رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنْ أَبِيعَ غُلامَيْنِ أَخَوَيْنِ، فَبِعْتُهُمَا، وَفَرَّقْتُ بَيْنَهُمَا، فَذَكَرْتُ ذَلِكَ لِلنَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقَالَ: ” أَدْرِكْهُمَا فَأَرْجِعْهُمَا، وَلا تَبِعْهُمَا إِلا جَمِيعًا
–
حسن لغيره، وهذا إسناد ضعيف لانقطاعه، سعيد بن أبي عروبة قال أحمد والبزار والنسائي وأبو حاتم والدارقطني وغيرهم: لم يسمع من الحكم بن عتيبة شيئاً، وسيأتي الحديث عند المصنف برقم (1045) من طريق سعيد بن أبي عروبة عن رجل عن الحكم
وأخرجه البزار (623) من طريق محمد بن عبيد الله العرزمي، وابن الجارود (575) من طريق زيد بن أبي أنيسة، كلاهما عن الحكم بن عتيبة، بهذا الإسناد. ومحمد بن عبيد الله العرزمي متروك، وفي إسناد ابن الجارود سليمان بن عبيد الله الأنصاري الرقي، وهو صدوق يصلح للمتابعات. وانظر رقم (800) . وانظر “العلل” للدارقطني 3/272-275
وفي الباب عن أبي أيوب عند أحمد 5/413 والدارمي (2479) ، وحسنه الترمذي (1283) ، وصححه الحاكم 2/55 ولفظه “من فرق بين الوالدة وولدها، فرق الله بينه وبين أحبته يوم القيامة
وعن أبي موسى عند ابن ماجه (2250) ، ولا بأس به في الشواهد
حدثنا محمد بن جعفر، حدثنا سعيد يعني ابن أبي عروبة، عن الحكم بن عتيبة، عن عبد الرحمن بن أبي ليلى، عن علي بن أبي طالب، قال: أمرني رسول الله صلى الله عليه وسلم أن أبيع غلامين أخوين، فبعتهما، وفرقت بينهما، فذكرت ذلك للنبي صلى الله عليه وسلم فقال: ” أدركهما فأرجعهما، ولا تبعهما إلا جميعا – حسن لغيره، وهذا إسناد ضعيف لانقطاعه، سعيد بن أبي عروبة قال أحمد والبزار والنسائي وأبو حاتم والدارقطني وغيرهم: لم يسمع من الحكم بن عتيبة شيئا، وسيأتي الحديث عند المصنف برقم (1045) من طريق سعيد بن أبي عروبة عن رجل عن الحكم وأخرجه البزار (623) من طريق محمد بن عبيد الله العرزمي، وابن الجارود (575) من طريق زيد بن أبي أنيسة، كلاهما عن الحكم بن عتيبة، بهذا الإسناد. ومحمد بن عبيد الله العرزمي متروك، وفي إسناد ابن الجارود سليمان بن عبيد الله الأنصاري الرقي، وهو صدوق يصلح للمتابعات. وانظر رقم (800) . وانظر “العلل” للدارقطني 3/272-275 وفي الباب عن أبي أيوب عند أحمد 5/413 والدارمي (2479) ، وحسنه الترمذي (1283) ، وصححه الحاكم 2/55 ولفظه “من فرق بين الوالدة وولدها، فرق الله بينه وبين أحبته يوم القيامة وعن أبي موسى عند ابن ماجه (2250) ، ولا بأس به في الشواهد
হাদিসের মানঃ হাসান (Hasan) পুনঃনিরীক্ষণঃ মুসনাদে আহমাদ মুসনাদে আলী ইবনে আবি তালিব (রাঃ) [আলীর বর্ণিত হাদীস] (مسند علي بن أبي طالب)